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अब लौट भी आओ

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ऐ मेरे प्यारे अश्क़ों अब लौट भी आओ...  माना कि मैंने ही कह दिया था एक दिन, चले जाओ कभी ना आना...  परेशान सी हो गई हूँ अब तुमसे.... लेकिन इतनी सी बात पर इतनी नाराज़गी ऐसा भी क्या रूठना, कि वो नेह नाता ही तोड़ लिया ? पहले तो झट से चले आते थे, बिना मेरे बुलाए ...   अब लाख मनाने पर भी नहीं आते ... एक समुन्दर था मेरे पास तुम्हारे नेह का ... जब मैं चाहूँ या ना भी चाहूँ तुम बरस पड़ते थे ... और धुल जाता था मन में बसा हर दर्द। मुझमें ही बसे हुए थे न तुम तो हरदम मुझसे मिलने को तैयार ... इंतज़ार ही किया करते थे कि कब मिलन हो ...   फिर अब कहाँ खो गए हो ... ? उस नेह समंदर का एक क़तरा भी नहीं रहा अब तो ये सख्त हो चुकी आँखे तरस रही हैं तुमसे मिलने को ...   अब फिर इनमे जमी बर्फ पिघलना चाहती है  एक बार फिर से बरस जाओ उसी तरह ...     कि मिटा दो आँखों से होठों के फ़ासले को  क्यूँकि झूठी मुस्कान को आज सच्चे अश्कों की अहमियत फिर से मालूम हुई है।  (स्वरचित)   dj    कॉपीराईट  © 1999 – 2020  Google मेरी अन्य रचना  "छोटू" को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए