ये प्रेम तुम्हारे बस का नहीं
ये प्रेम तुम्हारे बस का नहीं
तुम सिर्फ प्रेम पढ़ सकते हो,
यूँ प्रेम पर कुछ लिख जाना तुम्हारे बस का नहीं।
तुम प्रेम कर तो सकते हो मगर,
उसमें डूब जाना तुम्हारे बस का नहीं।
मेरे अश्कों को रोक सकते हो,उन्हें झट से पोंछ कर,
पर मन पर दिए घावों पर मरहम लगाना तुम्हारे बस का नहीं।
प्रेम करना बस में है जरूर तुम्हारे,
पर प्रेम में जी पाना बस उसमें रह जाना, तुम्हारे बस का नहीं।
तपस्या है ये जो यूँ ही पूरी नही होती,
इसमें जिस्म को नहीं आत्मा को रिझाना होता है...
और यूँ... ऐसे ही... किसी के लिए मर मिट जाना तो तुम्हारे बस का नहीं।
सिर्फ एक क्लिक में पढ़ें जीवन बगिया
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय🙏
हटाएंwao sis, beautiful lines👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंThanku dear
हटाएंतुम प्रेम पा तो सकते हो ,
जवाब देंहटाएंपर उसे निभा पाना तुम्हारे बस का नहीं।
������
😊
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हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 👌🏻👌🏻
जवाब देंहटाएंdhanywaad mahoday
हटाएंYe moshum ki barish ye barish ka pani...... Kuch books chai ka cup or purane frds ❤
जवाब देंहटाएंBeautiful lines di..
जवाब देंहटाएंThanku dear
हटाएंकोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई , होठों पर स्मित मुस्कान बिखेरने में सफल
जवाब देंहटाएंऔर आपकी टिपण्णी भी इसमें सफल रही सर। बहुत बहुत आभार
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