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जून 25, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम बहुत ख़ूबसूरत हो

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  हाँ! तुम ख़ूबसूरत हो! अंतस की निर्मलता से विचारों की प्रबलता से चंद्र की शीतलता से तुम ख़ूबसूरत हो सूरज की लालिमा से स्वमयं की गरिमा से क्रोध की रक्तिमा से तुम ख़ूबसूरत हो गगन की शांति से अंदर की क्रांति से समाज की भ्रांति से तुम ख़ूबसूरत हो नदियों के कलकल से मन के शोर और उथल पुथल से इस विश्व सकल से तुम ख़ूबसूरत हो वीणा की तान से अपनो के मान से बचे खुचे स्वाभिमान से तुम खूबसूरत हो बंसरी की धुन से अपने सुंदर मन से अग्रजों को सदैव नमन से तुम ख़ूबसूरत हो इन सबकी वजह से तुम खूबसूरत हो हर तरह से तुम ख़ूबसूरत हो वात्सल्य प्रभा से तुम खूबसूरत हो हमेशा से इतना तुम ध्यान रखो बस इसका मत अभिमान रखो अपने अंतस की खूबसूरती का बस तुम यूँ सम्मान रखो।

जीवन की जंग: असली ख़ुशी

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  हिम्मत तो ऐसी है हमारी कि हमारा जीवन संघर्ष देखने वाले, ख़ुद थक कर रो दिए। पर हम न रुके। थके हम भी, मगर फ़िर आगे बढ़ गए। रोए तो ख़ूब, मगर ये न हुआ कि आँसुओ की चादर ओढ़ चैन से सो गए। मज़ा तो तब आया जब काँटो के निकलने पर बहे, रक्त को, हर बार, महावर का रंग समझ, हम धो गए। और हमें गिराकर हर बार हँसने वाले, जीवन भर यूँ ही हाथ मलते रह गए। ©®divyajoshi