मेरे दादाजी (कविता)
मेरे दादाजी रौबीले और खुशमिजाज़ व्यक्तित्व के धनी थे। बागवानी के खूब शौकीन।ऐसा कोई पेड़ पौधा नहीं होगा जिसे उनके हाथों ने न सींचा हो। उनके साथ बीता वक़्त बहुत ही सुन्दर रहा। हम भाई बहनों में मुझ पर उनका विशेष प्रेम रहा। उनके रहते मुझे सुबह जल्दी उठने के लिए कभी अलार्म की जरूरत महसूस नहीं हुई।मुझे किसी भी समय उठना हो बस उन्हें बताने की देर रहती और ठीक उसी वक़्त उनकी आवाज सुबह मेरे कानों तक पहुँच ही जाया करती थी। उनका आवाज रुपी अलार्म कभी गलत नहीं हुआ। उनके साथ की यादें तो बहुत हैं, सभी शामिल न कर कर पाई मगर कुछ बातों के जिक्र के साथ, मेरे मन से निकले ये मोती आज इस कविता रूप में पिरोकर उन्हें सादर नमन के साथ समर्पित कर रही हूँ । भूला बिसरा आज सब याद आ गया, वो आपके साथ पेड़ से जाम तोड़ने वाला मुझे आज ख्वाब आ गया। ख्वाब में आप, मैं सभी थे पर वो जाम आम के पेड़ नहीं थे। आप घंटों साफ़ करते थे जो मैदान, उसकी जगह बने थे अब कुछ मकान। न केले थे न जाम न आम, न वो राखी, सुरजना, केरी के फूल क्या हम उन्हें पानी देना गए होंगे भूल? कैसे भूलूँ मैं, प्यार से आपका बार-बार मुझे आवाज़ लगाना
सुन्दर
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