मुस्कान
आज dj की लेखनी का मन है,आपको एक संस्मरण के दर्शन कराने का।
मैं इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ हूँ कि ये संस्मरण मेरे पाठकों के लिए उपयोगी है या नहीं ?ये भी नहीं जानती कि किसी के व्यक्तिगत संस्मरण को पढ़ने में सभी पाठकों की रूचि है या नहीं ?मगर वो नन्हीं-सी बालिका और उसकी प्यारी सी मुस्कान,मुझे रोक ही नहीं पाई लिखने से.…ये संस्मरण आज भी मेरी अमूल्य यादों का एक अभिन्न हिस्सा है। मेरे दृष्टिपटल पर वैसा ही विराजमान है और उसकी वो प्यारी मुस्कान भी.…। आज यहाँ लिखकर उस गुड़िया की मुस्कान को आप सब के साथ बाँटने जा रही हूँ।
एक बार मैं अपने पति महोदय के साथ देवास माता मंदिर दर्शन करने के उद्देश्य से पहुँची।मंदिर ऊँची टेकरी पर स्थित है। मंदिर की चढ़ाई शुरू होने से अंत तक फूल-मालाओं और प्रसाद के साथ-साथ मूर्तियों,तस्वीरों और अन्य वस्तुओं की दुकाने सजी हुईं थी। चढ़ाई खत्म होने के पश्चात् टेकरी पर दो मुख्य मंदिर हैं जिनमे माँ तुलजा भवानी और चामुंडा माता की मूर्तियां विराजित हैं।इन्हें आम बोलचाल की भाषा में लोग क्रमशः बड़ी माता एवं छोटी माता कहते हैं। जिन पाठकों
ने इस धार्मिक स्थल का भ्रमण किया है,वे जानते हैं इन दो मुख्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात् की जाने वाली परिक्रमा की परिधि करीब दस से बारह मिनट की है और परिक्रमा करते हुए इस परिधि के अंतर्गत अनेक देवी-देवताओं के कईं छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों के पुजारी सुबह से यहाँ आकर मंदिरो की सेवा-पूजा में लग जाते हैं। अपने साथ खाने पीने का कुछ जरूरी सामान साथ ही लेकर बैठते हैं क्योंकि चढ़ाई चढ़ने के बाद ऊपर खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं होती।(वर्तमान में कुछ थोड़ी बहुत दुकानों की व्यवस्था हो चुकी है।)
हम भी दर्शन के पश्चात परिक्रमा करने लगे सभी लोग हर मंदिर में एक-दो रुपये की दक्षिणा रखते चले जा रहे थे। एक मंदिर में एक छोटी सी बालिका जिसकी उम्र शायद कुछ सात-आठ वर्ष होगी, अपनी दादी के साथ बैठी थी। साधारण पर एकदम साफ़-स्वच्छ कपड़े और करीने से बंधे हुए बाल। उसके चेहरे पर अलग ही आभा चमक रही थी। उस पर उसका इतना मासूम-सा मुखमण्डल कि उसे देखते ही मैं उस पर मोहित हुए बिना रह ही न सकी। वो शायद अपनी दादी से बड़े प्यार मनुहार से कुछ विनती कर रही थी।ये नज़ारा दूर से ही दिखाई दे रहा था। उस मंदिर के समक्ष पहुँची नहीं थी मैं अभी। इसलिए उसकी बातें तो हमारे कानों तक नहीं पहुँच रही थी मगर उसके चेहरे की भाव-भंगिमाओं से ये निश्चित था कि वो उनसे कुछ मांग रही थी और उसकी दादी उसे समझा रही थी।शायद कह रही थी इतनी चढ़ाई उतरकर नीचे जाने और फिर चढ़कर ऊपर आने में उन्हें कष्ट होगा।बालिका छोटी होते हुए भी काफी समझदार थी। शायद इसलिए उनके एक बार समझाने पर ही मान गई। पर उसके मुखमण्डल पर माँगी चीज़ न मिल पाने की उदासी
तो फिर भी छलक ही आई थी।
ये सारा घटनाक्रम देखते देखते आखिरकार हम उस मंदिर के समक्ष पहुंचे। पति महोदय का ध्यान भी मेरी तरह उसी घटनाक्रम की और था शायद..... और वो मुझसे भी अच्छी तरह सारी स्थिति को भाँप गए थे। मैं कुछ समझ पाती उसके पहले उन्होंने जेब में हाथ डाला...... मगर.... सिक्का निकाल कर दान पेटी में डालने की जगह......एक चॉकलेट निकाली और उस गुड़िया के हाथ में थमा दी। और उसके चेहरे पर तुरंत मुस्कान बिखर गई एकदम इंस्टैंट......जैसे किसी लाइट का बटन दबाया और तुरंत प्रकाश बिखर गया हो और उसकी वो मुस्कुराहट हम दोनों के चेहरों पर मुस्कान लाये बिना न रह सकी। वो शायद कब से चॉकलेट ही माँग रही थी,मगर इतनी चढ़ाई उतरकर उसके लिए चॉकलेट लेने जाना और वापिस आना उसकी उम्रदराज़ दादी के लिए बहुत ही पीड़ादायक था। और मन माँगी चीज न मिल पाना उस बालिका के लिए। उस एक छोटी सी चॉकलेट ने दो लोगों की पीड़ा का समाधान कर दिया।
वैसे भी भारतवर्ष में कन्याओं को "देवी" का रूप माना जाता रहा है,शायद ईश्वर ने हमारे हाथों उसकी वो छोटी सी मुराद पूरी करना ठानी हो बहुत शांति और सुकून की अनुभूति हुई घटना के बाद उसे खुश देखकर। शायद हमने उस कन्या के रूप में सच में एक जीती जागती "देवी "को प्रसन्न कर लिया था।
इस घटना के बाद से हमने तय कर लिया है कि जब भी किसी चढ़ाई वाले मंदिर या दर्शनीय स्थल पर जायेंगे तो एक दो अतिरिक्त पानी की बोतलें,कुछ अतिरिक्त खाना, कुछ चॉकलेट्स और एक फर्स्ट ऐड बॉक्स जरूर साथ लेकर जाएँगे।
इसे हम शायद दान तो नहीं कह सकते, मगर जीवन में ऐसी छोटी -छोटी खुशियाँ बाँटते रहने से मन को बहुत आनंद की अनुभूति होती है।दान चाहे पैसों का न किया जाये,मगर जो किसी की भूख को तृप्त कर सके, किसी का तन ढँक सके, किसी के चेहरे पर थोड़ी सी देर के लिए ही सही मुस्कान ला सके, ऐसा दान अपने जीवन में हम सभी को कभी न कभी कर ही लेना चाहिए। है! ना ? तो जरूर कीजिये। क्या पता आपके जीवन में भी कोई ऐसी गुड़िया आपके स्मृतिपटल पर वो सुन्दर मुस्कान छोड़ जाए। क्या कहते हैं आप?
ना! ना! कहिये नहीं। लिखिए, नीचे टिप्पणी में।
(स्वलिखित) dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
मैं इस बात से बिलकुल अनभिज्ञ हूँ कि ये संस्मरण मेरे पाठकों के लिए उपयोगी है या नहीं ?ये भी नहीं जानती कि किसी के व्यक्तिगत संस्मरण को पढ़ने में सभी पाठकों की रूचि है या नहीं ?मगर वो नन्हीं-सी बालिका और उसकी प्यारी सी मुस्कान,मुझे रोक ही नहीं पाई लिखने से.…ये संस्मरण आज भी मेरी अमूल्य यादों का एक अभिन्न हिस्सा है। मेरे दृष्टिपटल पर वैसा ही विराजमान है और उसकी वो प्यारी मुस्कान भी.…। आज यहाँ लिखकर उस गुड़िया की मुस्कान को आप सब के साथ बाँटने जा रही हूँ।
एक बार मैं अपने पति महोदय के साथ देवास माता मंदिर दर्शन करने के उद्देश्य से पहुँची।मंदिर ऊँची टेकरी पर स्थित है। मंदिर की चढ़ाई शुरू होने से अंत तक फूल-मालाओं और प्रसाद के साथ-साथ मूर्तियों,तस्वीरों और अन्य वस्तुओं की दुकाने सजी हुईं थी। चढ़ाई खत्म होने के पश्चात् टेकरी पर दो मुख्य मंदिर हैं जिनमे माँ तुलजा भवानी और चामुंडा माता की मूर्तियां विराजित हैं।इन्हें आम बोलचाल की भाषा में लोग क्रमशः बड़ी माता एवं छोटी माता कहते हैं। जिन पाठकों
ने इस धार्मिक स्थल का भ्रमण किया है,वे जानते हैं इन दो मुख्य मंदिरों के दर्शन के पश्चात् की जाने वाली परिक्रमा की परिधि करीब दस से बारह मिनट की है और परिक्रमा करते हुए इस परिधि के अंतर्गत अनेक देवी-देवताओं के कईं छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों के पुजारी सुबह से यहाँ आकर मंदिरो की सेवा-पूजा में लग जाते हैं। अपने साथ खाने पीने का कुछ जरूरी सामान साथ ही लेकर बैठते हैं क्योंकि चढ़ाई चढ़ने के बाद ऊपर खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं होती।(वर्तमान में कुछ थोड़ी बहुत दुकानों की व्यवस्था हो चुकी है।)
हम भी दर्शन के पश्चात परिक्रमा करने लगे सभी लोग हर मंदिर में एक-दो रुपये की दक्षिणा रखते चले जा रहे थे। एक मंदिर में एक छोटी सी बालिका जिसकी उम्र शायद कुछ सात-आठ वर्ष होगी, अपनी दादी के साथ बैठी थी। साधारण पर एकदम साफ़-स्वच्छ कपड़े और करीने से बंधे हुए बाल। उसके चेहरे पर अलग ही आभा चमक रही थी। उस पर उसका इतना मासूम-सा मुखमण्डल कि उसे देखते ही मैं उस पर मोहित हुए बिना रह ही न सकी। वो शायद अपनी दादी से बड़े प्यार मनुहार से कुछ विनती कर रही थी।ये नज़ारा दूर से ही दिखाई दे रहा था। उस मंदिर के समक्ष पहुँची नहीं थी मैं अभी। इसलिए उसकी बातें तो हमारे कानों तक नहीं पहुँच रही थी मगर उसके चेहरे की भाव-भंगिमाओं से ये निश्चित था कि वो उनसे कुछ मांग रही थी और उसकी दादी उसे समझा रही थी।शायद कह रही थी इतनी चढ़ाई उतरकर नीचे जाने और फिर चढ़कर ऊपर आने में उन्हें कष्ट होगा।बालिका छोटी होते हुए भी काफी समझदार थी। शायद इसलिए उनके एक बार समझाने पर ही मान गई। पर उसके मुखमण्डल पर माँगी चीज़ न मिल पाने की उदासी
तो फिर भी छलक ही आई थी।
ये सारा घटनाक्रम देखते देखते आखिरकार हम उस मंदिर के समक्ष पहुंचे। पति महोदय का ध्यान भी मेरी तरह उसी घटनाक्रम की और था शायद..... और वो मुझसे भी अच्छी तरह सारी स्थिति को भाँप गए थे। मैं कुछ समझ पाती उसके पहले उन्होंने जेब में हाथ डाला...... मगर.... सिक्का निकाल कर दान पेटी में डालने की जगह......एक चॉकलेट निकाली और उस गुड़िया के हाथ में थमा दी। और उसके चेहरे पर तुरंत मुस्कान बिखर गई एकदम इंस्टैंट......जैसे किसी लाइट का बटन दबाया और तुरंत प्रकाश बिखर गया हो और उसकी वो मुस्कुराहट हम दोनों के चेहरों पर मुस्कान लाये बिना न रह सकी। वो शायद कब से चॉकलेट ही माँग रही थी,मगर इतनी चढ़ाई उतरकर उसके लिए चॉकलेट लेने जाना और वापिस आना उसकी उम्रदराज़ दादी के लिए बहुत ही पीड़ादायक था। और मन माँगी चीज न मिल पाना उस बालिका के लिए। उस एक छोटी सी चॉकलेट ने दो लोगों की पीड़ा का समाधान कर दिया।
वैसे भी भारतवर्ष में कन्याओं को "देवी" का रूप माना जाता रहा है,शायद ईश्वर ने हमारे हाथों उसकी वो छोटी सी मुराद पूरी करना ठानी हो बहुत शांति और सुकून की अनुभूति हुई घटना के बाद उसे खुश देखकर। शायद हमने उस कन्या के रूप में सच में एक जीती जागती "देवी "को प्रसन्न कर लिया था।
इस घटना के बाद से हमने तय कर लिया है कि जब भी किसी चढ़ाई वाले मंदिर या दर्शनीय स्थल पर जायेंगे तो एक दो अतिरिक्त पानी की बोतलें,कुछ अतिरिक्त खाना, कुछ चॉकलेट्स और एक फर्स्ट ऐड बॉक्स जरूर साथ लेकर जाएँगे।
इसे हम शायद दान तो नहीं कह सकते, मगर जीवन में ऐसी छोटी -छोटी खुशियाँ बाँटते रहने से मन को बहुत आनंद की अनुभूति होती है।दान चाहे पैसों का न किया जाये,मगर जो किसी की भूख को तृप्त कर सके, किसी का तन ढँक सके, किसी के चेहरे पर थोड़ी सी देर के लिए ही सही मुस्कान ला सके, ऐसा दान अपने जीवन में हम सभी को कभी न कभी कर ही लेना चाहिए। है! ना ? तो जरूर कीजिये। क्या पता आपके जीवन में भी कोई ऐसी गुड़िया आपके स्मृतिपटल पर वो सुन्दर मुस्कान छोड़ जाए। क्या कहते हैं आप?
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मेरे द्वारा इस ब्लॉग पर लिखित/प्रकाशित सभी सामग्री मेरी कल्पना पर आधारित है। आसपास के वातावरण और घटनाओं से प्रेरणा लेकर लिखी गई हैं। इनका किसी अन्य से साम्य एक संयोग मात्र ही हो सकता है।
Dhanyawad itni achhi bat batane k liye.. aage se hum b is bat ka dhyan rkhenge.. kisi k chehre pr hamari wajah se muskaan aae isse achhi bat to ho hi nhi skti ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रचना जी
जवाब देंहटाएंबिलकुल, यही छोटी-छोटी बातें किसी के एक दिन और किसी के जीवन में बड़ा अंतर लाती हैं।
जवाब देंहटाएंसादर नमन अनुराग सर,
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी अपने ब्लॉग पर सहसा देखकर आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। इस और रुख करने के लिए आपकी ह्रदय से आभारी हूँ। आपका मार्गदर्शन आगे भी मिलता रहेगा इसकी अपेक्षा है। बहुत बहुत धन्यवाद।
आपका ब्लॉग सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग सूची मेरे लिए वरदान साबित हुआ है। जब ब्लॉगिंग की शुरुआत करने का सोचा तो सबसे पहले यही ब्लॉग देखा था यहीं से मुझे मेरे द्रोणाचार्य मिले… कुछ सम्बल मिला और ब्लॉग लेखन का साहस जुटा पाई हूँ.... इसलिए आपकी ह्रदय से अति आभारी हूँ.... कृपया मार्गदर्शन करते रहिएगा।
Yaha bethe bethe badi devi aur "Choti DEVI" ke darshan ho gaye. Ek yatharth chintran. Nishchay hi hum sabhi ko in baton ka dhayan rakhna chahiye.
जवाब देंहटाएंTHANKU PAPA:-)
जवाब देंहटाएंजब हमारी वजह से किसी को छोटी सी भी ख़ुशी मिलती है तो उस वक्त हमें जो सुकून मिलाता है वो अवर्णनीय है। बहुत बढ़िया प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी। सुस्वागतम
जवाब देंहटाएंबिलकुल, सही
जवाब देंहटाएंAABHAAR AADARNEEY.
हटाएंदान उसे भी कह सकते है क्योंकि उससे भी चेहरे पर मुस्कान आई।
जवाब देंहटाएंबिलकुल दान मन से भी होता है सिर्फ धन से नहीं आभा पढ़ने व् प्रतिक्रिया दें हेतु
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