"वजूद"


 



"वजूद"

बस इक महीन सी बूंद में समाया हुआ सूक्ष्म सा अक्स भी नाक़ाबिले बर्दाश्त हो गया तुम्हें...!
जो उसे भी नहीं बख़्शा…!??


अपनी तलाश करती स्त्री के वजूद से जोड़कर देखिए...

या उस नन्हीं सी कली से जो समाज के वीभत्स मानसिकता वाले किसी वहशी की हवस का शिकार हुई हो...

या फिर किसी बेगुनाह acid attack servivor से...

दहेज के लोभियों की सताई हुई शारीरिक शोषण की शिकार से...

या पुत्र की चाह में अपने वजूद को शून्य होता हुआ देख मानसिक शोषण की शिकार होती स्त्री से...

मैं अगर सबका ज़िक्र करने लगी तो शायद कई महीने बीत जाएँ सब पर लिखते लिखते

मन द्रवित हो गया है फिलहाल और न लिख पाऊंगी...
आप ही बुन लीजिए अपने हिसाब से इस रचना के पीछे का ताना बाना.…

©®Divyajoshi

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