दोस्ती…?

मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…

फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं हूँ "सीरत" की दीवानी,
तुम सूरत को पूजने,
रोज नए मंदिर चले जाते हो!
मुझमें तुममे फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं हूँ प्रकाश की तलाश करती मशाल सी,
तुम तम में तीर चलाने के
हरदम ही कयास लगाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं संघर्षरत, अपने हर एक अधिकार के लिए
तुम्हें मिला है सब विरासत में,
जिसका नित ढोल बजाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं तो ओस की बूंद सी क्षणिक,
तुम बरसते सावन से अनन्त तक,
यूँ अपनी सत्ता पर इठलाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं बंद किताब के पन्नों सी
तुम  घर घर बंटता अखबार,
जो नित नए की आस लगाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मुझे संज्ञा देते हर दम लाचारी की,
तुम मन से बीमार होकर भी,
खुद को ताकतवर-बलवान बताते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं धुन मुरली की,
तुम खुद मुरली…
सबके अधरों से लग,
हर किसी पे नेह लुटाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं पतझड़ का त्यौहार सदा से,
तुम रंग बिरंगे फूलो की इठलावन…
पतझड़ को फूल रास नहीं आते…
तुम क्यों उम्मीद जगाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बड़ा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं गर्म चाय का मीठा कप,
तुम कॉफी की कड़वाहट
क्यों आपस में उन्हें मिलाकर
बेतुका सा स्वाद बनाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बडा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

मैं ठहरे जल स्त्रोत सी,
तुम निर्झर जलप्रपात हो…
ठहरे पानी में समुद्र समाने की असम्भव कोशिश
आखिर क्यों तुम करते जाते हो!
मुझमें तुममें फर्क बडा है…
फिर कैसे दोस्ती की आस लगाते हो?

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