सब दर्दों की एक दवा: मेरी प्यारी "चाय"
बरसती हों आंखें या हों बरसते बादल,
थाम लेती हूँ मैं तो बस तुम्हारा आँचल
होठों पर मुस्कान हो तब भी तुम्हारी जरूरत बनी रहती है
न मिले जिस दिन सुकून से तुम्हारा साथ,
उस दिन रूठी सी मुझे, मुझसे, मेरी ज़िंदगी लगती है।
कैसे घूँट-घूँट कर तुम मुझमें मिल जाती हो
मुझमे घुलते हीअमृतपान सा एहसास कराती हो
हर दर्द-ए-ग़म को चुटकियों में हर ले जाती हो
कितनी सह्रदय हो न तुम, ये सोचती हूँ मैं…
जो तुममें मिलना चाहे…
सबको अपना बनाती चली जाती हो।
©®divya joshi
बढ़िया
जवाब देंहटाएं🙏🙏 प्रणाम आदरणीय।
हटाएं