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दोस्ती…?

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मुझमें तुममें फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मैं हूँ "सीरत" की दीवानी, तुम सूरत को पूजने, रोज नए मंदिर चले जाते हो! मुझमें तुममे फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मैं हूँ प्रकाश की तलाश करती मशाल सी, तुम तम में तीर चलाने के हरदम ही कयास लगाते हो! मुझमें तुममें फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मैं संघर्षरत, अपने हर एक अधिकार के लिए तुम्हें मिला है सब विरासत में, जिसका नित ढोल बजाते हो! मुझमें तुममें फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मैं तो ओस की बूंद सी क्षणिक, तुम बरसते सावन से अनन्त तक, यूँ अपनी सत्ता पर इठलाते हो! मुझमें तुममें फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मैं बंद किताब के पन्नों सी तुम  घर घर बंटता अखबार, जो नित नए की आस लगाते हो! मुझमें तुममें फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मुझे संज्ञा देते हर दम लाचारी की, तुम मन से बीमार होकर भी, खुद को ताकतवर-बलवान बताते हो! मुझमें तुममें फर्क बड़ा है… फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो? मैं धुन मुरली की, तुम खुद मुरली… सबके अधरों