तुम बहुत ख़ूबसूरत हो

 



हाँ! तुम ख़ूबसूरत हो!

अंतस की निर्मलता से
विचारों की प्रबलता से
चंद्र की शीतलता से

तुम ख़ूबसूरत हो
सूरज की लालिमा से
स्वमयं की गरिमा से
क्रोध की रक्तिमा से

तुम ख़ूबसूरत हो
गगन की शांति से
अंदर की क्रांति से
समाज की भ्रांति से

तुम ख़ूबसूरत हो
नदियों के कलकल से
मन के शोर और उथल पुथल से
इस विश्व सकल से

तुम ख़ूबसूरत हो
वीणा की तान से
अपनो के मान से
बचे खुचे स्वाभिमान से

तुम खूबसूरत हो
बंसरी की धुन से
अपने सुंदर मन से
अग्रजों को सदैव नमन से

तुम ख़ूबसूरत हो इन सबकी वजह से
तुम खूबसूरत हो हर तरह से
तुम ख़ूबसूरत हो वात्सल्य प्रभा से

तुम खूबसूरत हो हमेशा से
इतना तुम ध्यान रखो
बस इसका मत अभिमान रखो
अपने अंतस की खूबसूरती का
बस तुम यूँ सम्मान रखो।

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