कूल बर्थडे सेलीब्रेशन

 


रसोईघर से तो महक ही महक आ रही थी आज। माँ सुबह से ही जुट गई थीं रसोई में। उन्होंने मोहित के पसन्द के कईं सारे पकवान बनाये थे। उसके 19 वसंत जो पूरे हो रहे थे। पूरा घर उन पकवानों की महक से सराबोर हो रहा था जैसे।

"मोहित बेटा कुछ तो खा ले अब, सब तेरे लिए ही बनाया है।" माँ ने प्लेट्स टेबल पर जमाते हुए उसे आवाज़ लगाई।

"हाँ माँ, जरूर खाऊँगा। पर आप सबके साथ।"
"आख़िर आपने इतने प्यार से मेरे लिए सब बनाया है।"

"तब तक कुछ टेस्ट तो कर ले।"
बस माँ,  दोस्तों को आ जाने दो न, फ़िर सब साथ खाते हैं।

मोहित के चार ख़ास दोस्तों, रवि, विकी, साहिल और प्रतीक को आज उसने जन्मदिन की ख़ुशी में अपने घर पर खाने के लिए आमंत्रित किया था।

थोड़ी ही देर में हूsssss…वूsssssहूsss...!!! … हैप्पी बर्थडे टू यू……के तेज़ शोर के साथ चारों दौड़ते हुए एकसाथ मोहित के गले लग गए। (गले पड़ गए कहना शायद ज्यादा उचित रहेगा क्योंकि एकसाथ सबके भार के कारण वह गिरते गिरते बचा)

सब बेहद ख़ुश थे। मोहित की ख़ुशी का तो ठिकाना नहीं था।

हैप्पी बर्थडे यार भाई!

पर ये क्या टी शर्ट पहनी यार! इतनी सोबर सी! थोड़ा कूल लुक रखता आज तो।

"मैं तो वैसे ही स्मार्ट हूँ, तू अपना देख।"कहकर हँसते हुए उसने विकी को चुप कर दिया…
विकी सहित सभी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। ऐसे ही कुछ मिनिट दोस्तों की आपस में टाँग खिंचाई और गपशप चलती रही।

"चलो, यार! जल्दी से पहले खाना खा लेते हैं।" सबके ठहाकों के शोर के बीच 2 बार मोहित के शब्द खोने के बाद तीसरी बार उसे लगभग चिल्लाकर बोलना पड़ा।

"अरे! खाना भी खा लेंगे यार! पहले असल बर्थडे सेलिब्रेशन हो जाए…।" कहकर उन सब ने सरप्राssssइज़  के समवेत और तेज़ स्वर के साथ मोहित के लिए लाया हुआ केक निकाला…सबके चेहरों पर मुस्कुराहट बिख़री हुई थी।

उसने माँ को आवाज़ लगाकर "केक कटिंग सेरेमनी" में शामिल होने को कहा।

माँ भी टेबल पर सारा खाना लगाकर उन सबके साथ आ कर खड़ी हों गईं।

वाह! क्या ख़ुशबू आ रही है ऑन्टी… यम्मी…! डिलिशियस…!

"चलो यार जल्दी केक काटो मैं भी माँ के हाथ के खाने का कबसे इंतज़ार कर रहा हूँ… "

"हाँ, तो काट न, केक तुझे काटना है न हमें थोड़ी। कितना स्लो है! यार! मोहित तू भी ना… जल्दी कर बहुत भूख लग रही है… कबसे टाइम पास कर रहा है तू।" कहते हुए एक-एक कर सब उसे चिढ़ाने लगे।

ऐसे ही हँसी-ठहाकों के बीच उसने केक काटा। पहले उसने माँ को और माँ ने उसे खिलाया। फिर तो दोस्तों की होड़ शुरू हो गई, उसके चेहरे पर केक मलने के लिए। सभी ने केक के ऊपर की क्रीम हाथ में ले रखी थी। सब मोहित के पीछे थे और मोहित उन सबसे बचने के प्रयास में लगा हुआ था। दौड़-भाग और मोहित का मुँह छिपाना जारी था। बीच बीच मे माँ के टोकने की आवाज़ें भी अरे! ओहो! क्या हो रहा है ये…अ…अ..रे!बस भी करो तुम लोग बच्चों से भी छोटे बन रहे हो… कितनी मस्ती करोगे अब। और इन सब क्रियाओं के बीच आख़िरकार उसका चेहरा केक पेन्टिंग का कैनवास बन ही गया।
परेशान सा वह रुमाल से चेहरा साफ़ कर सबको झूठे ग़ुस्से से घूर रहा था।

"क्या यार! सब साफ़ कर दिया।" "बी कूल यार! कितना बोरिंग है तू!" "हाँ…! बर्थडे बॉय है, पता तो चलना चाहिए।" सब एक दूसरे के सुर में सुर मिला रहे थे। और मुस्कुराते हुए आँखों में आँखें मिलाते हुए सब एकसाथ मोहित को फ़िर पकड़ने दौड़े वह कभी सोफ़े पर चढ़ता, कभी चेयर पर। मगर कब तक बचता? आख़िरकार चारों के पकड़ में आ ही गया और विजय घोष करते हुए चारों किसी वीर योद्धा की तरह मोहित को पकड़ कर केक के पास ले आए। तीनों ने उसके हाथ पकड़े हुए थे। और... रवि ने उसकी गर्दन पर हाथ रख नीचे झुकाते हुए उसके चेहरे को ज़ोर से केक पर दे मारा। अचानक तेज़ चीख़...एक कराह.. एक तीव्र आआआआहहहहह का स्वर...मार्मिक क्रंदन में बदल गया। किसी को कुछ समझ नहीं आया। जब देखा कि मोहित की एक आँख से खून बह रहा था और एक टूथपिक जैसी, मगर उससे थोड़ी बड़ी स्टिक उसकी आँख में फंसी हुई थी। सब घबरा गए। उस केक में ऐसी दो और स्टिक्स थीं। माँ बेहद घबराहट के कारण रोने लगीं। सभी दोस्त भी घबरा गए। तुरंत मोहित को अस्पताल ले जाया गया।
उसकी एक आँख की रोशनी उस स्टिक की वजह से जा चुकी थी। दोस्तों के पास पछतावे और रुदन के अलावा कुछ नहीं बचा था । माँ भी एक कोने में बैठ सुबक रहीं थीं। हॉस्पिटल के बेड पर एक आँख पर पट्टी बाँधे बैठे मोहित की नासिका, अब भी माँ के हाथ के खाने की महक महसूस कर रही थी। और टेबल पर रखा माँ के हाथ का खाना इंतज़ार में था कि वह भी मोहित के जन्मदिन की ख़ुशी मना सके।

पाठकों! जानती हूँ, अंत आप में से किसी को पसन्द नहीं आएगा। लेकिन इस छोटी सी कहानी को लिखने का एकमात्र उद्देश्य आजकल धड़ल्ले से देखा-देखी कर कॉपी की जा रही चीज़ों और उनसे होने वाले फायदे-नुकसान के बारे में आपको अवगत कराना है।
हम बिना सोचे समझे केक को चेहरे पर मल देते हैं। आख़िर इसमें कौन सा आनंद है? जाने-अनजाने हम बहुत सी बातें खुद को ख़ुद को "कूल" दिखाने के लिए करते हैं। और इस "कूल" की परिभाषा अगर इन "कूल" दिखने वालों से पूछेंगे तो वे भी नहीं बता पाएँगे। बहरहाल मेरा मानना है कि खाने की कोई चीज़ (एक कण भी) इस तरह बर्बाद नहीं की जानी चाहिए। और ना ही स्वविवेक उपयोग किये बिना किसी भेड़ चाल में शामिल होना चाहिए।

एक विदेशी महिला के साथ घटित हादसे के आधार पर ये काल्पनिक कहानी मेरे द्वारा लिखी गई है। सभी केक्स में ऐसा नहीं होता। अधिकतर लेयर्ड केक में कुछ बेकर्स केक की लेयर जमाने के लिए उसमें प्लास्टिक मेटल या लकड़ी की स्टिक का उपयोग करते हैं। ये टूथपिक जैसी पर उससे बड़ी और वैसी ही नुक़ीली होती हैं। जानकारी गूगल, फेसबुक और यूट्यूब और कुछ केक बेकर मित्रों  से साभार।
शाक़िर कुरैशी और अमिता अविनाश कर्णावट को विशेष धन्यवाद🙏



टिप्पणियाँ

सर्वाधिक लोकप्रिय

मेरे दादाजी (कविता)

धरती की पुकार

काश!