ये प्रेम तुम्हारे बस का नहीं

ये प्रेम तुम्हारे बस का नहीं 







तुम सिर्फ प्रेम पढ़ सकते हो,
यूँ प्रेम पर कुछ लिख जाना तुम्हारे बस का नहीं।

तुम प्रेम कर तो सकते हो मगर,
उसमें डूब जाना तुम्हारे बस का नहीं।

मेरे अश्कों को रोक सकते हो,उन्हें झट से पोंछ कर, 
पर मन पर दिए घावों पर मरहम लगाना तुम्हारे बस का नहीं।

प्रेम करना बस में है जरूर तुम्हारे,

पर प्रेम में जी पाना बस उसमें रह जाना, तुम्हारे बस का नहीं।

तपस्या है ये जो यूँ ही पूरी नही होती,
इसमें जिस्म को नहीं आत्मा को रिझाना होता है... 

और यूँ...  ऐसे ही...  किसी के लिए मर मिट जाना तो तुम्हारे बस का नहीं।


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टिप्पणियाँ

  1. तुम प्रेम पा तो सकते हो ,
    पर उसे निभा पाना तुम्हारे बस का नहीं।
    ������

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. Ye moshum ki barish ye barish ka pani...... Kuch books chai ka cup or purane frds ❤

    जवाब देंहटाएं
  4. कोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई , होठों पर स्मित मुस्कान बिखेरने में सफल

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    1. और आपकी टिपण्णी भी इसमें सफल रही सर। बहुत बहुत आभार

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