जीवन सारथि भाग 2

जीवन सारथी कहानी का ये दूसरा भाग है। 

यदि आपने भाग-1  नहीं पढ़ा है तो पहले यहाँ क्लिक करके पहले उसे पढ़ सकते हैं जीवन सारथि भाग 1






जीवन सारथि 

भाग 2


राजन्शी  की थाली चम्मच बजाने की आवाज़ से वीणा की तंद्रा टूटी,उसका ध्यान गैस पर गया; जिस पर रखी दाल उबल कर लगभग आधी हो चुकी थी।उसने गैस बंद किया और राजन्शी की और देखते हुए बोली -


बेटा 5 मिनिट बैठो बस में लेकर अभी आई।
राजन्शी उछलती हाथ नचाती हुई किचन से बाहर निकल गई।



ममा राजश्री मौसी मेरे जन्मदिन पर आएंगी ना?

खाना खाते हुए राजन्शी ने सवाल किया?


आप बुलाना तो जरूर आएँगी। 


हाँ ठीक है आप उन्हें कॉल करना, मैं उनसे बात करूँगी वैसे भी मुझे उनकी याद आ रही थी। 


ठीक है हम खाना खाने के बाद उन्हें कॉल करेंगे।

दोनों ने खाना खत्म किया। 6 साल की नन्हीं राजन्शी अपने छोटे -छोटे हाथों से सर्विंग डिशेस और बाकी चीज़ें किचन में रखने में वीणा की मदद करने लगी। 


ममा आपको में एक बात तो बताना भूल ही गई। आज मुझे मेम ने मुझे शाबासी दी और साथ मे चॉकलेट भी दी ममा.... वो भी बड़ी वाली राजन्शी के चेहरे से मुस्कराहट जाने का नाम नहीं ले रही थी


वीणा -और.... 


और..... कुछ नहीं


वीना ने उसे झूठे गुस्से से घूरा


अरे.... सच कह रही हूँ मैंने नहीं खाई मैं खाने वाली थी अभी...... पर याद आया कि आज हमने आइसक्रीम खाई है पर.... 


ममा प्लीज़ खा लूं? प्लीज़....तुरंत अपना अंदाज़ बदलते हुए दयनीय से भाव दिखाते हुए  राजन्शी बोली।


अच्छा ठीक है मगर जीभ पर रखना....दाँतों  से बिल्कुल नहीं चबाना और...... हाँ .. पता है ब्रश करना नही भूलना है... मुझे सब पता है ममा में कोई छोटी सी बच्ची थोड़ी हूँ।  वीणा को बीच में रोक कर सब हिदायतें खुद पूरी करती हुई शरारती मुस्कान के साथ राजन्शी बोली।


मेरी दादी माँ आप तो बहुत बड़ी हो..... सबसे बड़ी.....  वीणा ने हँसते  हुए उसके गाल पर एक चपत लगाते हुए कहा। 


राजन्शी चॉकलेट खाने में और वीणा किचन साफ़ करने में व्यस्त हो गई। 

राजन्शी ब्रश करके आओ तब तक मैं मौसी को फ़ोन लगा रही हूँ। 

ओके ममा कहकर राजन्शी चली गई.

वीणा ने राजश्री मैडम का नंबर डायल किया। 


राजश्री के फ़ोन की घंटी बज रही है.... 

राजश्री भीड़ में घिरी हुई लगभग 23-24 की उम्र की एक लड़की  के साथ खड़ी है। लोग तमाशबीन बनकर जमा हो गए हैं। 


"किस तरीके की मानवीयता है ये कपड़े भी खराब कर दिए आप लोगों ने मिलकर इसके।"

राजश्री धीमे पर सख़्त स्वर में बोली।


"आप क्या इसकी रिश्तेदार हैं, जो भाषण सुनाने आ गईं अपने काम से मतलब रखिए ना "

भीड़ में से एक ने कहा। 


"रिश्तेदार चाहे नहीं हूँ मगर इंसान ज़रूर हूँ और अपने काम से ही मतलब रख रही हूँ "


"आपको ज्यादा समाज सेविका बनने की जरुरत नहीं हैं पर्स चुराने की कोशिश की इसने" " ये भाई का "


"मैंने कुछ नहीं चुराया मेम साब" डरी सहमी सी आवाज़ राजश्री  के पीछे से आई....  मैं बस उठा के..... 

 

हां हां ज्यादा समझदार बनने की कोशिश मत कर झूठ बोलती है उसके आगे बोलने से पहले ही चिल्लाते हुए उसने लड़की  को चुप करा दिया।


"पर्स चुराया भी है तो क्या आपको इसे मार देने का हक मिल गया ?

 7 8 लोग मिलकर एक महिला के साथ बहुत अच्छा 

व्यवहार कर रहें हैं आप ?


चोरी की है तो पुलिस को फ़ोन कीजिए मैं खुद कर देती हूँ पर आप लोगों में इतनी सी संवेदनशीलता नहीं 

महिला पर हाथ उठा रहे हैं ?केस  तो  आप पर भी बनता है।"

सुनते ही 1 'समझदार'  तमाशबीन भीड़ से बाहर निकल लिया। 


"महिला है तो क्या फायदा ऐसे उठाएगी महिला होने

 का ?"


मैंने नहीं कहा फायदा उठाने दो। पर पुलिस किसलिए है शिकायत कीजिए और और आप भी तो कोतवाल न होकर भी कोतवाल बनने का फायदा उठा रहे हैं न। इसे कम से कम १ बार पूछिए क्यों किया? किसलिए किया इसने ऐसा? सफाई देने का हक़ तो भगवान भी देते हैं एक बार आप लोग उनसे भी बड़े हो गए?

 


"हमारे दुखड़े कम नहीं हैं और न ही इतना समय, जो रोड पर  बैठकर दूसरों का दुखड़ा सुनते रहें।" युवक तो जैसे जवाब तैयार ही लिए बैठा था छूटते ही तुरंत बोल पड़ा। 


"हां, आप जैसे लोग दुखड़ा सुनने के लिए बने भी नहीं हैं महोदय सिर्फ और सिर्फ तमाशा खड़ा करने के 

लिए बने  हैं और उसके लिए भरपूर समय है आपके पास। नहीं ?"


 राजश्री ने निडरता से ऊँची आवाज़ में कहा कहा  कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई पर वे लोग इतनी आसानी से कैसे हार मान लेते वह भी एक औरत से। 


अच्छा मेडम अपनी सहानुभूति अपने पास रखिए हमें कोई लेना देना नहीं है इससे। 


"अरे! लेना देना कैसे नहीं है कितने पैसे थे पर्स में?" राजश्री ने उसके चेहरे पर नज़र टिकाते हुए पूछा । 


500 रुपये इस बार युवक धीमे स्वर में शांति से बोला और इधर उधर देखने लगा। 


"मैंने कोई पैसे नहीं  चुराए मेम साहब।सिर्फ नीचे गिरा पर्स उठाया था देने के लिए और इसलिए खोल कर

देख रही थी कि कोई फोटो हो या कुछ हो, जिससे किसका है मालूम पड़े।"


राजश्री को पर्स खोलते देख महिला ने फिर से सफाई देनी चाही मगर राजश्री ने उसकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए पर्स से 500  का नोट लेकर उस आदमी की और बढ़ाया। राजश्री की घूरती नज़रें अब भी युवक के चेहरे पर थीं। मामला ख़त्म होते देख भीड़ छंटने लगी आखरी के २-३ लोगों समेत धीरे से वह

 व्यक्ति भी आगे बढ़ने को हुआ 


रुको! राजश्री बोली। 


क्या ?


उसने पीछे पलट कर पूछा आवाज़ सुन साथ के २-३ लोग भी कौतुहल वश रुक गए। 


"अभी लेन देन पूरा कहाँ  हुआ ?"


युवक  को  कुछ समझ नहीं आया।  बाकी लोग भी राजश्री को देखने लगे। 


आपके  पैसे इसने चुराने के कोशिश की...... आपको आपके पैसे वापस मिल गए। 

पर आपने इसे भरे बाज़ार बेइज्जत किया, मारा भी, इसका सम्मान छीना मतलब कुछ आपने भी इसका चोरी किया वो वापस देना पड़ेगा न, तभी तो हुआ हिसाब बराबर। 


युवक हंसने लगा सड़क पर भीख मांगने वालों का भी आत्मसमान होता है क्या? उसकी ढिठाई देख राजश्री को गुस्सा आ गया पर खुद को शांत रखते हुए बोली।

 

"अब मेरे बताने से तो तुम्हें समझ आने वाला नहीं  कि होता है या नहीं और ना ही तुम मानोगे ?


बेहतर है तुम्हें कोर्ट पुलिस और मानव अधिकार आयोग ही बताएँ  कि  इसका क्या और कितना मान सम्मान है. इस बार  युवक थोड़ा घबराया। 


धमकी  मत दीजिए आप। मैं किसी से भी नहीं डरता फिर वह उद्दंडता से मगर थोड़ा घबराते हुए बोला। 


ठीक है, फिर चलो पुलिस स्टेशन। या वहाँ तक जाने का कष्ट भी आपसे नहीं होगा तो मैं पुलिस को ही यहीं 

बुला लूँ ?

तुम्हारे पास तो सबूत है नहीं कि इसने पैसे चुराए जो पर्स में थे वो पर्स में ही हैं। 

पर इसकी हालत देख कर पुलिस यकीन जरूर करेगी तुमने इसे मारा  है और गवाह मैं हूँ ही।  वैसे भी  तम्हारे साथी संगी बिचारे समय के अभाव में निकल लिए हैं। आखिर उनके पास भी समय थोड़े ना होगा किसी राह चलते के दुखड़े सुनने या उनका साथ देने का।  युवक ने पीछे देखा कुछ देर पहले उसके साथ खड़े इक्का दुक्का लोग मामला बढ़ते देख जा चुके थे। 



आप अपने पैसे वापस ले लो मुझे कुछ नहीं लेना है, सोचूँगा किसी भिखारी को दान कर दिए पैसे। राजश्री की और बढ़ाते हुए वह बेशर्मी से बोला।

लड़की उसे आश्चर्य से देखने लगी उसका चेहरा और ऑंखें लाल हो चुकी थीं गुस्से और दर्द के कारण राजश्री ने उसके कंधे पर हाथ रख आँखों से उसे शांत रहने का इशारा किया।


तुम दान दोगे वह भी 500 का? 5 रुपए  नहीं दे सकते तुम्हारे जैसे लोग किसी को। तुम्हारा झूठ तो मैंने पहली बार में पकड़ लिया था। रोज कोर्ट में तुम्हारे जैसे १० मिलते हैं। असल बात ये है कि तुम्हारे पर्स में कोई पैसे थे ही नहीं। 500 रुपये की भीख मांगने के लिए इतना बवाल किया तुमने वाह! बहुत  समझदार और होशियार होऔर भीख माँगी भी किससे जो तुम्हारी नज़र में भिखारी है इसे भिखारी कहते शर्म आनी चाहिए तुम्हें तो ये सम्बोधन इसके बजाय तो तुम्हारे लिए ज्यादा उपयुक्त है नहीं ?नीयत साफ़ रखो खुश रहोगे जीवन में। 

इतना सुनना  था कि  युवक बुरी तरह घबरा कर राजश्री जी से नज़रें चुराने लगा। 


सॉरी बमुश्किल उसके मुँह से इतना ही निकला राजश्री जी को गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर वे खुद को शांत रखते हुए बोलीं .. 


माफ़ी मुझसे नहीं इनसे माँगो  और अगर भीख माँगने वालों से इतनी परेशानी है न तो उनकी वस्तुस्थिति और परिस्थितियाँ जानकर उसे काम दिलवाने की कोशिश करो। जीने का अधिकार सबको है और कोई भी स्वेच्छा से भीख नहीं माँगता दुनिया में। शायद आज ये बात तुम्हारे समझ आएगी। कल मेरे ऑफिस में आना तुम्हारे लिए भी कोई काम देखते हैं ताकि पैसों के लिए ऐसी तरकीबें ना लगानी पड़ें आगे से। 

युवक और लड़की दोनों आश्चर्यचकित से उन्हें देखने लगे। राजश्री ने पर्स से कार्ड निकल कर युवक को दिया और कहा कल ठीक 11 बजे इस पते पर आओ अब जा सकते हो। 

थैंक्यू मेम नज़रें नीचे किये हुए ही कार्ड लेकर वह बोला। 


आपके साथ  बुरा बर्ताव किया हो सके तो माफ़ कीजियेगा मुझे लड़की  के सामने हाथ जोड़ते हुए वह बोला लड़की कुछ न बोल पाई। 


युवक चला गया वह लड़की  भी जाने के लिए मुड़ी। राजश्री ने उसे रोका 


"तुम कहाँ चली?"

"चलो मेरे साथ" बिना कुछ कहे वह राजश्री जी के पीछे हो ली। 

साइड में खड़ी कार तक आकर राजश्री जी ने दरवाज़ा खोल उसे  बैठने के लिए कहा। 

"मैं कैसे... मतलब आपकी गाड़ी खराब हो जाएगी।"संकोच से महिला बमुश्किल अपना वाक्य पूरा कर पाई 

"बैठो। "

इस बार राजश्री सख्त आवाज़ और आदेशात्मक लहज़े में बोलीं। 



गाड़ी में पूरे  रास्ते वह खामोश ही रही राजश्री ने भी उस वक़्त उसे कुछ भी पूछना या कहना मुनासिब ना समझा सिर्फ  एक नज़र डाली उस पर उसके कपड़ों में जगह जगह छोटे बड़े  छेद थे. डरी सहमी सी वह चुपचाप गाड़ी में बैठी रही २३ से 25 साल के बीच की उम्र होगी पर दुःख दर्द तकलीफों ने चेहरे पर उस उम्र की स्निग्धता चंचलता और तेज को जैसे ख़त्म कर दिया था रह गई थी तो बस मासूमियत।  उसकी आँखों में आंसू और मन में छुपे दर्द को राजश्री बखूबी महसूस कर सकती थी। 


आज राजश्री की हालत वैसी थी जैसी कुछ साल पहले स्कूल में वीणा की आपबीती सुनकर हुई थी।  उस दिन भी उसके दिल दिमाग में तूफ़ान मचा हुआ था सिर दर्द से फट रहा था।  वीणा के लिए चिंता उसे मानसिक शांति नहीं लेने दे रही थी। घर पहुँच कर उस पूरी रात वह सो ही नहीं पाई थी। सिर्फ वीणा के पति को समझाने के रास्ते ही सोचती रही। कैसे कोई किसी के साथ इतना बुरा बर्ताव कर सकता है ?

बस रह रह कर यही प्रश्न उसके दिमाग में आता और आज तक उसे जवाब नहीं मिल पाया। 


वही स्थिति आज भी थी उसकी। कहने को राजश्री अब वकील थी जिसे हर रोज ऐसे और इस से भी भयावह मंज़र देखने को मिलते थे। रोज ये सब देखने के बाद शायद उसके मन को ऐसी तकलीफों से जूझते लोगों को देखने  का आदी हो जाना चाहिए था।  परंतु  अति संवेदनशील भावुक राजश्री मानसिक रूप से किसी को तनाव में, दर्द में देखती तो न जाने क्यों उसका दर्द अपने अंदर महसूस करती। इतना कि वह जब तक उसे इस दर्द से निकाल न दे राजश्री को  चैन नहीं आता था। आज भी वह बहुत परेशान थी उसके मस्तिष्क में रह रह कर उमड़ घुमड़ कर आ रहे विचारों के बादल मानों अश्रु वर्षा करने को बेताब थे। पर राजश्री जैसे तैसे हिम्मत बाँध बैठी हुई थी बस अब घर पहुँच के जल्दी से चाय पीना चाहती थी ये चाय उसके लिए सब दर्दों की दवा थी।  १५ मिनिट में वे घर पहुँच गए। 


राजश्री ने पहले उसे कपड़े  दिए और नहाकर कपडे बदल आने को कहा खुद भी दूसरे बाथरूम में फ्रेश होकर आई और चाय बनाने लगी चाय बनाते हुए उसे फ़ोन देख लेने का ख्याल आया चेक किया तो उसमे वीणा के ३ मिस्ड कॉल थे घडी देखी तो उस वक्त साढ़े 9 बज रहे थे। उसने वीणा को तुरंत कॉल किया। उधर से फ़ोन उठाते ही उसकी चिड़िया चहक उठी।  


"क्या मौसी आपने फोन क्यों नहीं उठाया?


"अरे सॉरी मेरी चिड़िया ये बताओ आप कैसे हो मम्मा कैसी है?


 "हम दोनों ठीक हैं।  और आपको पता है इस साल आपसे मैं ही जीतूंगी पक्का मेरे अभी तक ३ हैप्पीनेस मोमेंट हो गए हैं और आज का सुनकर तो आपको बहुत मज़ा आएगा?"


 "अच्छा ? अरे यार फिर तो मुझे बहुत रोना आएगा मेरा तो सच में एक भी नहीं हुआ अभी तक।"


  "अरे! आप रोना मत, खेल में तो हार जीत होती ही है। इसमें रोना क्यों?  मैं तो अपने स्कूल की रेस में हार जाती हूँ तब भी कभी नहीं रोती 


 "अच्छा दादी अम्मा! आपको ये इतनी सी उम्र में ऐसी बड़ी बड़ी बातें कौन सिखाता है?"


"मम्मा बताती है और में सीख जाती हूँ क्यूंकि मैं बहुत स्मार्ट हूँ "


हाँ भाई! ये बात तो है अच्छा मम्मी को दो आपका हैप्पीनेस मोमेंट आज मम्मी से सुनते हैं। 

"हाँ पहले आप प्रॉमिस करो की आप मेरे बर्थडे पर आओगे अभी मैं प्रॉमिस नहीं कर सकती पर मैं बिलकुल कोशिश करके जरूर आऊँगी ओके?"

"पक्का"

" हाँ पक्का" 

राजन्शी ने फोन माँ को दिया 


हाँ दीदी!

"कैसे हो आप"?


" मैं अच्छी हूँ वीणा कहीं बिजी थे क्या"? अरे नहीं बस थोड़ा रस्ते में अटक गई थी। राजश्री बात कर  रही थी, उसी बीच वह लड़की नहाकर साफ कपड़े  पहन बाहर आई। 


 राजश्री ने बात करते हुए ही  उसे सोफे पर बैठने का इशारा किया और वीणा से कहा तुम ठीक हो न कोई परेशानी तो नहीं "?


"नहीं दीदी सब ठीक हैं "बात करते हुए वीणा ने राजश्री को मार्किट की घटना सुनाई। 


 "तुम्हारी बेटी तुमसे भी ज्यादा समझदार भावुक और संवेदनशील है। ख़ुशी है मुझे जानकार।  वरना आजकल लोगों को दूसरों के प्रति दया भाब तो दूर अपने परिवार और परिजनों से से ही कोई लेना देना नहीं होता। "


 "वह मेरी बेटी कहाँ है दीदी वो तो आपकी ही है अगर आप नहीं होते तो वो इस दुनिया में ही नहीं आती "


 "ऐसा कुछ नहीं वीणा सब लिख रखा है ईश्वर ने पहले ही। "

हर रोज़ कोई मुझे मुसीबत में दिख जाता और लगता है कि इस दुनिया को लोग स्वर्ग कह कैसे सकते हैं? स्वर्ग बनने में न जाने कितनी सदियां लग जाएँगी।"


 "आप हो तो दीदी स्वर्ग बनाने के लिए "


 "लेकिन मेरे बाद तुम इसकी कड़ी टूटने मत देना।"


 कितनी बार आपको बोला है कि  ऐसे मत कहा करो। 


 "आप परेशान लग रहे हो दीदी "


 "नहीं बस ऐसे ही आज कोई लड़की मिली मुझे मार्किट में उस को साथ लेकर आई हूँ घर। "


कल बताती हूँ उसके बारे में फिलहाल चाय बनाई है खाने के लिए कुछ आर्डर करती हूँ क्यूंकि बहुत देर होगई है। 


आपके अहसान उसके और मेरे जैसे लोग कैसे उतार पाएँगे  दीदी क्या वीणा !तुम फिर से शुरू हो गई।  


 "अच्छा दीदी आप आराम से बैठिये। खाना मंगवाइये,खाइये हम कल बात करते हैं। वरना और देर हो जाएगी। और सो जाना रात को।  पूरी रात अब उसके बारे में सोचते मत रहना आप उसके लिए कुछ अच्छा कर ही लोगे पता है मुझे। 


 "हाँ कोशिश करूंगी सोने की। "

कहकर राजश्री ने फ़ोन काट दिया


वीणा ने फोन टेबल पर रखा राजंशी भी सो गई थी। 

दीदी कितनी अच्छी हैं आज फिर किसी जरुरतमंद को ले आईं अपने घर। ना जाने कितनो के घर सँवारे हैं उन्होंने भगवान् उन्हें लम्बी उम्र और सारी खुशियाँ देना। 


कहकर हाथ जोड़ वीणा सुबह के कामों की लिस्ट बनाने लगी। 


कहानी जारी है। ....... 

(स्वरचित) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2020  Google


कहानी का अगला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें जीवन सारथि भाग -3


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टिप्पणियाँ

  1. अच्छी जा रही है कहानी। जारी रखें।

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    1. आपका उत्साहवर्धन ही मेरे लिये प्रेरणा का मुख्यस्त्रोत है। आभार आपका।

      हटाएं
  2. संवेदनशीलता को जगाने की कोशिश करती हुई कहानी👍

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    उत्तर
    1. कहानी के मर्म को समझ आपने। 🙏धन्यवाद

      हटाएं

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