4)रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

 


पिछले भाग पढ़ने के लिए लिंक पर टच करें।

रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा रायचंद जी की फैक्ट्री में अजीबो गरीब भयावह घटनाएँ होने लगती हैं। जिससे वे बेहद घबराए हुए होते हैं। सुरेश से यह बात साझा करने पर वह इसे उनका वहम बताकर अपने काम में लगे रहने की सलाह देता है। कुछ समय सब कुछ शांति से चलता है। अचानक एक दिन सुबह सुबह उनका मैनेजर उन्हें फोन लगाता है। उसकी बात सुनकर राय चंद जी बहुत ज्यादा घबरा जाते हैं। और जिस अवस्था में है उसी अवस्था में फैक्ट्री के लिए जल्द से जल्द निकल जाते हैं।

अब आगे

4 रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

फैक्ट्री के अंदर काफ़ी देर से ढेर सारे लोगों का हुजूम जमा था। जो मैनेजर को घेरे हुए खड़ा था। जोर-जोर से चिल्ला कर अपने पैसों की वापसी की मांग कर रहा था।  मैनेजर ने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की, कि वे आ रहे हैं आप सब बैठ जाइए। लेकिन  वे सब हंगामा मचाए हुए थे। जोर–जोर से चिल्ला रहे थे।

"हमें बेवकूफ समझा है क्या!?

तुम्हारे सेठ आए ना आए हमें कोई लेना देना नहीं। तुम बस हमें हमारे पैसे वापस दे दो। हमारे पास भी इतना समय नहीं है, खराब करने को।" एक व्यक्ति चिल्लाया।

"और क्या!" दूसरे ने समर्थन किया।

आखिर व्यापार करने का यह कौन सा तरीका है पूरे पैसे ले कर ऐसे शर्ट्स कौन भेजता है? भीड़ में से एक और व्यक्ति चिल्लाया।

देखिए, आप थोड़ा धैर्य रखिए… इसके आगे मैनेजर उन्हें कुछ कहता, उसके पहले रायचंद जी की गाड़ी गेट के अंदर दाखिल हुई, रायचंद जी के गाड़ी से बाहर निकलते ही सबने उन्हें घेर लिया। और अपने हाथ में थामें में हुए सफेद शर्ट के बंडलों से निकली शर्ट लहरा लहरा कर सब अलग अलग तरह की बातें करने लगे।

इस तरीके का माल बनाने लगे हैं अब आप?

यह भेजेंगे हम अपने फुटकर विक्रेताओं को?

यह बेच सकते हैं, जरा बताइए? आप बेच पाएँगे? कौन पहनेगा इन्हें?

उन सब के हाथों में जो सफेद शर्ट दिखाई दे रहे थे और साथ लाए जो बंडल थे उन सभी में ट्रांसपेरेंट पॉलीथिन के अंदर पैक किये हर शर्ट पर 10 से 15 खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे जिन्हें देखकर रायचंद जी खुद काफी हैरान रह जाते हैं।

वे व्यापारियों को समझाने की कोशिश करते हैं- " देखिए, मेरी बात सुनिए शर्ट्स में किसी तरह की कोई समस्या नहीं थी। हमने खुद यह लॉट परसों रात को ही पैक करवा कर रखे हैं और कल सुबह सारे लोकल वेंडर्स को पहुँचाए हैं।"

"वही हम भी कह रहे हैं रायचंद जी कल शाम को मैंने सभी छोटे दुकानदारों को यह माल भिजवाया है, जो हमसे हमेशा माल लेकर जाते हैं और वहां से मुझे 10 गालियां सुनने को मिली।"

यह सुनकर एक अन्य होलसेल व्यापारियों ने भी उसका साथ देते हुए कहा- "हम सब ने अपने अपने माल हमारे वेंडर्स को भेज दिए थे। सब ने माल वापस भेज दिया। आपके भेजे सभी शर्ट पर इसी तरह के धब्बे लगे हुए हैं। अब सब पैसा वापस मांग रहे हैं। आप हमें हमारा पैसा वापस दे दीजिए, ताकि हम उन्हें लौटा सके। और हां ध्यान रखिएगा अगर आज के बाद आपने इस तरीके का माल हमें सप्लाई किया तो हम सीधे पुलिस में कंप्लेंट करेंगे।"

"लेकिन कल मैंने खुद देखा था सारे शर्ट्स… को पैक होते हुए तब वे बहुत.… अच्छी कंडीशन… में थे। उन पर… किसी तरीके के …दाग नहीं लगे थे…।" सही होते हुए भी रायचंद जी के शब्द रुक रुक कर निकल रहे थे।

"तो क्या हम इतने सारे लोग एक साथ झूठ बोल रहे हैं!? उनमें से एक व्यापारी भड़क गया!

"नहीं! मैं यह नहीं कह रहा कि आप झूठ कह रहे हैं…। पर ये शर्ट्स मेरी फैक्ट्री मैं पैकिंग के वक्त ऐसे नहीं थे। मेरा यकीन मानिए...शायद रास्ते में किसी ने इसके साथ छेड़खानी की हो!"

वह आपका मसला है साहब! हमें तो हमारे पैसे लौटा दीजिये अब बस। एक वेंडर ऊंची आवाज में बोला।

उन्होंने कल तक सब को पैसे देने के लिए मना लिया। रायचंद की बात का भरोसा कर सब चले गए।

सबके जाने के बाद वे जाकर अपने केबिन में बैठ गए मैनेजर, कर्मचारी को भेजकर उनके लिए पानी मंगवाता है।

नरेंद्र, कुछ समझ नहीं आ रहा है ये सब क्या हो रहा है!

सर ये हो कैसे सकता है कहीं ये लोग झूठ...

नहीं!  सालों से हमारे ग्राहक हैं वे सब! और सब एक साथ तो झूठ नहीं बोल सकते। मैनेजर की बात बीच मे काटकर वे बोले।

"सर मुझे लगता है पुलिस में शिकायत करनी चाहिए।"

रायचंद जी बिना कोई जवाब दिए अकाउंटेंट को भेजने को कहते हैं ।

उन्होंने सबके पैसों का हिसाब करवा कर अलग-अलग सब वेंडर्स के नाम के चेक बनवा कर रखें। 10 लाख की भरपाई उन्हें करनी थी। हालाकिं इससे उनके ऊपर कोई आर्थिक बोझ न चढ़ता, मगर व्यापार में इतना नुकसान उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूर परेशानी बनता जा रहा था। 

अब इन सब घटनाओं से वे बेहद तंग आ चुके थे। कई बार उन्होंने पहले भी सोचा कि इसकी जानकारी पुलिस में दे मगर  वे सोचते कि पुलिस को बताऊंगा क्या और इन अजीबोगरीब घटनाओं की शिकायत पुलिस दर्ज करेगी भी या नही? यही सोच वे इरादा बदल देते।

मगर इस बार घटना बहुत बड़ी थी।  रायचंद जी ने तय कर लिया था कि वे अपने कदम पीछे नहीं लेंगे। इस सब की जानकारी पुलिस में देकर कंप्लेंट करेंगे और साथ ही अपनी मां और पत्नि को भी सब बता देंगे।

फैक्ट्री से निकल कर सीधे वे पुलिस स्टेशन पहुँचे।

जब उन्होंने आगजनी से लेकर के आज तक का वाकया

वहाँ बैठे पुलिस अधिकारी को बताया तो कुछ पल वह उन्हें ऊपर से नीचे तक देखता रहा। फिर कुछ सोचकर बोला-

"रायचंद जी यह आगजनी की घटना तो काफी पुरानी है। आपने उस समय कोई शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई!? 

सर मुझे लगा कि शायद यह अपने आप ही लगी होगी और ज्यादा कोई नुकसान भी नहीं हुआ था तो……

ह्म्म्म!! अच्छाsssss…! कायदे से इसके खिलाफ अब तो शिकायत दर्ज हो नही सकती मामला काफी पुराना है। फिर भी हम कुछ करते हैं।

और यह जो आप कुछ केबिन से आने वाली आवाज की बात कर रहे हैं……आपने कभी इसकी ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग करने की कोशिश नहीं की…!? कुछ पल रुक कर ऑफिसर ने पूछा।

जी, सर! एक बार पहले भी मैंने शिकायत दर्ज कराने के बारे में सोचा। तब आवाज रिकॉर्ड करने के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग की कोशिश की थी। लेकिन  वीडियो में……कोई... आवाज नहीं आई!!

ऑफिसर ने व्यंगमयी, तिरछी सी मुस्कान दी। जैसे रायचंद जी की हंसी उड़ा रहा हो। फिर कुछ क्षण विचार कर  बोला -

देखिए! जैसा आप बता रहे हैं, इन सब चीजों से आपको प्रत्यक्ष रूप से कोई नुकसान हुआ तो दिखाई नहीं दे रहा!!लेकिन फिर भी, हम जांच करने की कोशिश करेंगे।

रही बात आपकी चलती मशीने बंद होने की तो ऐसी तकनीकि समस्याओं में हम किसी तरह की कोई मदद नहीं कर सकते।

हां!! मगर, आपके फैक्ट्री की शर्ट्स के वेंडर तक जाने से पहले खराब होने और फैक्ट्री में लगी आगजानी की घटना के बारे में

आप अपनी शिकायत मुझे लिखित रूप में दे दीजिए या सामने बैठे कांस्टेबल  पास लिखवा दीजिये। हम इसके पीछे कौन है पता करने की कोशिश करेंगे। बाकी पूछताछ मैं आपसे जांच शुरू होने के बाद करूँगा।

धन्यवाद सर! कहकर रायचंद जी शिकायत दर्ज कर घर की और बढ़ चले।

गाड़ी में बैठे वेद सोच में पड़ गए आखिर है माजरा क्या है सोच विचार में घर आ गया। माँ जनके इंतज़ार में।बैठी मिली बच्चे सो चुके थे।अंदर पहुंचते ही

रेवती देवी- क्या हुआ सुबह सुबह ऐसे ही बिना खाये पिए घर से निकल गया!

कुछ नहीं बस फैक्ट्री में काम आ गया था। वैसे मैंने नरेंद्र को दोपहर में कहा था कि घर फोन लगाकर बता दें कि जरूरी काम होने से मैं जल्दी आया हूं और घर वापसी में भी समय हो सकता है। रायचंद जी ने कहा।

हाँ बेटा! उसका फोन आया था, तभी हम थोड़ा निश्चिंत बैठे थे।लेकिन इतना क्या जरूरी काम? सुधा भी परेशान हो गई थी.

 आप दोनों यहां आकर बैठिए प्लीज।  मुझे आपसे कुछ बात करनी है उनके इस कहने पर रेवती जी सुधा को बुला लेती है।

रायचंद जी अपनी मां और पत्नी को सारी बातें बता देते हैं। कुछ पल के लिए वे दोनों खामोशी और हैरानी से एक दूसरे के चेहरे देखती रह गईं।

बेटा! हो सकता है कोई तुम्हारे बिजनेस को नुकसान पहुंचाने के लिए तुम्हें डराने के लिए इस तरीके की चीजें कर रहा है। ताकि तुम डर के मारे फैक्ट्री बंद कर दो!?

माँ वैसे सीधे तौर पर तो मेरा ऐसा कोई दुश्मन है नहीं जिसे मेरी फ़ेक्टरी बन्द होने से फायदा हो। हाँ! किसी के मन मे ईर्ष्या हो तो... मैं नहीं कह सकता... ।

माँ सही कह रही हैं। बिजनेस में न चाहते हुए भी  ऐसे लोगों से सामना होता ही है। ईर्ष्या से बुरी भावनाएँ लोग अपने मन में सिंचित करते रहते हैं। सुधा जी ने उनके समर्थन में कहा।

हाँ बेटा! तुमने पुलिस में कंप्लेंट कर ही दी है। चिंता मत करो जल्द ही सब ठीक होगा।

मां और पत्नी की बातों से उन्हें थोड़ा तो संबल मिला लेकिन फिर भी मन में कुछ अनुत्तरित प्रश्नों की झड़ी लगी हुई थी।

रायचंद जी अब कभी भी किसी भी अनहोनी के होने की आशंका में हमेशा भयग्रस्त रहते। अब उन्हें फैक्ट्री जाने से ही डर लगने लगा था। उन्होंने कुछ दिनों का अवकाश लेने की सोची। नरेंद्र पर सारी जिम्मेदारी डाल तीन चार दिन उन्होंने अपने घर में मानसिक और शारीरिक आराम करने में बिताए.। लेकिन घर पर बच्चों के समक्ष कभी भी उन्होंने अपने व्यवहार से यह जाहिर ना होने दिया की फैक्ट्री में कुछ समस्या चल रही है।

रायचंद जी के फैक्ट्री जॉइन करने के अगले दो दिन बाद फैक्ट्री मे पुलिस, फैक्ट्री  स्टाफ से पूछताछ कर उनका स्टेटमेंट रिकॉर्ड करने आती है। फिर सबूत के तौर पर उनसे सीसीटीवी फुटेज मांगते हैं।

रायचंद जी, आपकी किसी से कोई दुश्मनी?

"नही सर!"

"कभी कोई बहस हुई हो किसी को बेबात काम से निकला हो या किसी पर आपको शक हो? तो हमे साफ तौर पर बता दीजिए।"

"नहीं सर।"

ठीक है कल आपके घर आकर भी हमे पूछताछ करनी होगी।

जी सर! कहकर  वे फिर से चिंता की चादर ओढ़ बैठ गए।

दिन यूँ ही बीत रहे थे। पुलिस दो तीन बार आकर उनके घर के और घर कब आसपास के लोगों से पूछताछ करती है। एक सुरेश ही है जिससे उनकी मुलाक़ात और पूछताछ नहीं हो पाई थी।

तृषा रक्षा और अमर पुलिस के आने का कारण पूछने पर दादी उन्हें बताती है कि फैक्ट्री में आगजनी और कुछ चोरी की घटनाएं हुई है जिसकी शिकायत पुलिस में दर्ज हुई है।

दो दिन बाद रात को 11 बजे अचानक सुरेश का फ़ोन आता

है।


"हेलो"


"हाँ सुरेश बोलो"


"जल्दी बाहर आजाओ"

"क्यों क्या हुआ"


"सवाल करने का समय नहीं है दोस्त! सख्त जरूरत है तुम्हारी।


"बस जैसे हो वैसे ही आजाओ जल्दी!"


रायचंद घबराकर दरवाज़ा खोल बाहर निकलते है।
अब क्या समस्या आ पड़ी जो सुरेश ने रायचंद को यूँ जल्दबाज़ी में बुलाया। क्या पुलिस पता लगा पाएगी इन सबके पीछे किसका हाथ है? क्या तृषा अमर की दोस्ती पर भी, इन घटनाओं का प्रभाव होगा? जानने के लिए पढ़ते रहें रूह का रिश्ता।

अगला भाग पढ़ने के लिए नीचे लिंक पर टच करें।

रूह का रिश्ता:लम्हें खुशियों के

टिप्पणियाँ

सर्वाधिक लोकप्रिय

मेरे दादाजी (कविता)

धरती की पुकार

काश!