अभिनय

हाँ वह अभिनय था इसीलिए तो उसमे जादू था अभिनय के लाल लिबास में, शर्माती, लजाती, सुन्दर मेहँदी रचे हाथ और कुमकुम पगलिए ले साथ में सिंगार के पीछे छुपा कर, अपने आतंरिक रूप लावण्य को, सिर पर आँचल और घूंघट में भी झुकी नज़रें, ये उसका असली रूप कहाँ था? हाँ वह अभिनय था इसीलिए उसमे जादू था। उसके मन का एक्स रे कर पाने को लालयित, घूरती नज़रें, कहाँ झाँक सकती थी मन में, वे तो बस उसकी शारीरिक भाषा से आँक रहीं थी उसे उसके अभिनय को सच समझ , व्यस्त थीं अथाह प्रेम लुटा, तारीफों के पुल के निर्माण में दर्जनों जोड़ी 'छाया चित्र यंत्र' रुपी 'चक्षु' जिनके समक्ष अपने अभिनय का जादू बिखेर, वह बढ़ी चली जा रही थी न सिर्फ उस घर में, वरन एक घर कर रही थी उन सबके मन में, परन्तु ये चिर काल तक बना रहने वाला कहाँ था? ये तो अभिनय था इसीलिए तो इसमें जादू था। बैठी सहमी, सकुचाई, लजाई सी जिसके संग वह साथ फेरे ले आई थी। इतने करीब किसी का बैठ जाना, प्रेम रूपी पहरा खुद पर उन निगाहों का महसूस कर पाना, नवजीवन ...