जीवन सारथी भाग 12
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वीणा ने आगे बताया
दीदी ने हाईकोर्ट में पिटीशन भी दी है। एक जनहित याचिका ऐसे बच्चों के लिए जिसमे अनाथ लावारिस बच्चों को गोद लेने की जटिल प्रक्रिया को सरल करने की अपील की है। ये प्रक्रिया बहुत जटिल होती है शालिनी पहले पुलिस में बताना होता है उसके माता पिता न मिलने पर बच्चे की बाल सम्प्रेषण ग्रह में कॉउंसलिंग करते हैं फिर उन्हें पुलिस किसी अनाथालय को सौंपती हैं। उसके डाक्यूमेंट्स बनवाकर फिर योग्य व्यक्ति को इसके लिए आवेदन करना होता है। भावी अभिभावक की पृष्ठभूमि की जांच पड़ताल के बाद ये निर्णय अनाथालय द्वारा लिया जाता है कि बच्चे को उन्हें दत्तक देना है या नही। फैसला सकारात्मक हो तो भावी अभिभावकों को इसके एक प्रेस विज्ञप्ति अखबार में जारी करनी होती है। यदि उस बच्चे के असली अभिभावक निर्धारित समय तक नही आते तब बच्चे को दत्तक दिया जाना निश्चित होता है। उसके बाद तो फिर एक और लंबी कागज़ी प्रक्रिया शुरू होती है गोद देने की। दीदी का मानना है कि इसलिए ज़्यादातर लोग इस जटिल प्रक्रिया कारण ऐसे बच्चो के बारे में ज्यादा सोचते नही और चाह कर भी उन्हें सहारा नहीं दे पाते। दीदी ने याचिका के ज़रिए मांग की है कि इस प्रक्रिया को थोड़ा छोटा किया जाए। बाकी प्रक्रिया हटाकर पुलिस द्वारा सीधे ही भावी परिजनों की ठीक से जांच पड़ताल कर अखबार में विज्ञप्ति के बाद लंबा इंतज़ार न करवाकर दिन के बाद ही बच्चे को गोद दे दिया जाए। इस याचिका पर सुनवाई और फैसले का वे काफ़ी समय से इंतज़ार कर रही है। काश ये जल्दी हो पाए।
और दूसरी ख्वाइश उनकी संस्था के रजिस्ट्रेशन की जिसके नाम से लेकर पूरी प्रोसेस करने का ज़िम्मा उन्होंने मुझे पहले ही दिया हुआ है। काश! ये दोनों काम उनके जल्द पूरे हों।
वीणा ऐसे व्यक्ति के पास इतना कम समय ये तो बहुत नाइंसाफी है वीणा भगवान ये कैसे कर सकते हैं आखिर जिसके पास इतने काम हैं चाहे मेरी उम्र ले ले पर ईश्वर उन्हें लंबी आयु दे। शालिनी कहती है।
जरूर देंगे मुझे भरोसा है शालिनी और उनके सब काम जल्द ही पूरे होंगे।
फ़ोन रख शालिनी राजश्री के पास जाती है वो अब भी गहरी नींद में है। शालिनी घर फ़ोन कर रानी और ऋषभ से बात करती है। उधर वीणा अपने कामो का ब्यौरा बना उन्हें एक एक कर निपटाने में लग जाती है।
ईश्वर कृपा से राजश्री को कोई गम्भीर साइड इफ़ेक्ट नही होता। दूसरे दिन उसकी रेडियोथेरेपी भी अच्छे से हो जाती है। जिसके बाद उसे ऑब्जरवेशन के लिए रखा जाता है। इस समय उसे गम्भीर सिरदर्द होता है और राजश्री कुछ समय के लिए अचेत सी हो जाती है। पर कुछ ही घण्टों में उसकी हालत में सुधार आ जाता है और अगले दिन डॉक्टर उसे विशेष हिदायतों के साथ छुट्टी दे देते हैं।
जाते हुए राजेश - मुझे पता है राजश्री तुम अपने घर जाने के बाद काम किये बिना मानोगी नही। तुम बेशक अपने सब काम पहले की तरह नॉर्मल तरीके से कर सकती हो। बस तनाव लेने की इजाज़त तुम्हें नही है और न ही ज्यादा थकने की। जितना बॉडी साथ दे बस उतना काम करना। एक्स्ट्रा बर्डन अपने शरीर खासकर दिमाग़ को नहीं देना है। बाकी की बातें शालिनी को पता ही है। टेक केअर। समय मिला तो मैं मिलने आऊंगा घर पर।
Thanku!! कहकर शालिनी और वीणा घर चले गए।
जाने से पहले ही शालिनी ने रानी को सफाई को लेकर खास हिदायत दे दी थी। वीणा राजश्री के पल पल की खबर रख रही थी। घर आते ही रानी ने राजश्री की आरती की और उसके गले लग गई।
एक हफ्ता हुआ है बस लेकिन ऐसा लग रहा है जैसे सालों से नहीं मिल पाई आपसे। कहते हुए उसकी आंखे गीली हो गई। राजश्री को देख ऋषभ भी दौड़ आया। मौसी कहकर उससे लिपट गया।
राजश्री खुद और शालिनी भी उसकी सेहत खानपान और हाइजीन को लेकर खासे सतर्क थे। उसकी थेरेपीज लगातार चल रही थी।
एक दिन घर लौटने पर वे बुजुर्ग दम्पति उसे इंतज़ार करते मिले। उन्हें बस इतना पता था कि राजश्री का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। उससे मिल के बाद उन्हें पता चला कि उसे ब्रेन ट्यूमर हुआ है वो भी ऐसा जिसका इलाज नही है। उन दोनों की आँखों से आंसू रुकने का नाम नही ले रहे थे खुद को संयत रख, वे थोड़ी देर रुक कर चले गए। दूसरे दिन से रोज़ वे नियम से घर आते अपने साथ कुछ बना कर लेते और राजश्री, शालिनी, रानी, माली काका सब साथ बैठकर खाते। राजश्री के शरीर पर अब बीमारी के प्रभाव नज़र आने लगे थे। उसका वजन पहले से कम हो गया था। चेहरा थोड़ा मुरझा सा गया था।
इस बीच रितेश अपनी पहली सैलेरी मिलने पर मिठाई लेकर आता है। राजश्री हॉस्पिटल में होती है। रानी, रितेश को राजश्री की बीमारी के बारे में बताती है। जिसे सुनकर उसे बेहद दुख होता है।
शर्मिंदगी के भाव से वह रानी से भी एक बार फिर माफ़ी मांगता है। जिस पर रानी कहती है - मेरी और तुम्हारी दोनों की परिस्थितियाँ खराब थी और ये वक्त का बुना जाल था बल्कि मैं तो कहती हूँ कि अच्छा ही हुआ। उस घटना के कारण हम दोनों का जीवन संवर गया। मुझे जीते जी ईश्वर के प्रतिरूप से मुलाकात करने का सौभाग्य मिला अब जीवन को एक नई दिशा मिली है और अलग तरह से सोचने का नज़रिया। तो धन्यवाद तुम्हे।
रितेश दूसरे दिन आकर राजश्री से मिलता है और फिर उसका भी लगभग हर 2-3 दिन में उससे मिलने आने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
राजश्री की कीमो और रेडियोथेरेपी चलती रही। धीरे- धीरे सर के सारे बाल चले गए। अब उसे थकान काफी होती थी। कभी कभी इतनी कि उससे बिना सहारा लिए दो मिनट भी बैठा न जाता। पर वो मज़बूती से डटकर खड़ी थी। थेरेपीज के साथ साथ अपने सभी जरूरी काम निपटा रही थी। शालिनी हर वक़्त साये की तरह उसके साथ रहती। दवाई खान पान आराम का भरपूर ध्यान रखती। 3 महीने का वक़्त बीत गया। संस्था में रोज सुबह शाम उसके लिए दुआएँ होती। सब डर के साये में जी रहे थे। खासकर राजश्री। उसकी दो अहम ख्वाइशें उसे जीते जी पूरे होने की आस थी। संस्था की ज़िम्मेदारी वीणा थी। पिटीशन पर जल्द सुनवाई के लिए वह अपने सम्पर्कों के जरिये प्रयास करने की कोशिश कर रही थी।
वीणा ने संस्था का ब्यौरा देने के लिए एक सुबह फ़ोन किया। काम की बातें होने के बाद उसने पूछा फिर बताइए मेरी दीदी कैसी हैं?
बड़ा मजा आ रहा है! जीवन का अलग पहलू देख रही हूँ। पता है वीणा बातों में लोग कैंसर पेशेंट के लिए सहानुभूति बहुत जताते हैं। मुझे लगता था लोग कितने अच्छे होते हैं संबल देते हैं ऐसे लोगों को जिन्हें कैंसर है। लेकिन वास्तविक अनुभव बड़े मज़ेदार हैं! आजकल मुझे बड़े अच्छे लोग मिलते हैं वीणा। वही जो शरीर लेकर घूमते हैं जिनमे आत्माएं बसना भूल गई शायद। कहीं जाती हूँ तो लोग मेरे सिर पर उजड़ा चमन देख अजीब नज़रों से घूरते हैं। एक दसरे को देख मुस्कुराते हैं। official meetings में पढ़े लिखे लोग भी साथ बैठकर खाना खाने से कतराते हैं। डरतें हैं उन्हें भी कैंसर न हो जाए। कहकर वीणा जोर से हंस पड़ी। कोई पार्टी हो तो शालिनी और मैं एक कोने में अलग थलग से बैठ खाना खा रहे होते हैं। सुनते हुए वीना का गला भर आता है।
तुम्हें पता है मैने कल शालिनी से क्या कहा?
क्या?
बमुश्किल अपनी रुलाई रोक कर वह पूछती है।
ये कि कल से मैं अपने साथ 1 बोर्ड लेकर चलूंगी। जिस पर लिखूंगी कि मुझे कैंसर है और इसे मैंने इनवाइट नहीं किया है। ये खुद ब खुद आ गया है मेरे पास चलकर वो भी बिना मेरी मर्ज़ी के। कहकर राजश्री फिर कहकहा लगा कर हंस पड़ती है। अच्छा है वीणा कि मेरा परिवार इस दुनिया से अलग है। खुशी है मुझे की हम रोबोट नहीं हैं। इस संवाद से दोनों की आंखे नम हो जाती है। वीणा मन ही मन एक निश्चय कर चुकी होती है।
इस दुनिया ऐसे नही बदलेगी दीदी हमें बदलनी होगी आप ही तो कहते हो न? और हम पूरी दुनिया चाहे न बदल पाएँ पर आसपास के लोगों में भावनाएँ जगया ही जाएँगे, आप देखिएगा।
हाँ मेरी फाइटर वुमन!
दीदी! श्रीधर भैया आये हैं आपसे मिलने।
ठीक है भेज दो उन्हें।
श्रीधर आया है वीणा फिर बात करतीं हूँ। कहकर वह फ़ोन रखती है।
कैसी हैं दीदी श्रीधर अंदर आते हुए पूछता है।
ठीक हूँ बिल्कुल।
आपके लिए good न्यूज़ है।
पीआईएल स्वीकार हो गई है। इसी हफ्ते में सुनवाई की तारीख भी मिल जाएगी।
राजश्री का लंबा इंतजार खत्म हुआ था उसे यह सुनकर खुशी हुई।
मैं चाहती थी मैं ही बहस करूँ इस याचिका पर। लेकिन पता नही कब डेट आये और कब फैसला। मेरे जीवन का कोई भरोसा नही है। इसलिए ये काम तुम्हें ही करना होगा।
आप चिंता मत कीजिये दीदी। याचिका की सुनवाई के लिए आप मुझे अपना वकील नियुक्त कर दीजिए। फैसला हक में ही आएगा मेरा वादा है आपसे।
ठीक है, कहकर राजश्री श्रीधर के साथ याचिका पर बहस के लिए बनाए अपने बिंदु और अन्य जानकारियाँ शेयर करती है। दोनों अपने काम खत्म करते हैं और शालिनी उनके लिए जूस ले आती है। इतने में रक्षा का फ़ोन आता है। दीदी कुछ हार्ड डाक्यूमेंट्स पर आपके साइन चाहिए वीणा दीदी नहीं आ सकती इसलिए उन्होंने मुझे कहा। मुझे आपसे मिलना भी है। आप कब घर मिलेंगे?
संडे को मेरी थेरेपी नहीं होती रक्षा। तुम तब आजाओ।
ठीक है दीदी।
दीदी शालिनी दीदी से बात करवाइये न एक मिनिट
शालिनी... रक्षा है फ़ोन पर तुमसे बात करना चाहती है... मुझसे ?
हाँ, बात करो।
हेलो! शालिनी दीदी! कैसी हैं आप?
ठीक हूँ रक्षा तुम कैसी हो मुस्कुरा कर शालिनी जवाब देती है।
मैं भी ठीक हूँ अच्छा सुनिए, अगर दीदी के पास हैं आप तो थोड़ा साइड में आकर बात करिये।
ठीक है बोलती हुई वह बाहर निकल आती है।
राजश्री उसे देखती रह जाती है।
बात करके वह फ़ोन देने वापस आती है।
कौन से सीक्रेट मिशन पर हो भई! कहकर राजश्री मुस्कुरा देती है।
नही दीदी मुझे लगा आप दोनों को काम में डिस्टर्ब न हो।
कहकर वह चली गई।
राजश्री की थेरेपीज जारी हैं। शनिवार को जब शालिनी राजश्री
को थेरेपी के लिए लेकर जाती है तो डॉक्टर राजेश उसे उस दिन थेरेपी के बाद घर जाने की अनुमति नहीं देते। वे कहते हैं कि आज इन्हें यहीं रहना होगा। राजश्री के कारण पूछने पर वे बताते हैं कि आज उसे उसके स्पेसिफिक डोस से ज्यादा रेडिएशन दिया गया है। इसलिए उसेअंडर ऑब्सर्वेशन रखना होगा।
राजश्री और शालिनी हॉस्पिटल में रुक जाते हैं। राजश्री की हालत सामान्य बनी रहने पर रात 8 बजे डॉक्टर उसे घर जाने की अनुमति दे देते हैं।
शालिनी और राजश्री घर के लिए निकलती हैं रास्ते मे राजश्री को लगता है कोई गाड़ी हॉस्पिटल से ही उनके पीछे है।
कहानी जारी है...
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