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इंतज़ार

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हमेशा बरसती आंखें धूप के इंतजार में है, नहीं है कोई राब्ता, सतरंगी इंद्रधनुषों से इनका। भोर में खिल आई कुछ कलियाँ, धूप के इंतजार में है, नहीं कोई वास्ता, ख़ूबसूरती और खुशबुओं से इनका। ओस की बूंदों में भीगी वो शाख़ें, धूप के इंतजार में है, कि नहीं कोई रिश्ता, मतलबी अहसासों की नमी से इनका। अंदर तक भीग चुके वृक्ष के पत्ते, अब धूप के इंतजार में हैं, कि नहीं कोई मतलब कुछ समय आकर नेह जताकर चली जाने वाली झूठी बरखा से इनका। सदियों से तपते हुए तपन के अहसास को खो चुका मन  धूप के इंतजार में है, कि यह तपन धूप की तपन से ही मिलकर बना पाएगी शायद कोई ख़ास रिश्ता अब मन का।