कोरोना-कैफ़े-किरण




"कुछ समझ नही आ रहा क्या करूँ।"
चिंता से भरी किरण, पूरे घर में इधर से उधर घूम रही थी। ये तो अच्छा है कि घर की छत है। वरना! कहाँ जाती वह सृष्टि को लेकर?

उसकी दृष्टि सृष्टि पर पड़ी। 7 साल की सृष्टि सुकून से सो रही थी। रात के 2 बज चुके थे, परन्तु किरण की आंखों में नींद नहीं थी। होती भी कैसे? कोरोना ने सबके जीवन को इस तरह अस्त-व्यस्त कर दिया था कि लोग बस जीवन बचाने और परिवार का भरण पोषण कैसे किया जाए इसी चिंता में घुले जा रहे थे। अधिकतर लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) तो इसी डर, घबराहट और नकारत्मकता ने ही कम कर दी थी।

ऐसा संकट तो पहले कभी नही आया!
किरण सोचने लगी।
6 साल पहले किरण के पति घर के निचले भाग में एक छोटा सा कैफ़े और नन्ही सृष्टि को किरण की गोद मे डाल, पंचतत्व में विलीन हो गए थे। तब से किरण सब कुछ अकेले संभाल रही थी। 1 साल पहले घर के निचले हिस्से में शुरू किए गए उस छोटे से कैफ़े से वह अपनी जीविका चलाने और बेटी को बेहतर भविष्य देने की कोशिश में लगी थी। सब कुछ ठीक ही चल रहा था। परंतु अचानक आई इस महामारी के चलते, पिछले साल लगे देशव्यापी लॉकडाउन ने हर देशवासी की कमर तोड़ के रख दी थी। किरण ने पिछले साल भी 3 महीने के बंद के दैरान अपने चारों कर्मचारियों को अपनी बचत से पूरी तनख्वाह दी थी। अब इस साल उसी कोरोना ने भारत मे विकराल रूप ले लिया था। इस बार तो उनके पास अगले तीन चार महीने के राशन और इस महीने के जरूरी खर्चों (बिजली, पानी, दूध इत्यादि) के अलावा पैसे भी नहीं बचे थे। 2 महीने से उसके राज्य में lockdown चल रहा था और इस बार वो अपने कर्मचारियों को तनख्वाह नहीं दे पा रही थी, न ही वो उन्हें काम से निकालना चाहती थी। पर सभी के अकाउंट में उसने इतने पैसे लॉकडाउन में भी डाले थे कि उनका राशन पानी चलता रहे। चाहे परिस्थितियां उसके लिए बहुत ज्यादा प्रतिकूल थीं; पर अति संवेदनशील और भावुक किरण के लिए उसके कैफ़े के चारों कर्मचारी भी उसके परिवार की तरह थे। कोई परिवार को कैसे बीच मझदार में छोड़ सकता है? और इस बीच अगर कोई अनहोनी हो गई तो कहाँ से पैसे आएंगे! सोचकर, वह और भी परेशान हो गई पर अगले ही पल खुद को संयत कर बोली।
नहीं! नहीं! किरण नेगेटिव नहीं सोचना है। अब तक जैसे भगवान ने साथ दिया है आगे भी देंगे।सब कुछ अच्छा ही होगा। मैं कोई न कोई रास्ता तो जरूर निकाल लूंगी। खुद को समझाकर वह सोने की नाकाम कोशिश करने लगी।
लेकिन नींद तो आंखों से कई दिनों से आंख मिचौली खेल रही थी और पकड़ में ही नही आ रही थी। बड़ी मुश्किल से ईश्वर से प्रार्थना करते करते वह सोई कि प्रभु एक दिन फिर से ऐसा जरूर दिखाना कि किसी सुबह जब हम उठें तो कोरोना प्रभावितों का आंकड़ा शून्य हो जाए और आपकी इस पृथ्वी से कोरोना महामारी हमेशा के लिए समाप्त हो जाए।

सुबह उठकर अपना योगाभ्यास कर वह नहाकर पूजा करने बैठी। ये उसका नित्य नियम था। अपने घर के मंदिर से हमेशा से उसे स्वयं में एक नई ऊर्जा संचार का अनुभव होता था।
पहले भी हर मुसीबत के वक़्त वह ईश्वर से यही प्रार्थना करती आई थी कि चाहे कितनी भी बुरी परिस्थिति आए, कितना भी दुख हो, बस आप हर स्थिति में हमारे सिर पर अपना हाथ बनाएं रखें। ईश्वर में उसका अटल विश्वास था और कोई भी बुरी से बुरी परिस्थिति उसे इससे डिगा नहीं सकती थी। आज भी उसने अपने प्रभु के समक्ष वही दोहराया।

"मैं हर परीक्षा दूंगी। बस आप अपनी छत्रछाया हम सब पर बनाएं रखें। मेरे परिवार, रिश्तेदार, दोस्तों सहित पूरी दुनिया की इस कोरोना से रक्षा करें। पूजा करने के बाद वह काफी निश्चिंत और सकारात्मकता से भरी हुई थी।"

नाश्ता बनाकर, वह फ़ोन पर अपनी कॉलोनी के ग्रुप में सबसे उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेने लगी। महामारी आने के बाद से वह परिवार, दोस्तों, कॉलोनिवासियों के स्वास्थ्य के विषय में वह हमेशा फिक्रमंद रहती थी। हर दो चार दिन में किसी न किसी को मैसेज या फ़ोन कर उनसे हाल चाल पूछती रहती थी। आज उसे ग्रुप के माध्यम से पता चला कि उनकी कॉलोनी के 3 परिवारों के सदस्यों में कोरोना के लक्षण होने से उन्होंने अपने टेस्ट करवाए हैं। रिपोर्ट आनी अभी शेष थी। परंतु वे सभी खतरे की आशंका से घर में ही क्वारंटाइन थे।

किरण ने उन्हें फोन कर उनकी तबियत के बारे में जानना चाहा तो 2 परिवारों में फिलहाल सब ठीक था। वे डॉक्टर से बातचीत कर घर पर जरूरी इलाज ले रहे थे। परंतु तीसरे परिवार के 3 सदस्यों में से किसी ने उसका फ़ोन नहीं उठाया। जिसमें अधेड़ उम्र के पति पत्नी अपनी तलाकशुदा बेटी के साथ रहते थे। उसे थोड़ी चिंता हुई तो उसने उनकी पड़ोसन और अपनी सहेली ऊषा को फोन किया। ऊषा से पता चला कि कल उन्हें घर में भी चलने पर सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। किरण और ज्यादा चिंतित हो गई उसने सृष्टि को देखा वो अभी तक सो रही थी। वह ऊषा से बोली चलो हम एक बार उनके घर के बाहर खड़े होकर आवाज़ लगाते हैं।

"तू पागल है क्या! पता नहीं घर से बाहर निकलने में कितना खतरा है? चुपचाप बैठी रह। पिछले साल बहुत सेवा कर ली लोगों की। बहुत पुण्य कमा लिया, काफ़ी है… इतने में ही स्वर्ग मिल जायेगा तुझे… ऊषा बोलती ही चली जा रही थी।

"पागल मैं नही तू है।" कहकर किरण हंसने लगी।
"अरे! घर से बाहर इसलिए नहीं निकलना है कि पॉजिटिव लोगों के संपर्क में न आएं।"
"हम उनके घर के अंदर थोड़ी जाने वाले हैं और कोरोना कर्फ्यू के कारण रोड पर भी कोई नहीं है। मास्क, सैनिटाइजर की सेफ्टी और 2 मीटर की जगह 3 मीटर की दूरी से बात करेंगे तो कुछ नहीं होगा। दूरी कोरोना वायरस से बनानी है ऊषा, इंसानियत से नहीं।"
"खत्म covid-19 बीमारी को करना है आंतरिक संवेदनशीलता और भावनाओं को नहीं।"
"पता तो करना चाहिए न उन्हें कोई समस्या तो नहीं है। किसी मदद की जरूरत हुई तो?"

"मेरे पति तो घर के बाहर कदम भी नहीं निकालने देंगे।"
ऊषा ने असमर्थता प्रकट की।

"अरे यार अभी जीजू को भी सेम लेक्चर देने के लिए मेरे पास टाइम नहीं है।"
ठीक है, एक काम कर, तू बस उन्हें फ़ोन करती रहना। अगर बात हो तो पूछ कि कोई प्रॉब्लम तो नहीं है? बात हो तो मुझे बताना।"

इतना कहकर किरण ने फोन रखा। ग्लव्स और मास्क पहना, बालों को बांधकर उन्हें दुपट्टे से पूरा कवर किया। सैनिटाइजर उठाया और सामने के घर के गेट पर जाकर खड़ी हो गई। पहले गेट पर सैनिटाइजर स्प्रे किया, फिर अपने हाथों पर। गेट खोल कर गेट के पास ही खड़ी होकर आवाज़ लगाने लगी। करीब
5-10 मिनट के बाद 50-55 साल की 1 महिला ने हाँफते हुए दरवाज़ा खोला।

"क्या हुआ आंटी? ज्यादा तकलीफ हो रही है?"

"हाँ बेटा। आगे के कमरे में ही हूँ मैं। पहले लगा आजकल कौन आता है और कौन आवाज़ लगता है? वहम होगा। फिर जब अहसास हुआ कि सच ही कोई बुला रहा है! तो चलकर आने में समय लगा।"

"अभी कैसी तबियत है आपकी।" किरण ने पूछा

ठीक नहीं बेटा। कल शाम से खाना बनाने की भी हिम्मत नहीं हुई पानी पीने के लिए भी मुश्किल से उठ पा रहे हैं। तीनो बीमार हैं। कोई किसी के लिए कुछ नहीं कर पा रहा। इतना पैसा है, शानो-शौकत, जान-पहचान, कुछ काम नहीं आ रही। दो चार अस्पतालों में फ़ोन किया। सबने यही कहा कि बेड खाली नहीं। रिपोर्ट पॉजिटिव होती तो कोई जुगाड़ कर भी देते! पर अभी रिपोर्ट आई ही नहीं कहते-कहते वे रोने लगीं।"

किरण ने दूर से ही उन्हें सांत्वना देकर कहा आप बस हिम्मत रखिए। रोने से, परेशान होने से आपकी तकलीफ बढ़ेगी। सब ठीक हो जाएगा। मैं हूँ न आपके साथ।
और रही खाने की बात तो नाश्ता और खाना आज से मैं आप लोगों के लिए गेट के पास रखकर, घंटी बजाकर चली जाया करूँगी। आप उसे उठा लिया करें।

महिला के मुंह से शब्द निकल नहीं पाए। गला भर आया और बस हाथ जोड़े खड़ी रह गईं।

"बिल्कुल परेशान न हों। और ध्यान रखिएगा अपना।" मुस्कुराकर, किरण ने गेट बंद कर फिर से हाथों को सैनिटाइज किया। अपने घर का दरवाजा खोलने के पहले भी हाथ सैनिटाइज़ किये दरवाज़ा लगाकर सीधे बाथरूम में जाकर ग्लव्स और मास्क सर्फ के पानी में डालकर बाहर आई। अपने कपड़ों पर भी एक बार सैनिटाइजर से स्प्रे किया। और फिर सृष्टि को देखा। वह अभी तक सो रही थी। उसे आवाज़ देकर उठाया ब्रश करने को कहकर किरण किचन में जा रही थी कि फोन बजने लगा रिसीव करने के पहले ही फ़ोन की घण्टी बंद हो गई। उसने देखा ऊषा का फोन था और इससे पहले भी 8 मिस्ड कॉल थे। नंबर रीडायल किया तो उठाते ही ऊषा बरस पड़ी।

"क्या है यार! कितने फ़ोन किए। एक बार तो उठाती। बोल तो दिया तुझे की नहीं आ सकती तेरे साथ। पर मेरा भी मन नही माना। चल चलते हैं। किरण ने ऊषा को सब बताया बताया।

"कितनी भयावह स्थिति है ना ऊषा!!! कोरोना से बचने के लिए ही हॉस्पिटल में एडमिट होना है और एडमिट होने के लिए कोरोना होना जरूरी है!!"
कितनी बड़ी विडंबना है। कभी कभी हम कितने मजबूर हो जाते हैं।"

"वो आंटी तो वैसे ही हमेशा से पैसों का घमंड दिखाते थे। किसी से बात नही करते थे। उसी का परिणाम है।" ऊषा बोली।

"ऐसा नहीं कहते। जो कुछ भी हो हर इंसान को समय समय पर समझ आती है गलतियों का एहसास भी हो ही जाता है। उन्हें भी अब समझ आ ही गई है। और हम-तुम तो समझते हैं ना कि इंसान और इंसानियत से बढ़कर, कुछ नहीं दुनिया में।फिर क्यों व्यर्थ की बातें सोचना? हमें हमारी सोच को हर परिस्थिति में बरकरार रखना है।" किरण ने उसे समझाया।
"खैर में उन्हें खाने का बोल आई हूं। जब तक ठीक नहीं होते प्रोटीन सैचुरेटेड और इम्युनिटी बूस्टर डिशेस बना कर दिया करूँगी। और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से मिलकर बना काढ़ा। मुझे भरोसा है कि उनकी हालत में सुधार होगा।"

"तुझे तेरे वर्कर्स को सैलेरी देनी थी न! कल तू कह रही थी कि पैसे नहीं उनके लिए और लॉकडॉउन अगर बढ़ गया तो तेरे खाने पीने का क्या होगा?" ऊषा ने चिंता व्यक्त की।

आज जो स्थिति है ना और जो में देख कर आई हूँ, उसके बाद समझ आ गया कि इतना दूर तक का सोचने का टाइम नही है फिलहाल। किसी की जान जोखिम में हो हमारे सामने और हम चुपचाप बैठ जाएं! मुझसे नहीं हो पाएगा। और वैसे भी अभी घर में 1-2 चीजों को छोड़कर, उतना समान तो है कि फिलहाल 8-10 दिन उन्हें बनाकर देने के लिए बाहर से लाना नहीं पड़ेगा।" इतना कहकर किरण मुस्कुरा दी।

ओके माय मदर टेरेसा। गो फ़ॉर इट। आई एम प्राउड ऑफ यू। खैर ये खाना बनाना तो मेरे बस का है नहीं। वरना में भी तेरी मदद करती मगर तू तो जानती है, मुझसे अपने घर का ही कितना मुश्किल से बनता है, कहते हुए ऊषा ठहाका लगा कर हंस पड़ी। किरण को भी हंसी आ गई।
हाँ, अगर बाहर से कुछ लाना हो तो मैं सामान वगैरह लाकर तेरे घर के बाहर रख जाया करूँगी। सृष्टि छोटी है, बाहर जाना तू avoid ही कर।

ओके माय सुपरमैन… सॉरी सुपरवुमन😀 चल बाद में बात करते हैं।

हाँ। बस ये समाजसेवा में खुद का ध्यान भी रखना ऊषा ने जोड़ा।

वो तो मैं सबसे पहले रखती हूं। डोंट वरी! मुझे अपने लिए नहीं अपनी बेटी के लिए लंबा जीना है अभी। और जिऊँगी भी।

सृष्टि ने उठकर प्राणायाम किया। उसे उसका नाश्ता देकर, किरण अब दुगने उत्साह से सब परेशानियां कुछ समय के लिए भूलकर अंकल-आंटी और उनकी बेटी के लिए नाश्ता बनाने में लग गई। खाना बनाने का शौक उसे बचपन से था। इसिलए यहाँ आकर भी जब खुद का बिज़नेस करने की बारी आई उसने अपने पति को कैफ़े खोलने का सुझाव दिया था। खाना बनाने के अलावा उसकी दो और चीजों में गहन रुचि थी, एक योग- प्राणायाम और दूसरा आयुर्वेद।
वह हमेशा इन दोनों विषयों के बारे में पढ़ती रहती। ये दोनों उसके लिए शौक से कई ज्यादा थे। जब कहीं इनसे जुड़ा कोई फ्री सेमिनार या मिनी क्लासेज होती किरण जरूर भाग लेती। योग-प्राणायाम उसके व उसके परिवार के नित्य जीवन का हिस्सा था। आयर्वेद से जुड़े प्रयोग वह दैनिक जीवन में करती रहती थी।

इन्ही सब अनुभवों को मिलाकर अपनी पूरी सुरक्षा के साथ लगभग 15 दिन किरण ने उनकी हरसंभव सेवा की। किसी समान की जरूरत होती तो ऊषा उसे सामान लाकर देती। किरण सुबह शाम का खाना-नाश्ता देने के अलावा अलग-अलग दिन उन्हें अलग-अलग जड़ी बूटियों के प्रयोग से बने आयुर्वेदिक काढ़े देने के साथ ही, रोज सुबह उन्हें फ़ोन पर वीडियो कॉल पर योग भी करवाती। दवाईयां अपना काम कर ही रही थीं। उसी के साथ आयुर्वेद और योग इम्युनिटी को बनाए रखे हुए थे। निरंतर प्राणायाम ने, श्वास लेने में आ रही बाधा को खत्म करने का काम किया। साथ ही किरण फ़ोन पर बात कर उनका हौसला बढ़ती रहती। धीरे-धीरे उनकी तबियत में सुधार आ रहा था। तीनों बहुत खुश थे कि उन्हें अस्पताल नहीं जाना पड़ा।

आज सुबह डिजिटल पेपर पढ़ते-पढ़ते उसकी नज़र एक हृदयविदारक खबर पर रुक गई हेडलाइंस थीं-

"कईं होम क्वारंटाइन कोविड पॉजिटिव परिवार खाना न मिलने से परेशान!"

मन मसोस कर रह गई किरण। कितनी बुरी स्थिति है! उसका मन हुआ कि काश वह ऐसे लोगों को के लिए कुछ कर पाती।

पर कैसे? उनके मन मे अंतर्द्वंद शुरू हो गया था।

जैसे अंकल-आंटी के लिए बनाया वैसे ही और भी लोगों के लिए बनाऊं तो?

पागल है! कैसे करेगी?

जैसे अब कर रही हूँ।

इतने लोगों के लिए समान का बंदोबस्त करना पड़ेगा। कहाँ से आएगा? इतने पैसे तो हैं नहीं। कोरी भावनाओं से किसी की हेल्प हुई है कभी? मैं भी!

लेकिन मैं स्वयंसेवी संस्थाओं से संपर्क करूं तब?

पर वे मुझे राशन क्यों देंगे?

क्यों नहीं? वे भी तो हेल्प के लिए ही हैं न!

हैं। पर वे खुद डायरेक्ट मदद देंगे न! तुझे क्यों राशन देंगे?

पर बात करने में तो कोई हर्ज नहीं शायद दे दें। हो सकता है उनके पास बनाने वालों की कमी हो।

चल मान लिया कि तूने बात की। समान मिला बना भी लिया। पर इतने लोगों तक बना हुआ खाना पहुँचाएगा कौन? हर कोई काम तो संस्था नही करेगी।

ये तो बड़ी समस्या है। अगर मेरे पास पैसे होते तो नरेश (कैफ़े का हाउस कीपिंग कर्मचारी) को देती। और उस के जरिए पार्सल लोगों तक पहुंचाती उसकी भी इनकम हो जाती।

आखिर मैं ऐसा क्या करूँ कि पैसे भी आ जाएँ, लोगों की मदद भो हो जाए।

आखिर लॉकडाउन में क्या काम मिलेगा जिसे कर कमाई शुरू हो।

इस बार अंदर से कोई जवाब नहीं आया।

खुद से ही सवाल-जवाब करते-करते उसने सामने के घर के लिए खाना पैक कर लिया था और अब जाने के लिए जरूरी तैयारी सैनिटाइजर, मास्क, ग्लव्स, हेयर कवर जैसे काम निपटाने लगी।

ये भी एक नया झंझट ही है। पर बचना है तो सुरक्षा भी जरूरी है फिर वह खुद से ही बात करने लगी।

आज उसका मन बहुत व्यथित था। दिमाग काम ही नहीं कर रहा था। आंटी के घर तक पहुँच कर भी उसके मन मे वही द्वंद और न कर पाने की परेशानी चल रही थी।

आज उसे गेट खोल घंटी बजाने की जरूरत नहीं पड़ी। ऑन्टी,अंकल ओर उनकी बेटी रक्षा तीनों पहले से ही गेट खोल, रूम के दरवाजे के पास खड़े उसी के आने का इंतज़ार कर रहे थे। उसने उन्हें नमस्ते किया और तबियत के बारे में पूछा।

"तुम्हारी वजह से ही खड़े हो सके हैं बेटा ! बेहतर महसूस कर रहे हैं।क्वारंटाइन पीरियड भी अब पूरा हो चुका है और आज कोविड टेस्ट भी फिर से हुआ है। मुझे पूरी उम्मीद है, जैसा तुमने कहा था हम सबकी रिपोर्ट नेगेटिव ही आएगी।"

"बिल्कुल अंकलजी।आप अपना ध्यान ऐसे ही रखिए। ये सब आपकी हिम्मत और ईश्वर के आशीर्वाद का फल है।"
कहकर उसने टिफ़िन रखा और जाने लगी तो आन्टी ने टोका।

"क्या बात है तुम कुछ परेशान सी दिख रही हो?"

"कुछ नहीं" किरण धीरे से बोली।

"कोई समस्या है तो बताओ बेटा! इस बार अंकलजी बोले।

" कुछ नहीं जी अंकलजी बस अखबार की खबरें पढ़कर मन दुखी हो जाता है।"

"अरे ! तुम खुद ही हमे ना कहती हो कि न पढ़ें। नेगेटिविटी बढ़ती है और खुद ही पढ़ना बंद नही कर रही। कमाल है!"😀
2 पल के लिए किरण के चेहरे पर मुस्कान आगई।

"क्या पढ़ लिया वैसे कि मन परेशान हो गया ?"

"बस यही सब शहर की, देश की खराब स्थिति। लोगों को मदद मिल नहीं रही। कुछ परिवार आपकी तरह हैं, जहां सब बीमार हैं। उनके लिए भी काश मैं कुछ कर पाती।"

"बिल्कुल करना चाहिए।"

"मगर सोचने से सब पॉसिबल नही होता न अंकलजी। आप जानते हैं कैफ़े पिछले साल कोरोना आने से न के बराबर ही इनकम दे रहा था। और पिछले दो महीनों से तो lockdown के कारण बन्द ही है।"

आन्टी-अंकल, एक-दूसरे की और देख कर मुस्कुराए। और सैनिटाइज करके एक लिफाफा किरण के हाथ पर रख दिया।

"अरे! ये क्या?" किरण आश्चर्यचकित वह गई।

"तुम समान मंगवाओ इस काम मे हम तुम्हारे साथ हैं। ये लिफ़ाफ़ा तुम्हारे लिए ही लेकर खड़े थे। मगर असमंजस में थे, दे या न दें। हिचकिचाहट सी हो रही थी कि तुम क्या सोचोगी?"
बेटा! तुमने जो हमारे लिए किया, उसका मूल्य हम पैसों से तो चुका ही नहीं सकते। तुम तो हमारी बेटी हो अब। बेहिचक कभी भी कोई भी जरूरत हो मुझे जरूर बताना। ये पैसे यदि कुछ परिवारों के काम आ जाएं तो मैं खुद को भाग्यशाली समझूँगा।

मैं आपकी भावनाएं समझती हूं पर ये मैं नहीं ले सकती।

"क्यों बेटा! क्या सारे पुण्य अकेले कमाने का इरादा है? कुछ पाप हमे भी हमारे धो लेने दो।" आंटीजी ने कहा।

"देखो जो तुम कर रही हो वह सब शायद हम नहीं कर सकते। मगर जो बन सके वो तो कर ही सकते हैं।
और बेटा इस कोरोना काल मे ये तो हमें अच्छे से समझ आ गया कि इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं। अगर मेरा ये पैसा आज किसी जरूरतमंद के काम नहीं आया तो शायद फिर कभी किसी के काम ना आ पाए। इसे रद्दी जैसे यहाँ छोड़ जाने से अच्छा, किसी के भले के काम मे लगाया जाए। क्यों हैं ना फैमिली…
अंकलजी बड़ी सी मुस्कुराहट के साथ आंटीजी और रक्षा की और देख कर बोले।

हाँ बिल्कुल। दोनों ने खुशी से अंकलजी की और देखकर गर्दन हिला कर समवेत स्वर में स्वीकृति जताई।

मगर…

"अब कुछ नहीं। बस पैसों के बारे में नहीं, अब उनके बारे में सोचो जो हमारी तरह परेशान हैं। आंटीजी ने कहा।

किरण सोचने लगी समय भी कितना बलवान होता है। इंसान को सब कुछ समझा देता है।एक समय में, कॉलोनी के सबसे कंजूस कहे जाने वाले परिवार को आज दिल खोल कर मदद करते देख रही थी वह। काश ऊषा भी यहाँ होती। सोचकर उसके चेहरे पर मुस्कान आगई।

"थैंक्यू अंकलजी।"

थैंक्यू तो आप मुझे बोलना दीदी। मेरे पास भी इस कोरोना कोहराम में लोगों की मदद करने लिए एक बढ़िया सा आईडिया है। जो सबके लिए हेल्पफुल होगा। मैं सोच रही हूँ, मैं आपका एक यूट्यूब चैनल बनाऊं। आपकी हैल्दी रेसीपीज से लेकर आपके इम्युनिटी बूस्टर टिप्स एंड ट्रिक्स के, योग प्राणायाम के और वैसी मोटिवेशनल स्पीच जो आप हमें देती थीं फ़ोन पर, इन सबके वीडियो हम डालें, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग उसको फॉलो करके जल्दी ठीक हो सकें। उसी में हम अलग-अलग तरीकों से वैक्सीनशन अपील भी किया करेंगे आप जब भी कुछ भी बनाएं, बस वीडियो बनाकर भेज देना। एडिट, पोस्ट जैसा सब काम मेरे जिम्मे। सब मैं देख लूँगी। बहुत ज्यादा तो नहीं पर कुछ इनकम आपकी उससे भी हो जाए शायद।"
किरण को उसका आइडिया पसन्द आया।

तीनों को थैंक्यू कहकर वह घर की ओर चल पड़ी।

किरण बहुत ज्यादा खुश थी। अब उसे बड़े मिशन पर जाना था। सबसे बड़ी बात ये थी कि जिनसे किसी सहायता की, कभी, किसी ने कोई उम्मीद नही रखी थी, आज सिर्फ और सिर्फ उसी फैमिली की वजह से ये सम्भव होने जा रहा था। हम यदि मन से किसी का कुछ अच्छा करना चाहें तो रास्ते ईश्वर निकल ही देते हैं।

घर पहुंच कर सारे काम निपटाकर उसने सब रूपरेखा बनाई। नेट से सर्च कर और कुछ पहचान के डॉक्टर्स के साथ बात कर,  उसने एक डाइट चार्ट बनाया।
फिर उनके क्षेत्र की कुछ समाजसेवी संस्थाओं के ईमेल जुटाए। सबको मेल कर उसने अपनी मंशा जाहिर की। जहां जरूरत हुई फ़ोन करके बात की।

थोड़ी देर में 1 संस्था की और से उसे व्यक्तियों की संख्या क्षेत्रवार मोबाइल पर मिली। कल 5 लोगों का खाना उसे बनाना था।

उसने सुबह खाना बना कर तैयार किया और संस्था के द्वारा दिए मोबाइल पर कॉल कर पार्सल ले जाने के लिए सूचित किया।

धीरे-धीरे जब संस्थाओं को पता चलने लगा तो उन्होंने भी उसे लिस्ट देना शुरू किया। रोज पार्सल की संख्या बढ़ती जा रही थी। कई बार नन्ही सृष्टि भी उसके छोटे- मोटे कामों में मदद करती। मगर अब अकेले उसके लिए इतना सब करना मुश्किल होता रहा था। उन्ही संस्थाओं के माध्यम से उसने कलेक्टर को ईमेल कर अपने कैफ़े कर्मचारियों को बुलाकर खाना बनाने संबंधी अनुमति मांगी। निर्धारित गाइडलाइन का सख्त पालन करने के आदेश के साथ उसे चार में से दो कर्मचारियों को बुलाने की अनुमति मिल गई। कैफ़े उसके घर के ही निचले हिस्से में था। जहां उसके दोनों कर्मचारियों के साथ मिल कर निरंतर वो इस कार्य मे लगी रहती। बाजार से लाये हुए सारे समान को वह अपनी निगरानी में गरम पानी, नीबू और सोडे के मिश्रण में धुलवाती। ग्लव्स पहन कर ही सब्जियाँ कटवाती। कोशिश करती की आज लाई हुई सब्जी आज न उपयोग कर दूसरे या तीसरे दिन उपयोग में लाएँ जिससे कोरोना का खतरा एकदम काम हो सके। अब सावधानी और ज्यादा रखनी थी। हर 1 घण्टे के बाद सबके ग्लव्स भी चेंज करवाती। दोनों कर्मचारियों के लिए उसने नीचे कैफ़े में ही रहने की व्यवस्था कर दी थी।
सुबह जल्दी या रात को जब भी उसे समय मिलता वीडियो रिकॉर्ड करती और रक्षा को भेज देती।

इधर रक्षा ने यूट्यूब चैनल बना दिया था। सभी वीडियो उसने इतनी आकर्षक एडिटिंग के साथ उम्दा तरीके से पोस्ट किए कि बिना वीडियो देखे कोई जा न पाए। हर पार्सल के साथ किरण का मेल आईडी और यूट्यूब चैनल की लिंक डालते, जिससे हर पेशेंट के पास खाना पहुँचने के साथ ही वे ये सब तरीके अपना कर जल्दी ठीक हो सकें और साथ ही कोई समस्या हो या कुछ पूछना चाहें तो किरण के मेल आईडी पर वे उनसे पूछ सकें।
मेल आईडी, यूट्यूब का पूरा जिम्मा रक्षा ने संभाल रखा था। सभी कमेंट्स और मेल्स के जवाब वह किरण से पूछ कर दिया करती। धीरे धीरे चैनल के सब्सक्राइबर, लाइक्स एंड व्यूज बहुत बढ़ने लगे। रक्षा के पापा सामान मंगवाने के लिए समय समय पर मदद दिया करते। कभी-कभी कुछ कॉलोनीवासी भी अपनी अपनी सुविधा और हैसियत के हिसाब से सामान लेकर दे जाते।

इधर लॉककडाउन में भी धीरे धीरे ढील दी जाने लगी। कैफ़े वालों के लिए होम डिलीवरी सुविधा शुरु कर दी गई थी।
अब उसका चैनल फेमस होने से उसे देखने वाले जो लोग बीमार नहीं थे, वे भी इम्युनिटी बढ़ाने और खुद को स्वस्थ रखने के लिए किरण के कैफ़े से खाना मंगवाने के लिए संपर्क करने लगे।





कुछ यूट्यूब और कुछ पार्सल की होम डिलीवरी के जरिये उसकी थोड़ी बहुत इनकम फिर शुरू हो गई। कई छोटे निजी अस्पताल और दूसरे क्षेत्रों की संस्थाएं भी अपने मरीजों के लिए किरण के कैफ़े से पैसे ऑफऱ कर खाना मंगवाने लगे। किरण ने उन सभी मरीजों को फ्री में ही पार्सल दिए जो अस्पताल में एडमिट थे। बाकियों से उसने चार्ज लिया। अब उसने कैफ़े का नाम बदल कर "कोरोना-कैफ़े-किरण" कर दिया था। रक्षा ने कारण पूछा तो उसने कहा कि "कोरोना के अंधकार ने ही तो मुझे सुनहरी किरण ढूंढने के लिए प्रेरित किया है।"

कैफ़े का बोर्ड जो देखता नाम पढ़कर एक बार तो ठिठक जाता। उस lockdown के खत्म होने के बाद जहां कईं कैफ़े रेस्टोरेन्ट बंद हो गये वहीं किरण के कैफ़े की गुडवेल्यु और ग्राहकी दोनों ही बढ़ चुकी थी। लॉकडाउन में दी गई ढील के समय से ही उसने कैफ़े में फ़ास्ट फ़ूड पूरी तरह बंद कर उसकी जगह पौष्टिक खाना ही बनाना शुरू कर दिया था क्योंकि लोग भी अब ऐसे खाने की महत्ता जान चुके थे।

आज किरण कैफ़े के बाहर खड़ी "कोरोना कैफ़े किरण" बोर्ड को निहार रही थी। आज कोरोना को पूरी तरह खत्म हुए एक साल हो गया पर किरण ने कैफ़े का नाम नही बदला। उसके कैफ़े को असली दिशा कोरोना ने ही तो दी थी। सच ही है इंसान चाहे तो बड़ी से बड़ी नकारात्मकता और बुरी से बुरी परिथिति में भी सकारात्मकता और नए रास्ते ढूंढ सकता है। वरना रोने के लिए तो कारणों की कमी है ही नहीं।😊उसने हाथ जोड़ ईश्वर का धन्यवाद किया और अपने काम पर लग गई।

"मन के हरे हार है मन के जीते जीत।"
ये भी एक समय है। जो बीत ही जाएगा। और इस बुरे समय के बीत जाने के बाद 1नया समय आएगा। जब सब कुछ पहले जैसा होगा। उम्मीद न छोड़ें, सकारात्मक रहें, स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें। अपने आसपास के लोगों की अपने सामर्थ्य के अनुसार मदद जरूर करें। पैसा अलमारी या बैंक लॉकर में पड़े-पड़े कोई काम का नहीं। यदि आप सक्षम हैं तो जो लोग परेशान हैं, उनकी हरसंभव मदद करें। याद रखें मदद कभी खाली नहीं जाती। हर अच्छाई लौट कर फिर किसी न किसी रूप में दुगना फायदा बन आपको ही मिलती है।😊

"कोरोना-कैफ़े-किरण" का डाइट चार्ट आपके साथ शेयर किया जा रहा है पौष्टिक खाएं स्वस्थ रहें।

सुबह का नाश्ता : पनीर, सोया, नट्स और बीजों को खाने से शरीर में ताकत आती है। इन दिनों अखरोट, बादाम, जैतून का तेल और सरसों के तेल में ही खाना पकाने में इम्यूनिटी में सुधार होगा। कोविड रोगी को दिन में एक बार हल्दी वाला दूध पीना चाहिए।
इससे शरीर में ऊर्जा का स्तर बना रहता है। कोरोना पॉजिटव होने पर विटामिन और मिरल्स से भरपूर फल और सब्जियां अच्छी मात्रा में खाएंगे, तो फायदा होगा। आप चाहें तो 70 प्रतिशत कोको के साथ डार्क चॉकलेट ले सकते हैं। कोविड रोगियों के मुंह का स्वाद खराब हो जाता है या उन्हें खाना निगलने में दिक्कत होती है, ऐसे लोगों को थोड़ी-थोड़ी देर में नरम भोजन करने का सुझाव दिया जाता है।
वेज पोहा, चीला, नमकीन उपमा, नमकीन सब्जी सेवई, इडली प्लस दो अंडे की सफेदी, हल्दी वाला दूध और अदरक का पाउडर।

2. दोपहर का भोजन- मल्टीग्रेन ग्रेन फ्लर रोटी, चावल, सब्जी पुलाव, खिचड़ी, दाल या हरी सब्जी, गाजर या ककड़ी का दही सलाद।

3. शाम का नाश्‍ता- अदरक की चाय , वेज, या इम्यूनिटी सूप या स्प्राउट्स चाट। रोगी को दस्त के दौरान अदरक की चाय और वेज खिचड़ी खाना खाहिए।

कोविड के सही होने के बाद भी रोगी को कई दिनों तक थकावट महसूस होगी। इसे दूर करने के लिए केला, सेब, संतरा जैसे ऊर्जा बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना अच्छा है। सलाद या फिर भोजन को शकरकंद को शामिल करना ना भूलें। ऑर्गेनिक शहद और चूने के साथ गर्म पानी पीने से थकान को दूर करने में बहुत मदद मिलेगी।

कोविड रोगियों को बचा हुआ या बासी भोजन खाने से बचना चाहिए।

कार्बोहाइडेट, फैट और प्रोटीन से भरपूर संतुलित डाइट लें।

रोगी के शरीर के अनुसार, ओरल न्यूट्रिशन सप्लीमेंट्स और एंटीऑक्सीडेंट्स देने की कोशिश करें।

कोराना में नियमित शारीरिक गतिविधि और सांस लेने वाले कुछ व्यायामों को करने की सलाह दी जाती है।

मांसपेशियों में ताकत भरे और ऊर्जा का स्तर बढ़ाए। विशेषज्ञ कहते हैं कि रागी ओट्स जैसे साबुत अनाज में कार्बोहाइडे्रट अच्छी मात्रा में होता है। यह दीर्घकालिक स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।

कोविड रोगियों को बचा हुआ या बासी भोजन खाने से बचना चाहिए।

कार्बोहाइडेट, फैट और प्रोटीन से भरपूर संतुलित डाइट लें।

रोगी के शरीर के अनुसार, ओरल न्यूट्रिशन सप्लीमेंट्स और एंटीऑक्सीडेंट्स देने की कोशिश करें।

कोराना में नियमित शारीरिक गतिविधि और सांस लेने वाले कुछ व्यायामों को करने की सलाह दी जाती है।

जानकारी Google से साभार।




टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर। आपके लिखने का तरीके बहुत ही अच्छा है। ऐसे ही जीवन आगे बढ़िए। जीवन में आपको अपना लक्ष्य प्राप्त होगा। मेरी दुआए आपके साथ है

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  2. सदा सुरक्षित व स्वस्थ रहें, सपरिवार

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    1. 🙏🙏धन्यवाद सर। यही प्रार्थना है ईश्वर से कि सभी परिजनों सहित स्वस्थ रहें।🙏

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  3. बहुत सुंदर आज की परिस्थिति में सकारात्मक रहने की प्रेरणा देने वाली कहानी । आज की परिस्थिति में निस्वार्थ भाव से सेवा करते हुए दूसरो की सहायता करते हुए अपने आप को भी कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है, यह दर्शाने वाली कहानी । वास्तव में यह कहानी कहानी नहीं एक सत्य घटना लगती है जो सभी को इस महामारी में सावधानी के साथ एक दूसरे की सहायता करने के साथ ही हमेशा हेल्दी डाइट के लिए भी प्रेरित करती है । बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । लेखक को बहुत बहुत साधुवाद ।

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    1. लेखन की सेहत के लिए आपके द्वारा दी गई इस उत्साहवर्धक डाइट के लिए आपका बहुत बहुत आभार

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  4. बहुत ही प्रेरणादायक कहानी, दी।

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  5. Very nice Di bhot khub abhi sab ko yesi
    Inspiration ki jarurt he keep it Up Di hum sab aap k sath h aap yese hi likhte raho aage bado

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    1. Thanku dear. इतनी अच्छी टिप्पणी के लिए। आप सब लोगों का साथ और उत्साहवर्धन ही हर बार हिम्मत और प्रेरणा देता रहता है और में फिर से चली आती हूँ। name show नहीं हो रहा है।

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  6. Ese tough situation me esi positivity ki zarurat he hum sabhi ko.

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