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ईश्वर

' मन के मोती'  में आज फिर से डायरी से ही कुछ शब्द  27 feb 2012   at 3:00pm  monday सच  है, भगवान कभी हमारी ज़िंदगी से अपनी अहमियत कम नहीं होने देते हैं।  हम जीवन के हर मुश्किल मोड पर आकर उनसे कहते हैं कि   "बस ये हमारी  सबसे बड़ी और आखिरी wish है।  please भगवान एक बार इसे पूरा कर दीजिए।  i promice इसके बाद मैं आपसे कुछ नहीं माँगूंगा /माँगूंगी ।" मगर ये कहते वक़्त  हम शायद ये भूल जाते हैं कि आख़िर वो भगवान हैं। सर्वशक्तिमान हैं। उनके द्वारा तो पहले ही सबकुछ सुनिश्चित किया जा चुका है। कब,किसे ,कहाँ,कैसे ?उनकी पल -पल ज़रूरत  हमें  होगी, ये वो पहले से जानते हैं और इसीलिए शायद हमसे इस तरह के शब्द बुलवाते हैं। लेकिन जब फिर से हमारे समक्ष वो घड़ी आ जाती  है कि हमे उनसे अगली चीज़ माँगनी  होती है , हमें उस सर्वशक्तिमान की महत्ता याद आती है।             अनुभव ही जीवन में सबकुछ है।  अनुभव लेकर सीखी हुई बातें ताउम्र साथ देती हैं। आगे गलतियाँ करने से रोकती हैं और ...

ये लम्हें...ये पल....

' मन के मोती'  में आज  फिर मेरी डायरी  का एक पेज  28  feb 2012  at 4:00pm  tuesday  जीवन में कुछ पल  अविस्मरणीय  और  अति सुन्दर होते हैं। जिन्हें  याद रखने की  ज़रूरत  नहीं पड़ती।  वो हमारे स्मृतिपटल पर सदैव विराजमान रहते हैं। बिल्कुल  किसी अच्छी फ़िल्म  की पटकथा  की भांति।                         अगर  इन पलों  में, अपने साथ होते हैं , तो  इन पलों की महत्ता  भी बढ़ जाती  है।  खुशियाँ  दुगुनी  हो  जातीं  हैं। जीवन के ख़ूबसूरत होने का  अहसास होता है। और हमसे जुड़े विशेष दिन में , अगर कोई  हमें 'ख़ास'   होने का अहसास कराए  तो उन पलों की ख़ूबसूरती में  चार -चाँद लग जाते हैं।  जब हमारे अपने हमारे  लिए सोचते हैं , हमें 'विशेष'  होने का अनुभव कराते हैं ,हमारी ख़ुशी में खुश होकर शामिल  होते हैं, तो जीवन पूर्ण सा  लगता...

ये रिश्तों की पहेली

' मन के मोती'  में आज  मेरी डायरी  के  पन्नों में से एक..........  29 feb 2012   at 2:00pm  wednesday  ये एक अद्भुत  और बहुत ही सुन्दर, सुखद अनुभूति है।  सच में, क्या दुनिया में ऐसा होता है ? लेकिन अनुभव करने के  पश्चात ऐसे किसी प्रश्न की आवश्यकता ही नहीं रह जाती। हाँ  ये होता है।  दो अलग अलग परिवारों संस्कारों में पले बढ़े लोगों में कईं वैचारिक , सांप्रदायिक ,पारिवारिक  मतभेदों के बावज़ूद , ऐसा लगाव, ऐसा मोह एक दूसरे के प्रति  हो जाना , निश्चित ही आश्चर्यजनक है। परन्तु असंभव नहीं है। उनके बीच रिश्ता कोई भी वो मायने नहीं रखता।  मायने रखती है सिर्फ और सिर्फ मानवीय संवेदनाएँ , आत्मा का जुड़ाव। जहाँ एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव होता है, वहाँ  व्यक्ति के चेहरे के हाव-भाव , उसकी भाव-भंगिमाएँ, उसकी हर एक प्रतिक्रिया,उसके अंदर चल रहे विचारों, बातों और अनुभूतियों से हमें अवगत करा देती हैं। जबकि इन सब में शब्द बिल्कुल नगण्य होते हैं। बिना शब्दों के किसी के मन की बात...