"हथलेवा"
हमारी राजस्थानी शादियों और शायद गुजरात में भी (और भी कईं संस्कृतियों में शायद) शादी में "हथलेवा" की एक रस्म होती है।
फेरों से पहले।
जिसमें उसी समय घोल कर तैयार की गई मेहंदी को वर और वधु के दाहिने हाथ की हथेली में लगाई जाती है। इसी रस्म के लिए वर और वधु के सीधे हाथों की हथेलियों को मेहंदी बनवाते वक़्त कोरा ही रखा जाता है। (यानी खाली छोड़ा जाता है। वहां मेहंदी नही बनवाई जाती।)
फेरों से पहले मंडप में रस्मों के दौरान ये मेहंदी दोनों के दाहिने हाथ की हथेली पर लगाई जाती है फिर वधु का हाथ वर के हाथ पर रखकर एक पीतांबर दोनों के हाथ पर लपेट दिया जाता है। सम्पूर्ण फेरे होने तक (जिसमे तकरीबन आधा या 1 घण्टा तो लगता ही है) वर-वधु का हाथ ऐसे ही बंधा होता है।
भारतीय संस्कृति की तो रस्मे ही सच्ची प्रीत का एहसास लिए हुए होती हैं। बस कुछ उसी को ज़हन में रख ये लिखा
देखो हाथ न पकड़ना….
अब पकड़ ही लिया है…तो…
कभी न छोड़ना..
और छोड़ना हो...तो……
तो….याद कर लेना
फेरों से पहले "हथलेवा" का वो पहला स्पर्श...
उसमें हम दोनों के हाथों के बीच लगाई गई मेहंदी का
एक दूसरे के हाथ पर चढ़ आया वो सुर्ख़ रंग……
और उसके साथ साथ तुम्हारे हाथों की कुछ लकीरें भी…
जो उस गीली मेहंदी के साथ मेरे हाथ पर छप गईं थीं…
गर उन यादों की छाप भी दिल से मिटा सको,
गर वो लकीरें भी अपने साथ वापस ले जा सको…
तो..छोड़ना...
#Love
#feelings
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-07-2021को चर्चा – 4,133 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार। विलंब के लिए क्षमा प्रार्थी।
हटाएं