जीवन सारथि भाग 6



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जीवन सारथि भाग 1

वीणा और शालिनी उलझन और असमंजस की स्थिति में एक दूसरे को निहार रही हैं। दोनों समझ नहीं पा रही हैं कि क्या चल रहा है और क्या किया जाना चाहिए? डॉक्टर ने सेम मेडिकेशन के साथ उसे ट्रीटमेंट दिया और कुछ देर बाद बताया कि हालात में पहले से सुधार है। 1 बार  उसने आँखे खोल कर देखा मगर अभी पूरी तरह होश में नहीं है। अब तक किसी को उससे मिलने नही दिया। उन्होंने कहा कुछ और टेस्ट रिक्वायर्ड हैं पिछले सारी जांच रिपोर्ट्स और ये रिपोर्ट्स आने कब बाद ट्रीटमेंट शुरु होगा। 

शालिनी और वीणा दोनों का हल एक सा था बाहर से एक दूसरे को हिम्मत बंधाती मगर अंदर से दोनों की आत्मा रो रोकर बेहाल थी। रात के 10 बज चुके हैं। राजश्री का फ़ोन बजता है उस पर आशा नाम फ़्लैश हो रहा है। वीणा फ़ोन उठाती है।


हेलो!

हेलो! कौन? कुछ देर के लिए अनहोनी की आशंका में आशा चुप सी हो गई।

हेलो! दूसरी तरफ से  फिर से आवाज़ आई

जी म…मैं…आशा आप शालिनी बात कर रही हैं.? 

जी नहीं मैं वीणा,  शालिनी साथ ही है मैं देती हूँ।

नहीं, कोई बात नहीं  वैसे मुझे राजश्री से बात करनी थी। 

आशा जी फिलहाल वो...हॉस्पिटल में हैं।

यह सुनकर आशा ने एक ठंडी सी यह भरते हुए कहा।

वीणा शालिनी से कहो राजश्री के  बैडरूम में बेड के साइड दराज़ में लिफाफे में एक फ़ाइल है जिसमे उसकी कुछ रिपोर्ट्स हैं। वो जल्दी से मंगवा लो किसी से कहकर।

और वीणा किस हॉस्पिटल में हैं आप लोग? कौन से डॉक्टर उनका ट्रीटमेंट करवा रहे हैं मेरी बात करवाइये। 

जी ठीक है।

सोचविचार और ऊहापोह में डूबी वीणा बस इतना ही कह पाई। 

वीणा ने डॉक्टर को बुलाकर आशा से बात करने को कहा। कुछ देर बात करने के बाद डॉक्टर आशा से- ठीक है हम डॉक्टर राजेश को इन्फॉर्म करके बुला लेते हैं फ़ोन वीना को देते हुए डॉक्टर - पहले ही बात करवा देती तो आप लोगो का इतना टाइम और पैसा वेस्ट नहीं होता। कहकर डॉक्टर चले जाते हैं। 

वीणा असमंजस में शालिनी से पूछती हैं कौन है ये आशा जी.? तुम जानती हो.? 

नहीं वीणा।

पर वो तुम्हारा नाम जानती हैं। और शायद मुझे भी। वीणा ने एक बार फिर से नंबर  देखा। ये तो इंटरनेशनल नम्बर है शालिनी। 

कहीं बाहर दीदी का कोई ट्रीटमेंट  तो नहीं चल रहा ?क्योंकि डॉक्टर की बातों से भी यही लग रहा था कि इनसे पहले बात होती तो बेहतर होता। यानी उन्हें दीदी के बारे में वो पता है जो हमे उनके साथ रहते हुए भी नहीं पता। रुआँसी सी होकर वीणा बोली।

नहीं वीणा ऐसा नही हो सकता। ऐसा होता तो उनका बाहर आना जाना होता। और पिछले 2-3 महीनों से राजश्री दीदी 1 दिन से ज्यादा किसी काम के लिए बाहर रुकी ही नहीं।

फिर से फोन की बेल बजती है। इस बार रानी का फ़ोन था जो चिंतित स्वर में  राजश्री का हाल जानना चाह रही है। 

कैसी हैं अब दीदी आप मिले उनसे?

वीणा- नहीं रानी, अभी नही मिल पाए। दीदी अंदर ही हैं। पर पहले से ठीक हैं । 

आप उनसे बात होते ही मुझे भी फ़ोन कीजियेगा। बच्चों को खाना खिलाकर सुला दिया है मैने। 

Thanku! रानी!  तुम हो तो हम बच्चों की और से निश्चिंत हैं। बस अब दीदी जल्दी ठीक हो कर घर अजाएँ उनके बिना ये घर खाली ओर सुना लग रहा है। मन नही लग रहा कहीं। 

हाँ रानी। वो जल्दी आएँगी।

कुछ देर में डॉक्टर आकर बताते हैं कि राजश्री को होश आ गया है उसकी हालत अब पहले से काफी स्टेबल है। अब आप उनसे मिल सकते हैं। 

शालिनी और राजश्री जैसे तैसे अपने ऑंसू ज़ब्त कर अंदर पहुँची। राज श्री के हाथों में ड्रिप और मुँह पर ऑक्सीजान मास्क लगा हुआ है। 

अब ठीक लग रहा है न दीदी! उसके पास लगे स्टूल पर बैठते हुए बमुश्किल वीणा पूछ पाई। 

राजश्री ने हाँ में सिर हिलाकर जवाब दिया। 

उसी समय नर्स अंदर आई। शालिनी की और मुखातिब होकर-  इनकी हालात पहले से बहुत बेहतर है। सांस लेने में तकलीफ थी तो ऑक्सीजन लगाई थी। अगर इन्हें बिना मास्क के सांस लेने में परेशानी न हो तो आप थोड़ी थोड़ी देर के लिए बीच में मास्क हटा सकते हैं। जब जरूरत लगे तो फिर लगा दीजिये। कहकर नर्स ने उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर का नॉब सिस्टम समझा दिया। 


"जी ठीक है।" शालिनी ने कहा। राजश्री के कहने पर उसने ऑक्सीजन मास्क हटा दिया।

वाह! भई! तुम तो हर काम मे एक्सपर्ट हो गई हो शालिनी! 

मुझे कुछ नही आता दी, न ही मैं कुछ करूंगी जल्दी ठीक होकर घर चलो अब आप बस। शालिनी बोली ।

उसकी आंखों में उदासी साफ झलक रही थी।

ठीक है मेरी दादी माँ! कहकर राजश्री धीमे से मुस्कुरा दी।


अच्छा सुनो वीणा!

जी दीदी!

टाइम क्या हुआ है ?

12 बजकर 20 मिनट।

मेरी बात सुनो प्लीज़…श्रीधर को फ़ोन करो मेरे फ़ोन से वीणा ने उन्हें फ़ोन लगा कर दे दिया। 

हेलो दीदी

सुनो श्रीधर! मैं हॉस्पिटल में हूँ …।

क्या हुआ दीदी!? सब ठीक है।? हाँ,  बस थोड़ा बी पी हाई है। मैं एड्रेस भेजती हूँ ।यहाँ किसी को भेजकर मेरा वकालत नामा, और केस के लिए मेरा आवेदन पत्र और स्वीकृति आकर ले जाओ। इस केस की कल सुबह ही सुनवाई बहुत जरुरी है। डोंट वरी दीदी! मैं देख लूंगा।

फोन रखते ही शालिनी और वीणा राजश्री को घूरने लगी।

क्या हुआ?

ये तो आप बताइए आपको क्या हुआ है? शालिनी के मुँह से अनजाने निकल गया।


सब बता दूंगी तुम दोनों को जल्द ही। पर अभी कुछ दिन शायद अस्पताल में रहना पड़े । उसके पहले प्लीज़ संस्था के हर काम का ब्यौरा रक्षा को बताओ फोन करके। कुछ भी काम रुकना नहीं चाहिए। और वीना कल तुम भी चले जाओ शालिनी है यहाँ। राजश्री ने धीरे धीरे अपनी बात पूरी की। 

मैं आपको छोड़कर कही नही जाऊँगी। आपका जीवन रुक रहा है लेकिन काम नहीं रुकना चाहिए  न दीदी? आप  अपना आखिर  कब सोचोगे? वीना दुख से बिफर पड़ी।


"इस जन्म में शायद कभी नहीं!"

अंदर आते हुए एक शख्स ने जवाब दिया।

कहानी जारी है...

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