कमलपुष्प सी पुष्पनारियाँ
एक-एक कदम बढ़ाती चली जाती हूँ…
सबको अपना बनाती चली जाती हूँ…
दुश्मन भी ज्यादा दूर रह नहीं पाते मुझसे…
विनम्रता वाला वो जादू चलाती चली जाती हूँ…
कीचड़ में खिले कमल सी ही हूँ कुछ-कुछ…
लाख बुराईयों में रहकर भी
खिल-खिल मुस्कुराती चली जाती हूँ…
बस खुशियाँ लुटाना ही काम है मेरा...
तो प्रेम की नदियाँ बहाती चली जाती हूँ…
कमलपुष्प सी पुष्पनारियाँ
प्रत्येक स्त्री को समर्पित।
स्वरचित दिव्या जोशी
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