ये प्रेम तुम्हारे बस का नहीं

ये प्रेम तुम्हारे बस का नहीं तुम सिर्फ प्रेम पढ़ सकते हो, यूँ प्रेम पर कुछ लिख जाना तुम्हारे बस का नहीं। तुम प्रेम कर तो सकते हो मगर, उसमें डूब जाना तुम्हारे बस का नहीं। मेरे अश्कों को रोक सकते हो,उन्हें झट से पोंछ कर, पर मन पर दिए घावों पर मरहम लगाना तुम्हारे बस का नहीं। प्रेम करना बस में है जरूर तुम्हारे, पर प्रेम में जी पाना बस उसमें रह जाना, तुम्हारे बस का नहीं। तपस्या है ये जो यूँ ही पूरी नही होती, इसमें जिस्म को नहीं आत्मा को रिझाना होता है... और यूँ... ऐसे ही... किसी के लिए मर मिट जाना तो तुम्हारे बस का नहीं। सिर्फ एक क्लिक में पढ़ें जीवन बगि या