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"आत्मसम्मान की ख़ुशी"

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"आत्मसम्मान की ख़ुशी"   "आत्मसम्मान की ख़ुशी" रामप्रसाद जी, हाथ में चाय का कप लिए अख़बार का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे। आज अखबार में उनके लाल का फ़ोटो सहित इंटरव्यू जो आने वाला था! हाथ में कप तो था, पर चाय पीने की इच्छा पर, अखबार में, अपने बेटे के इंटरव्यू को पढ़ने की उत्सुकता बहुत भारी थी। उनके शहर का सबसे बड़ा बिज़नेस टाईकून, उनका बेटा, अरविंद! इंतजार करते हुए, वे उसकी यादों में खो गए। कल की ही बात लगती है कितना छोटा सा था! कितना लाड़ला हम दोनों का! शाम होती और रोना शुरू हो जाता। 1 साल का होने तक उसका ये सिलसिला नहीं थमा। रमा और मैं बारी-बारी, आधी-आधी रात ही सो पाते थे। उसको चुप करने के रातभर किए गए सारे प्रयास नाकाम होते। आख़िरकार वह सुबह हमारे जागने के समय पर ही सोता!! सोचकर मन भीग गया उनका। अतीत के गलियारों में कुछ और चक्कर लगा ही रहे थे कि पेपर वाले की गाड़ी का हॉर्न बजा। हड़बड़ी में चाय का कप रख, वे भागे। जैसे पेपर वाला आज उन्हें बिना पेपर दिए ही चले जाने वाला हो!!पेपर लगभग उसके हाथ से छीनते हुए अपनी कुर्सी तक आते-आते, उन्होंने पेपर के पन्ने पलटना भी शुरू कर द