ज़िन्दगी
ज़िन्दगी… ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
कभी फुर्सत से बैठकर हमसे भी मिल ना!
कितने हिसाब हैं रे तेरे मेरे,
जो पूरे किए नहीं तूने।
थोड़ा जोड़ घटाव मैं भी करती हूं ना,
तू बस आराम से बैठकर कुछ सपने बुन ना!
ऐ ज़िन्दगी! सुन ना!
कितना सताया है रे तूने,
परीक्षाओं को बड़ा कठिन बनाया है रे तूने,
आज अदल बदल करते हैं ना
तू बैठ मेरी जगह, मैं तेरी जगह बैठ जाऊँ
आज हिम्मत करके तू मुझे सुनना!
ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
कितना कुछ सिखाया है रे तूने,
बिना गुरु के ही बहुत सा ज्ञान दिलाया है रे तूने
तू तो दिलदार है हरदम देती रहती है
आज उल्टा करें क्या
मैं देती हूं आज तुझे कुछ तू लेने की कोशिश करना!
ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
बहुत से सपनों को बिन बताए चूर कर दिया तूने
बिन कुछ कहे ही कितने घावों को हरा कर दिया तूने
तू तैयार हो तो
आज मैं दूं क्या कुछ जख्म तुझे तेरे ही दिए
तू भी जरा मेरी तरह हिम्मती बनना
ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
कितने दोराहे खड़े किए रे तूने
मुझे मझधार में छोड़कर मुस्कुराहटें बटोरी तूने
आज तैयार हो तो इस जंग-ए- मैदान में
ज़रा तू भी उतरना
पर ध्यान रहे जीतना हो तो साथ के लिए मेरे ही जैसी किसी शख्सियत को चुनना
ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
प्रश्न पर प्रश्न ताउम्र पूछे तूने
जवाब देकर मैं तो थकी नहीं और प्रश्न पूछने बंद किए नहीं तूने
आज सवालों की एक झड़ी मैं लगाऊं क्या
भीगने को तैयार है ना
वरना इस प्रश्न बौछार से बचने के लिए मुझ सा कोई जवाबी छाता तू भी तैयार करना
ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
कभी फुर्सत से बैठकर हमसे भी मिल ना!
कितने हिसाब हैं रे तेरे मेरे,
जो पूरे किए नहीं तूने।
थोड़ा जोड़ घटाव मैं भी करती हूं ना,
तू बस आराम से बैठकर कुछ सपने बुन ना!
ज़िन्दगी... ऐ! ज़िन्दगी! सुन ना!
©®divyajoshi
लिखती रहो | :)
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