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प्रकृति की गोद में…

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  प्रकृति की गोद में, कभी रहते थे सुकून से, जब टूट जाते थकन से, वो हरी घास प्यार से बुला कर, थपकी दे सुलाया करती थी। कई बार दादी की नर्म गोद सा, एहसास दिलाया करती थी। पंखा झलते थे वृक्ष पितामह जैसे, कुहुकिनियाँ(कोयलें) गीत सुना, माँ की लोरी की सहलाया करती थीं। पापा की मजबूत बाहों ने धरा होता  अम्बिया के वृक्ष का हाथ, उस हिंडोले पर झूल में खूब इतराया करती थी। उड़ती धूल जब आंखों में आती, भाई बहनों की मीठी नोक-झोंक सी सताया करती थी। आंखें मीठी नींद खुद में भरकर,  फिर सपनों की नगरी ले जाया करती थीं। अब तो सूखे तृण हैं नरम घास की जगह  वृक्ष हमने छोड़े नही, कुहूकिनी रूठ कर, जाने किस देस में डेरा डाल बैठी है, धूल और तिनके नोक-झोंक के लिए रस्ता ताकते है और हम मजबूरन बस खिड़कियों से बाहर झांकते है। 22 मई 2021 #AdhureVakyachallenge #nature #naturelove #Naturehurts #responsibility  #pandemichealer

घाट

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समस्याओं के घाट पर हम अलसुबह बैठ जाते हैं, बुला- बुला कर उन सबके दर्द रोज सुनते जाते हैं। सुन कर दर्द उन सबका फिर अश्कों के खजाने लुटाते हैं, जो है पहले से उनके पास, उन्हें वही दिए चले जाते हैं। जब अश्रु मिलकर "सूने" उन घाटों को भर जाते हैं… ये कैसा समाधान है सोचती हूं मैं क्यूँ आंसू को हम आंसू  और खुशी को खुशी देने को यूँ आतुर हो जाते हैं!? दर्द को राहत और ग़म को खुशी क्यूं दे नहीं पाते हैं…?  जिसके पास जो है उसकी झोली बस उसी से भरते जाते हैं। चलो आज से आंसू को मुस्कान, समस्या को समाधान दे जाते हैं,  समस्याओं के इस घाट पर खुद को ही, एक नया आयाम दे जाते हैं। 21, may, 2021