6)रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के


6 रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

पिछले एपिसोड में आपने सुना सुरेश और मूलचंद मिलकर रायचंद जी के जन्मदिन के उपलक्ष में उन्हें सरप्राइज पार्टी एक होटल में देते हैं। अगले दिन तृषा का बर्थडे होता है तृषा, रक्षा अमर और निशा आइसक्रीम पार्टी करने बाहर गए हुए होते हैं।और इसी बीच दादी, सुधा जी और रायचंद जी उन्हें मिले तोहफ़ों के डब्बे खोलने लगते हैं। एक डब्बा खोलते हुए सुधा जी की चीख निकल जाती है और वह डब्बा उनके हाथ से गिर जाता है अब आगे

उस डब्बे से गिरा सामान देखकर सबके होश उड़ जाते हैं!
इसमें  एक कंकाल की खोपड़ी और काले कपड़े वाली एक गुड़िया मिलती है…!!! जिसमें कीलें लगी होती है……!!
ये सब कुछ देख कर घबरा कर वे सब अंदर तक कांप जाते हैं। उन्होंने यह आज तक ऐसी चीजें बस सुनी या फिल्मों में देखी होती हैं। इस तरीके की हरकत उनके साथ कोई करेगा ये उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। इस गिफ्ट बॉक्स को रायचंद जी ने उठाकर देखा तो इस पर किसी का कोई नाम नहीं था। ऐसा ही बेनाम एक और गिफ्ट बॉक्स था जिसे खोलने की हिम्मत अब वे लोग नहीं जुटा पा रहे थे इस समय उनकी  घबराहट चरम सीमा पर थी। डरते-डरते रायचंद जी ने वह बॉक्स खोला… जिसमें किसी की हड्डी और एक मरा हुआ चूहा भी था, जिसके कारण पूरे घर मे असहनीय बदबू फैल गई।  यह सब देख कर उन सबका दिमाग खराब हो जाता है। किसी को भी समझ नहीं आता है कि अब क्या किया जाए, दादी सारा सामान उठाकर दूर कहीं कचरे में फेंक आने को कहती है। रायचंद जी भी उस समय कुछ सोचने समझने की स्थिति मे नहीं होते और जल्द से जल्द इन सब नकारात्मक चीजों को अपने घर से बाहर करना चाहते हैं। इसलिए आनन-फानन में दादी के कहे अनुसार सब कुछ उठाकर एक पॉलिथीन में भरकर दूर बाहर वीरान मैदान में फेंक आते हैं। घर आकर रेवती देवी को पूरे घर में वे गंगाजल छिड़कते हुए पाते हैं।
उन्हें देखकर वे चिंतित हो कहते हैं पता नहीं मां कौन है इस तरीके की हरकत करने वाला? और क्या मिलेगा उसे इस तरह हमे परेशान कर के?
तुम चिंता मत करो। वह जो भी होगा बुरे कर्मों की सजा उसे जरूर मिलेगी। दादी ने कह तो दिया मगर सब के मस्तिष्क में इस वक्त सिर्फ सवाल और चिंता ही थी। कई घंटों तक वे सामान्य नहीं हो पाए। रक्षा, अमर, तृषा निशा की चौकड़ी अपने दोस्तों के साथ घूम फिर, पार्टी कर शाम को घर आ चुकी थी। अमर साथ में केक भी लेकर आया था। वे सब सुरेश जी के आने का इंतज़ार कर रहे थे। माहौल को सामान्य रखते हुए, चौकड़ी के हँसी ठहाकों में शामिल होकर कुछ देर सब भूलने की कोशिश करने लगे। सुरेश जी के आते ही तृषा ने सबकी उपस्थिति में केक काटा।
सबके गिफ्ट देने की बारी आई तो दादी माँ, सुधा जी और रायचंद जी के चेहरे फीके पड़ गए। दोपहर का किस्सा उनकी नज़रों के सामने फिर घूम गया। चौकड़ी उनके अनुभवों से अनभिज्ञ, सारे गिफ्ट्स उठाकर अमर के घर निकल जाती है। वे चारों वहाँ गिफ्ट खोलने और बातों में मशगूल थे। सुरेश जी की पत्नी भी कुछ देर बाद घर चली जाती हैं।

इधर सुधा जी और माँ की मौजूदगी में रायचंद ने यह बात सुरेश को बताई।
सुरेश भी यह सब सुनकर चौंक गया। मगर गिफ्ट तो सभी घर के लोगों के ही होंगे न दोस्त! हमने बाहर से तो किसी को नही बुलाया।

सही कह रहे हो। लेकिन तुम सबके दिए गिफ्ट्स पर नाम लिखे हैं। ये दोनों बॉक्स तो बेनाम थे। रायचंद जी ने बताया।

तो तुम्हे याद नही किसने दिए…!?

नहीं! सारे गिफ्ट अमर और निशा ने कमरे में ले जाकर रखे थे।और रक्षा और निशा ने वापस आते हुए कार में शिफ्ट किये। रायचंद जी के बताने पर सुरेश खामोशी से सोच विचार में पड़ गए।
भाई आज के पहले कभी ऐसा कुछ नही हुआ ये सब हो क्या रहा है और क्यों!?

सबकुछ समझ के बाहर है। रायचंद जी कहते हैं।

इतने में सुरेश जी का कोई फ़ोन आता है और वे बात करते हुए अपने घर निकल जाते हैं।

अचानक रायचंद जी को कुछ याद आता है बहुत बड़ी गलती हुई हमसे। वो जैसे खुद से ही कहते हैं।

क्या हुआ? सुधा जी ने पूछा।

सुधा हमें पुलिस को यह सब बताना चाहिए था।
सुधा जी और रेवती जी भी सोच में पड़ गई। रायचंद जी की बात सही थी ।लेकिन उस समय परिस्थिति ही ऐसी थी कि उन्हें यह बात नहीं सूझी और आनन-फानन में उन्होंने वह सारा सामान फेंक दिया।

कोई बात नहीं कल सुबह जाकर पुलिस स्टेशन में बता देना  लेकिन पुलिस को सबूत के तौर पर वह गिफ्ट बॉक्स दिखाने भी तो होंगे मैं वह सब सामान वापस ले आता हूँ।

इस तरह की नकारात्मक चीजें फिर से घर में लाने का क्या फायदा?

तुम पुलिस को अपने साथ उसी जगह ले जा कर दिखा देना।
हां! मां, सही कह रही हैं। यही ठीक रहेगा। सुधा जी ने समर्थन किया। रायचन्द जी भी उनकी बात मान गए।

चलो अब रात बहुत हो गई है तुम लोग भी आराम करो मां कहती है। रातभर सुधा जी सुरेश जी और रेवती जी ठीक से सो नहीं पाते दोपहर की घटना उनके समक्ष घूमती हैं।

सुबह चिड़ियों की चहचहाट के साथ तृषा की नींद खुलती है। और वह सीधे छत पर पहुंच जाती है।
वहाँ बैठ, वह उगते सूरज के सुरम्य दृश्य का हूबहू चित्र कागज पर उतारने में लगी है। सबका नाश्ता हो जाने के बाद भी जब तृषा नहीं आती तो सुधा जी तृषा को पढ़ने के लिए बुलाने छत पर आती है। तृषा अबतक तुम्हारी चित्रकारी खत्म हुई या नहीं?

बस थोड़ी सी बची है। मुस्कुराते हुए वह जवाब देती है।

अरे वाssssssह! यह तो बहुत ही सुंदर बनाई। पर बेटा पढ़ने पर भी थोड़ा ध्यान लगा लो बस आठ 10 दिन में तुम लोगों की एग्जाम शुरू हो जाएंगी कुछ तैयारी हुई भी है या नहीं? सुधा जी चिंता से पूछती हैं।
माँ बाकी सब तो जैसे तैसे कर लूंगी पर ये मैथ्स न  मेरे सिर से ऊपर जाता है।
बेटा पढ़ना तो होगा  ऐसे कैसे ऊपर से जाता है चलो आओ नीचे मेंरे सामने बैठकर पढ़ो।
तृषा गणित की किताब लेकर बैठी होती है पर उसका मन सवालों में कभी रमा ही नहीं। सवाल सुलझाने की बजाय वह खुद उलझ जाती। आखिर परेशान होकर वह कहती है-
माँ यह मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं अमर के घर जा रही हूँ।
क्या तुम उसे डिस्टर्ब करती रहती हो।
नही करूँगी। मैं उसके साथ बैठ कर पढ़ लूँगी। कहकर वह किताबें लेकर भाग गई।
अमर अपने कमरे और स्टडी टेबल की सफाई में लगा हुआ है। तृषा के दरवाजा खटखटाने पर अंदर से आवाज आती है तुम कितनी फॉर्मल होती जा रही हो दिनोंदिन!
आ जाओ अंदर। कहकर अमर अपने काम में फिर लग गया।
क्या कर रहे हो
डांस
सीधा जवाब नहीं दे सकते कभी?
सीधा सवाल नहीं पूछ सकती तुम?
दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं।
अच्छा छोड़ो मुझे समझ नहीं आ रहे ये सम्स समझा दो, प्लीज!!!
ठीक है समझा तो दूंगा मगर मेरी फीस?
फीस…! मुझसे, फीस लोगे?
हां भाई अपना ज्ञान मुफ्त मुफ्त में क्यों बांटू.…!?
अच्छा बताओ क्या फीस?तृषा मुँह बनाते हुए बेमन से कहती है।
तुम्हारे हाथ की बढ़िया सी चाय!! अमर ने मुस्कुराते हुए कहा।
जरूर...! खुश होकर तृषा कहती है।
तो चलो जाओ किचन में तब तक मेरी सफाई भी हो जएगी।

तृषा किचन में चाय बनाने लगती है। सुरेश जी और उनकी पत्नी विनीता जी ऊपर अपने कमरे से निकल कर नीचे की और आते हुए उसे देख रहे हैं मेरी भावी बहु अभी से किचन संभालने में लगी है। विनीता इतनी धीरे से  ये बात कहती हैं कि सिर्फ सुरेश जी को सुनाई दे। दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा देते हैं।
इतने में रायचंद जी भी वहाँ आ जाते हैं।
क्या बात है भई हमे भी पता चले ये मोहक मुस्काने किस बात पर हैं?
बस कुछ नही दोस्त आजाओ सुरेश जी उस मुस्कान के साथ कहते हैं।
दोनों साथ बैठ जाते हैं रायचंद जी सुरेश को बताते हैं कि पुलिस स्टेशन में कल की घटना की रिपोर्ट दर्ज करवानी है। क्या तुम साथ चलोगे?
आज ऑफिस के बहुत जरूरी काम है मेरा आना तो मुश्किल होगा। तुम खुद ही हो आना।
रायचंद जी को सुरेश का जवाब थोड़ा अटपटा लगता है, आज तक सुरेश ने कभी उन्हें किसी चीज के लिए मना नहीं किया।पर उसे कुछ ज्यादा ही जरूरी काम होगा। यह सोच कर वह अकेले ही पुलिस स्टेशन के लिए निकल जाते हैं।
पुलिस को जानकारी देने के बाद वे रायचंद जी को कहते हैं कि अपने वो गिफ्ट बॉक्सेस फेंक कर बड़ी गलती की। उस स्थान पर जाने पर वहाँ उन्हें कुछ नही मिलता। ऑफिसर रायचंद जी को फटकार लगाकर कहते हैं कि अब किसी भी तरह की घटना होने पर सबसे पहले जानकारी और उससे जुड़ी चीजें वह पुलिस को देंगे।
पुलिस स्टेशन वापस आकर वे रायचंद जी से कुछ जरूरी सवाल पूछते हैं। जिनमें एक सवाल यह भी होता है कि जिस कमरे में उनके गिफ्ट्स रखे थे उसकी चाबी कहाँ, किसके पास थी? रायचंद जी को इसकी अधिक जानकारी नहीं होती। अतः वह उन्हें पता करके बताने को कहते हैं।

रायचंद जी इसके बाद फैक्टरी से मूलचंद को फोन लगाते हैं और उन्हें इस घटना की जानकारी देते हैं। और चाबी के बारे में पूछते हैं।
मूलचंद जी आश्चर्यचकित और चिंतिंत भैया मुझे तो इस बारे में कुछ नहीं पता और गिफ्ट की बात है तो कमरे की चाबी शुरू से  सुरेश के पास थी।
  रायचंद जी पुलिस को फोन लगाकर जानकारी देते है कि चाबी सुरेश के पास थी। साथ ही यह भी बता देते हैं कि सुरेश उनका बेहद करीबी है । पुलिस सुरेश से भी पूछताछ करना चाहती है।   सुरेश से पूछताछ के लिए पुलिस उसे पुलिस स्टेशन आने के लिए कहती है। अब तक सुरेश से इस मामले में कोई पूछताछ नहीं हो पाई है जब भी पुलिस रायचंद जी के घर जाती है, सुरेश उस वक्त घर उपलब्ध नहीं होता। रायचंद के घर लौटने पर वे देखते हैं कि सुरेश को काफी तेज बुखार है।
अगले दिन वह रायचंद के साथ पुलिस स्टेशन जाता है, जहाँ पहुँचने पर पता चलता है वे अफसर किसी दूसरे केस के सिलसिले में 2-4 दिन के लिए बाहर गए हैं। रायचंद उसे अपने साथ फ़ेक्टरी लजाता है।
गौर करने वाली बात यह है कि जब जब सुरेश फैक्ट्री जाता है वहां ऐसी कोई भी घटना नहीं होती।
दो तीन  दिन बाद वह अफसर  पहली बार सुरेश से मिलने पर उसे बार-बार गौर से देखता है वे बारी-बारी से सुरेश और राजन जी से अलग-अलग पूछताछ कर उनके एक दूसरे के संबंध के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। सुरेश से वे पार्टी के बारे में और उस कमरे में रखे गिफ्ट्स के बारे में भी  पूछताछ करते हैं। जवाब सन्तुष्टि जनक होने पर वे उन्हें घर जाने की अनुमति दे देते हैं।
उनके जाने के बाद ऑफिसर अपने जूनियर से कहता है शैलेश ना जाने क्यों मुझे यह सुरेश कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है। आखिर पुलिस ने सुरेश को कहां देखा है? उस कमरे में वे दो एक्स्ट्रा गिफ्ट बॉक्स किसने रखे? इन सब घटनाओं का और पुलिस की पूछताछ  का  क्या रायचंद और सुरेश के आपसी संबंधों पर कोई प्रभाव पड़ेगा? तृषा और अमर की कहानी आगे क्या मोड़ लेगी ?जानने के लिए पढ़ते रहें रूह का रिश्ता।

अगला भाग 2 जून को प्रकाशित होगा

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