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हमसफ़र

आज की मेरी स्वरचित कविता हमसफ़र पढ़ें। अपने विचार अवश्य व्यक्त करें। आपके सुझावों क ज़रिये मार्गदर्शन की प्रतीक्षा में ....    dj                                                     हमसफ़र     राह  तुम्हारी क़दम मेरे हों, आँधी तूफ़ान या रेत के ढेरे हों, चलना हमेशा साथ- साथ।  सही ग़लत का भेद कहीं न हो, अविश्वास का ज़हर कभी न हो, बस चलना तुम साथ- साथ।  शहद से मीठे बोल भले न हों,  पुराने वो खेल चाहे न हों, बस चलना तुम साथ- साथ।  यौवन का सूरज चाहे ढल जाए, बसंती बयार साथ छोड़ भी जाए, बस चलना तुम साथ- साथ। मुश्किलों भरी राह हो, सिर्फ काँटें न कोई ग़ुलाब हो, फ़िर भी चलना तुम साथ- साथ।  मंज़िल का भी पता न हो अगर, आसान या मुश्क़िल कैसी भी हो डगर, कभी न छोड़ना हाथ, बस चलना तुम साथ- साथ।  बस चलना तुम साथ- साथ।  (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित न

ज़िन्दगी सिखा ही देती है.……

आज पढ़ें मेरे अनुभव से जीवन पर लिखी एक कविता  ज़िन्दगी सिखा ही देती है.……  पल पल गिरकर पल पल उठना, ठोकर खाकर फिर सम्भलना , ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  गम भुलाकर खुशियाँ चुनना, रेत में से मोती का मिलना, ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  खुद के लिए खुद से लड़ना,विनम्रता से कैसे झुकना, ज़िन्दगी सिखा ही देती है....... खोकर फिर पाने की कोशिश करना,भावनाओं में बह जाने से बचना, ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  रोते रोते फिर लेना, हंस कर किसी के गम  मिटाना, ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  चुभते काँटों में से गुलाबों को चुनना, इस अग्निपथ पर कैसे चलना, ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  सुबह को उगकर शाम को ढलना, ढलकर  फिर उगते सूरज सा चढ़ना,  ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  अँधेरी राहों भी रोशनी को पाना, अकेले में खुद में खो जाना  ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  मरकर भी खुद को ज़िंदा रखना, किसी के आंसुओं को हँसी में बदलना, ज़िन्दगी सिखा ही देती है.......  आख़िरकार  ज़िन्दगी सबकुछ  सिखा ही देती है.......    "मैं भी  काफ़ी कुछ सीख ही गई।" (स्वरचित)   d