प्रकृति की गोद में…
प्रकृति की गोद में,
कभी रहते थे सुकून से,
जब टूट जाते थकन से,
वो हरी घास प्यार से बुला कर,
थपकी दे सुलाया करती थी।
कई बार दादी की नर्म गोद सा,
एहसास दिलाया करती थी।
पंखा झलते थे वृक्ष पितामह जैसे,
कुहुकिनियाँ(कोयलें) गीत सुना,
माँ की लोरी की सहलाया करती थीं।
पापा की मजबूत बाहों ने धरा होता
अम्बिया के वृक्ष का हाथ,
उस हिंडोले पर झूल में खूब इतराया करती थी।
उड़ती धूल जब आंखों में आती,
भाई बहनों की मीठी नोक-झोंक सी सताया करती थी।
आंखें मीठी नींद खुद में भरकर,
फिर सपनों की नगरी ले जाया करती थीं।
अब तो सूखे तृण हैं नरम घास की जगह
वृक्ष हमने छोड़े नही, कुहूकिनी रूठ कर,
जाने किस देस में डेरा डाल बैठी है,
धूल और तिनके नोक-झोंक के लिए रस्ता ताकते है
और हम मजबूरन बस खिड़कियों से बाहर झांकते है।
22 मई 2021
#AdhureVakyachallenge
#nature #naturelove
#Naturehurts #responsibility
#pandemichealer
22 May 2021 :)
जवाब देंहटाएं😃धन्यकाद सर एकमात्र आपका ही ध्यान गया।🙏
हटाएंसंपादित दर दिया है। वैसे
lockdown में क्या मई क्या जून
अभी तो बस कोरोना पी रहा है सबका खून🙏