कोरोना-कैफ़े-किरण

"कुछ समझ नही आ रहा क्या करूँ।" चिंता से भरी किरण, पूरे घर में इधर से उधर घूम रही थी। ये तो अच्छा है कि घर की छत है। वरना! कहाँ जाती वह सृष्टि को लेकर? उसकी दृष्टि सृष्टि पर पड़ी। 7 साल की सृष्टि सुकून से सो रही थी। रात के 2 बज चुके थे, परन्तु किरण की आंखों में नींद नहीं थी। होती भी कैसे? कोरोना ने सबके जीवन को इस तरह अस्त-व्यस्त कर दिया था कि लोग बस जीवन बचाने और परिवार का भरण पोषण कैसे किया जाए इसी चिंता में घुले जा रहे थे। अधिकतर लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) तो इसी डर, घबराहट और नकारत्मकता ने ही कम कर दी थी। ऐसा संकट तो पहले कभी नही आया! किरण सोचने लगी। 6 साल पहले किरण के पति घर के निचले भाग में एक छोटा सा कैफ़े और नन्ही सृष्टि को किरण की गोद मे डाल, पंचतत्व में विलीन हो गए थे। तब से किरण सब कुछ अकेले संभाल रही थी। 1 साल पहले घर के निचले हिस्से में शुरू किए गए उस छोटे से कैफ़े से वह अपनी जीविका चलाने और बेटी को बेहतर भविष्य देने की कोशिश में लगी थी। सब कुछ ठीक ही चल रहा था। परंतु अचानक आई इस महामारी के चलते, पिछले साल लगे देशव्यापी लॉकडाउन ने हर देशवासी की कम...