हजारों चेहरे संग मुस्कुराते हैं

जब भी मिलती हूँ तुमसे 
मन में हज़ारों भाव
हिलोरे खाते हैं 
अश्कों में भीगे ये लब 
फिर झट से मुस्काते हैं 
जब तक बिखेर न दूँ हर भाव 
तुम पर,शब्द रूप मे,
मन के कीड़े तब तक
यूँही कुलबुलाते हैं। 

फिर 

जब खोल के बैठ जाती हूँ तुम्हें 
वो पुराने किस्से खुद गुनगुनाते हैं ,
पढ़ते पढ़ते दृश्य घूम जाते हैं 
आँखों के समक्ष 
और 
पलकों से नीचे 
दो आंसू ढुलक आते हैं 
हरदम रोते सुबकते इन होठों को 
मुस्कान तो दी तुम्हीं ने थी
आज मेरी इस मुस्कान को देख 
हजारों चेहरे संग मुस्कुराते हैं। 

(स्वरचित) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google

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टिप्पणियाँ

  1. बहुत बहुत आभार आदरणीय।

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  2. बहुत अच्छी लगी ....उत्कृष्ट रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. उत्साहवर्धन के लिए आभार अभिषेक जी

      हटाएं
  4. धन्यवाद जितेन्द्र जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. Bahut sunadr rachna he dj ji.. or apk sang muskurane walo me ek chehra hamara b he:-)

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी बिलकुल रचना जी। आपको यहाँ बहुत समय बाद देखकर बहुत बहुत प्रसन्नता हो रही है।
      तकनीकी खामी को दुरुस्त कर लिया लगता है आपने। हार्दिक आभार।

      हटाएं
  6. बहुत खूब ... प्रेम मुस्कुराने की वजह दे ही देता है ...
    सुन्दर पंक्तियाँ ...

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्तर
    1. स्वागत है आपका इस ब्लॉग पर। उत्साहवर्धन के लिए आभार

      हटाएं
  8. हार्दिक स्वागत महोदय। उत्साहवर्धन के लिए आभार। आशा है प्रतिक्रिया रूप में आपका मार्गदर्शन आगे भी सदैव मिलता रहेगा।

    जवाब देंहटाएं
  9. हार्दिक स्वागत आदरणीय । उत्साहवर्धन के लिए आभार। आशा है प्रतिक्रिया रूप में आपका मार्गदर्शन आगे भी सदैव मिलता रहेगा।

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