क्या मैं भी हुनरमंद हूँ ?
रोज कुछ नया लिखती हूँ, रोज कुछ नया गढ़ती हूँ, बस लिख लेती हूँ, इसलिए ही आजकल खुश दिखती हूँ। वो उदासी वो निराशा, अब गायब सी हो गई है, लेखन से मन में, राहत सी हो गई है। लिखना तो बस अब , एक आदत सी हो गई है। शायद इसीलिए, आजकल, ये कलम भी साथ देती है, मेरे मन की तुरंत ही, कागज़ पे उतार देती है। और मुझ पर लदा हर बोझ , एक पल में ये हर लेती है। कुछ नया करके मन ही मन प्रसन्न हूँ। ये सब कैसे हो रहा है, सोचकर मै खुद भी दंग हूँ। ये कागज़ कलम मुझे, और इन्हें मैं पसंद हूँ। आजकल लगने लगा है कि, मैं भी एक हुनरमंद हूँ। (स्वरचित) dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google इस ब्लॉग के अंतर्गत लिखित/प्रकाशित सभी सामग्रियों के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं। किसी भी लेख/कविता को कहीं और प्रयोग करने के लिए लेखक की अनुमति आवश्यक है। आप लेखक के नाम का प्रयोग किये बिना इसे कहीं भी प्रकाशित नहीं कर सकते। dj कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google मेरे द्वारा इस ब्लॉग पर लिखित/प्रकाशित सभी सामग्री मेरी कल्पना पर आधारि...