मेरी माँ.... प्यारी माँ....... मम्मा

आज पढ़िए माँ के लिए लिखी मेरी स्वरचित कविता 


कच्ची मिट्टी थी मैं तो बस,
मुझे आकार तो मेरी माँ ने दिया।
अनगढ़, मूर्ख, अज्ञानी थी मैं,
मुझे ज्ञान से साकार तो मेरी माँ ने किया।

दर्द किसी ने भी दिया हो मुझे,
उन पर आँसू तो माँ ने बहाया।
सीने में दफ़न हर इक दर्द पर,
मलहम तो बस माँ ने लगाया।

अनाज उगाया बेशक किसी और ने,
पर खाना तो मुझे माँ ने खिलाया।
जब सोते थे सब चैन से और में जागती रही,
मुझे थपकी देकर तो सिर्फ माँ ने सुलाया।

साथ छोड़ दिया जब सब ने मेरा,
मेरी और हाथ तो माँ ने बढ़ाया।
गलत कहती रही पूरी दुनिया जब मुझे,
बड़ी शिद्दत से मुझे सही तो माँ ने ठहराया।

डरकर छुपने की जगह जब भी तलाशी मैंने,
मेरे हाथ में तो बस माँ का ही आँचल आया। 
इसीलिए शायद
ईश्वर के आगे आँखे बंद कर जब भी खड़ी हुई मैं,
मेरी नज़रों के सामने तो बस मेरी माँ का ही चेहरा आया। 

मेरी दोनों माँ मम्मी और मम्मा (बड़ी मम्मी ) को दिल से समर्पित
(स्वरचित) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google

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टिप्पणियाँ

  1. हाँ मम्मी जैसा कोई नहीं होता। और फिर अपनी मम्मी जैसा तो कोई है ही नहीं .... कहीं नहीं। हम सौभाग्यशाली हैं जो ऐसे माता - पिता की हम संतान हैं।

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  2. डरकर छुपने की जगह जब भी तलाशी मैंने,
    मेरे हाथ में तो बस माँ का ही आँचल आया।
    इसीलिए शायद
    ईश्वर के आगे आँखे बंद कर जब भी खड़ी हुई मैं,
    मेरी नज़रों के सामने तो बस मेरी माँ का ही चेहरा आया।
    सुन्दर प्रस्तुति ...

    जवाब देंहटाएं

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