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जीवन सारथि (भाग 4)

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जीवन सारथि कहानी का यह चौथा भाग है यदि आपने पिछले तीन भाग नहीं पढ़े हैं तो यहां क्लिक कर उन्हें पढ़ सकते हैं। जीवन सारथि भाग 3 जीवन सारथि भाग 2 जीवन सारथि भाग 1 जीवन सारथि भाग 4 "मैं बैठ सकता हूँ यहाँ?" राजश्री की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया न पाकर, उसने पूछा। "ये मेरा घर नहीं है, जहाँ बैठने के लिए आपको मुझसे इजाज़त लेनी पडे।" "मुझे डिस्टर्ब किये बिना, आप जहाँ बैठना चाहें बैठ सकते हैं।" बेरुख़ी से राजश्री ने जवाब दिया। उतरा सा चेहरा लिए वह सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।  राजश्री अपनी डायरी में लिखने में तल्लीन थी। अंदर से थोड़ी असहज जरूर हुई पर दिखाना नहीं चाहती थी। सामने बैठे व्यक्ति के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वह कुछ कहना चाहता है। पर शब्द जैसे गले में ही अटक कर रह जा रहे थे। "राssज...श्री.." बमुश्किल उसके मुंह से निकला। प्रतिउत्तर में फिर सन्नाटा...और बेरुख़ी "... मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।" "जो बात करनी है, उसमें बात करने जैसा कुछ नहीं है।" राजश्री ने अपनी डायरी में ही नज़र गढ़ाए हुए रूख़ा-सा जवाब देकर, उसके क