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1)रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

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हॉरर लिखने में रुचि कभी रही नही। पर एक एफ एम प्रोजेक्ट के तहत इसे लिखना शुरू किया है। उम्मीद है नया प्रयास आप सभी पाठकों को पसंद आएगा🙏 रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात एकदम वीरान से दिख रहे 2 मंज़िला भवन की दूसरी मंजिल पर  एक अंधेरी बालकनी से होती हुई तृषा एक कमरे की और जा रही है। यहाँ इतना सन्नाटा है कि हवा से हिलते पत्तों की आवाज़ भी सुनाई दे रही है। जिसे सुन तृषा का भय और बढ़ जाता है और इस भय के साथ बढ़ जाती है उसकी धड़कनें। जैसे जैसे उसके कदम आगे बढ़ते हैं उसकी बेचैनी और घबराहट बढ़ती चली जा रही है। उसे अपने आसपास अजीब सी हलचल महसूस होती है।  "मैंने पहले ही कहा था कि मैं इस फ्लोर पर आऊँगी ही नहीं।  पता नहीं क्यों यहाँ आते हुए हमेशा अजीब सा लगता है। लेकिन किसी को मेरी बात सुननी ही नहीं है।" बड़बड़ाती हुई वह आगे बढ़ रही है। अचानक अमर के कमरे के दरवाज़े तक पहुँचते ही उसके गले मे सेट किया हुआ दुपट्टा पीछे से कोई ज़ोर से इस तरह खींचता है कि उसका दम घुटने लगता है। उसकी चीख नहीं निकल पाती मगर वह छूटने का भरपूर प्रयास करती है, दुपट्टे को आगे से जोर से खींचते हुए वह इस पकड़ को ढीला करने का प्रयास

जीवन सारथि भाग 13 (अंतिम)

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जीवन सारथी भाग 12

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जीवन सारथि भाग 11

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जीवन सारथि भाग 10

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जीवन सारथि भाग 9

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पिछले भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें जीवन सारथि भाग 8 जीवन सारथि भाग 7 जीवन सारथि भाग 6 जीवन सारथि भाग 5 जीवन सारथि भाग 4 जीवन सारथि भाग 3 जीवन सारथि भाग 2 जीवन सारथि भाग 1 शालिनी वीणा का ही इंतज़ार कर रही थी। क्या हुआ कुछ बताया दीदी ने कौन था ये? किसकी बात कर रहा था। उसका दिल दिमाग भी ढेर सारे सवालों से लबरेज़ था इस वक़्त। लेकिन जवाब तो वीणा के पास भी नहीं था।  नहीं। डायरी में सब लिखा है दीदी कह रही थी। कहकर वीणा बुत सी उसके पास बैठ गई। शालिनी ने उसे पानी दिया और कहा चलो कुछ खा लो वीणा। तुम्हें जाना भी है फिर। राजन्शी के लिए, राजश्री दीदी का ख्याल रखने के लिए खुद का ख्याल रखना भी ज़रुरी है। मन ही नहीं है शालिनी। कुछ समझ ही नही आ रहा। जैसे एक पल में सब बदल गया पूरी दुनिया उलट पलट हो गई हमारी। मन तो मेरा भी नही है वीणा समझ तो मुझे भी कुछ नहीं आ रहा। मगर खाना तो होगा। वरना वीकनेस होगी ऐसे में। अब दोहरे कामों की जिम्मेदारी होगी हम पर। हाँ शालिनी,  दीदी के होते तो कभी महसूस ही नही हुआ सब कुछ वो संभाल लेती थीं। दोनों जाकर कैंटीन में बैठकर बेमन से थोड़ा बहुत खाकर आ जाती हैं। राजश्री को फिर क

जीवन सारथि भाग 8

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पिछले भाग पढ़ने के लिए क्लिक करें जीवन सारथि भाग 7 जीवन सारथि भाग 6 जीवन सारथि भाग 5 जीवन सारथि भाग 4 जीवन सारथि भाग 3 जीवन सारथि भाग 2 जीवन सारथि भाग 1  दीदी आपकी सारी बात हम मानेंगे। मगर आपको भी हमारी बात सुननी होगी। आप थेरेपीज कराएँगी चाहे कुछ भी हो।  वीणा बात समझो इसमें पैसा बर्बाद करने का कोई तुक नहीं। हमें उससे कुछ नही लेना दीदी! और आप खुद  सोचिए आपके पास ज्यादा समय होगा।  आप और ज्यादा लोगो का भला कर पाएँगी।  तुम समझ नहीं रही वीणा।  मुझे समझना भी नहीं है दीदी। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद राजश्री बोली- ठीक है मैं तैयार हूं। वीणा और शालिनी ने तसल्ली की सांस ली।  पर एक बात तुम्हे मेरी भी सुननी होगी वीणा। ज़िद छोड़ कर वापस जाओ। राजन्शी का स्कूल, तुम्हारा बुटीक, संस्था का काम और उनसे भी जरूरी मेरी डायरियां तुम्हे पढ़नी है। सारे काम समझने हैं। अगर चीज़े सही से न समझी तो बाद में बहुत से लोगों को परेशानी होगी।  राजश्री ने इस बार हल्के आदेशात्मक लहज़े में कहा। ठीक है कल शाम तक चली जाऊंगी। अनमने मन से वीणा ने हामी भरी।  आप लोग अब बाहर बैठिये। मीटिंग ऑर में आईएगा। उसके पहले ज़रूरत हुई तो आपको बुला ले