हमसफ़र
आज की मेरी स्वरचित कविता हमसफ़र पढ़ें। अपने विचार अवश्य व्यक्त करें। आपके सुझावों क ज़रिये मार्गदर्शन की प्रतीक्षा में .... dj हमसफ़र राह तुम्हारी क़दम मेरे हों, आँधी तूफ़ान या रेत के ढेरे हों, चलना हमेशा साथ- साथ। सही ग़लत का भेद कहीं न हो, अविश्वास का ज़हर कभी न हो, बस चलना तुम साथ- साथ। शहद से मीठे बोल भले न हों, पुराने वो खेल चाहे न हों, बस चलना तुम साथ- साथ। यौवन का सूरज चाहे ढल जाए, बसंती बयार साथ छोड़ भी जाए, बस चलना तुम साथ- साथ। मुश्किलों भरी राह हो, सिर्फ काँटें न कोई ग़ुलाब हो, फ़िर भी चलना तुम साथ- साथ। मंज़िल का भी पता न हो अगर, आसान या मुश्क़िल कैसी भी हो डगर, कभी न छोड़ना हाथ, बस चलना तुम साथ- साथ। बस चलना तुम साथ- साथ। (स्वरचित) dj कॉपीराईट © 1...