अभिनय




हाँ वह अभिनय था 
इसीलिए तो उसमे जादू था 


अभिनय के लाल लिबास में,
शर्माती, लजाती, सुन्दर 
मेहँदी रचे हाथ और 
कुमकुम पगलिए ले साथ में 


सिंगार के पीछे छुपा कर,
अपने आतंरिक रूप लावण्य को,
सिर पर आँचल और 
घूंघट में भी झुकी नज़रें,
ये उसका असली रूप कहाँ था?
हाँ वह अभिनय था इसीलिए उसमे जादू था। 


उसके मन का एक्स रे कर पाने को लालयित, 
घूरती नज़रें, कहाँ झाँक सकती थी मन में, 
वे तो बस उसकी शारीरिक भाषा से आँक रहीं थी उसे
उसके अभिनय को सच समझ ,
व्यस्त थीं अथाह प्रेम लुटा, तारीफों के पुल के निर्माण में 


दर्जनों जोड़ी 'छाया चित्र यंत्र' रुपी 'चक्षु'
जिनके समक्ष अपने अभिनय का जादू बिखेर, 
वह बढ़ी चली जा रही  थी न सिर्फ उस घर में,
वरन एक घर कर रही थी उन सबके मन में, 
परन्तु ये चिर काल तक बना रहने वाला कहाँ था?
ये तो अभिनय था इसीलिए तो इसमें जादू था। 


बैठी सहमी, सकुचाई, लजाई सी 
जिसके संग वह साथ फेरे ले आई थी। 
इतने करीब किसी का बैठ जाना,
प्रेम रूपी पहरा खुद पर उन निगाहों का महसूस कर पाना,
नवजीवन की कल्पना से मंत्रमुग्ध,
खुद को रानी समझने के अभिमान में,


आदर, सम्मान, हंसी, ठिठोली, 
प्रेम- मनुहार और ना जाने कितने उपहार, 
डाले जा रहे थे उसकी झोली में, 
आत्ममुग्ध सी वह दर्द भुला मायका छोड़ने का, 
आनंदित थी इतना प्रेम पाकर,
मगर ये प्रेम निश्छल, निःस्वार्थ और सत्य कहाँ था ?
ये भी तो अभिनय था, इसलिए इसमें जादू था। 


यहाँ हर पात्र अपने आप में अद्भुत था,
संवाद आदायगी से रिझाना एक दूसरे को ,
सबका काबिले तारीफ़ था । 
बोलो इसमें सच का ताना बाना कहाँ था ?
ये तो बस अभिनय था इसीलिए तो इसमें जादू था 


चलचित्र जब कुछ समय  पुराना हुआ,
तब वह जादू कहीं खो सा गया ,
बिना 'मानदेय' जीवन भर वह अभिनय कर पाना
अब किसी को भी नहीं भा रहा था। 
जिसमे कुछ समय पहले तक 
सबको बड़ा मज़ा आ रहा था। 
क्योंकि अभिनय करता हर पात्र अब, 
अपने असली रूप में जो आ रहा था। 


जिंदगी के मत्वपूर्ण पड़ाव पर 
नवजीवन के शुभारम्भ से पूर्व 
क्या सबका ये अभिनय किया जाना जरुरी था. ........ 
बिलकुल नहीं ........ 
पर ये अभिनय किया गया और किया जाएगा । 
क्योंकि इसमें जादू जो था ????????? 

(स्वरचित) dj  कॉपीराईट © 1999 – 2020  Google
कविता के मर्म को यदि आप समझें हों तो कमेंट में लिखकर ज़रूर बताइएगा 
ताकि मैं जान सकूं कि जो बात मैंने यहाँ कहने की कोशिश की वह आप तक कितनी 
और किस रूप में पहुँच पाई है। 

अब यहाँ तक आकर जब पढ़ ही लिया है तो दो शब्द लिखकर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें। 


संभल जाओ धरा वालों पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 


टिप्पणियाँ

  1. सधन्यवाद प्रणाम आदरणीय

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  2. Ek sachhe rishte ko jodna or usse nibhane ki shuruat karne se pehle swabhav me sachhai hona zaruri he . Ye adambar kyu jo sab nibhate he sadiyo se or ese parampara ka rup de diya gaya he . Kyu zaruri hota he ek naya rishta swikar karne se pehle ye adambar karna. Ye abhinay he ya jadu par kuch dino tak rehta he .or kuch dino bad ye ek badlav le leta he jo sacha rup he wahi samne lakar rakh deta . To kyu na aoni zindagi ke sabse aham rishte ki shuruat hi sachhhai se kare bina kisi adambar ke . Taki pehle se hi swikarya ho sabko apna apna asali rup. Or bad me koi kisi se nirash na ho.

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    उत्तर
    1. इतनी सुंदर समीक्षा के लिए धन्यवाद अंकिता। कविता के सम्पूर्ण मर्म को अपने समझ के सरल शब्दों में समझ दिया आपकी आभारी हूँ। 🙏

      हटाएं

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