8)रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर


पिछले एपिसोड में अपनी पढ़ा- रायचंद जी और सुरेश जी का परिवार कश्मीर पिकनिक के लिए गया हुआ है जहां निशा भी उनके साथ है गुलमर्ग में गंडोला की सवारी के दौरान पहला फेज पूरा कर  स्टेशन पर उतरने के दौरान रोप वे पर जमीन से कई हजारों मीटर की ऊंचाई पर उनकी केबल कार हवा में डोलने लगती है। जिसे देखकर सब घबरा  जाते हैं। अचानक रायचंद जी का फ़ोन बजने लगता है। अब आगे-

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

उधर से आने वाली आवाज़ सुनकर  आश्चर्य से उनकी नज़र सुरेश पर टिक जाती है।

चौकड़ी की नजर उस केबिन पर ही टिकी हुई है, जिसमें उनके परिजन बैठे हैं। यह इस राइड में रोप वे पर बची आखरी केबल कार थी। अचानक उसके स्टेशन तक आने के  कुछ मिनिट पहले जोरों की हवाएं चलने लगी। केबल कार का ऑटो सेफ्टी सिस्टम भी तेज़ हवा के कारण फेल हो गया। उनकी केबल कार तेज़  हवाओ के रुख के साथ रोप वे पर दाएँ-बाएँ झूलने लगी। और स्टेशन की तरफ आने की बजाए एक झटके से विपरीत दिशा में तेजी से फिसल कर बीचों बीच अटक गई।

ये सब देखकर अमर दौड़कर, वहाँ बैठे संचालकों से जल्दी कुछ करने की गुहार लगाता है। सब अपने अपने स्तर पर स्थिति नियंत्रित करने मे लगे होते हैं कि अचानक एक देवदार वृक्ष जड़ सहित उखड़ कर उड़ता हुआ आता है और उसका कुछ सिरा, रोप वे पर धीरे धीरे सरकती हुई केबल कार से टकराता हुआ नीचे गिरता है। और उसके दरवाज़े में लगे शीशे टूट जाते हैं। इस तेज़ धक्के से यह केबल कार खतरनाक तरीके से हज़ारों मीटर की ऊँचाई पर 1 तरफ लटककर तिरछी होकर झूलने लगती है। अब उन चारों का अंदर रह पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। निशा, अमर, त्रिशा, और रक्षा यह दृश्य अपनी आँखों से देख रहे हैं। केबल कार के रोप वे पर लटककर झूलते हुए दिखने पर उन सबकी एक साथ चीखें निकल जाती हैं। वे चारों बेबस से इधर उधर दौड़-दौड़ कर रोने और लोगों से मदद मांगने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। देखते ही देखते फिर एक तेज़ हवा का झोंका आता है जो पूरी केबल कार को 45 डिग्री घुमा देता है। उनके सामने ही एक-एक कर सुरेशजी,  विनीताजी, सुधा जी, और रायचंद जी, हज़ारों मीटर ऊंचाई से सीधे नीचे गिरने लगते हैं। दो से तीन मिनट  के अंदर यह पूरा हादसा हो जाता है। 
ये भयावह दृश्य देखकर उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं ।उनकी सांसे सूख जाती है। चारों की जोर जोर से चीखें निकलने लगती है। वे घबराकर खूब जोर जोर से दहाड़े मार-मार कर रो रहे हैं। फिर से वे बार-बार इधर उधर भाग-भाग कर केबल कार संचालकों के पास जाकर अपने माता-पिता को बचा लेने की विनती कर रहे हैं। कोशिश सब कर रहे हैं मगर सब इतना जल्दी और अप्रत्याशित तरीके से होता है कि कोई कुछ नहीं कर पाता।
वहाँ मौजूद हर शख्स यह दृश्य देखकर दहल जाता है।
रो रो कर चारों के हाल खराब हैं । तृषा बेहोश हो चुकी है।

गंडोला राइड मैनजेमेंट की और से एक रेस्क्यू टीम अब यहाँ पहुँच पाई है। आश्चर्य की बात इस घटना का कोई और छोर ही नही मिल रहा। आखिर ये हुआ कैसे इसका जवाब किसी के पास नहीं है। आसपास के पर्यटक, वहां के स्थानीय निवासी और केबल कार संचालक भी उन चारों को सांत्वना देने के साथ, उनके परिजनों को ढूंढने में लगे होते हैं।
कईं घण्टों की मशक्कत लोकल गाइड्स और गंडोला मैनेजमेंट की टीम सहित अन्य स्थानीय निवासियो के प्रयास के बावजूद भी उन सबका कोई पता नहीं चल पाता। चारों किशोरों का हाल बेहाल है कल तक खूबसूरत लगती ये वादियाँ आज उन्हें किसी शैतानी खाई से कम नहीं लग रही थी। कल तक बर्फ की जो चादर रुमानियत का अहसास करा रही थी आज वही मातम की सफेद चादर सी प्रतीत हो रही है। थोड़ी थोसी देर में रह रह कर एक एक की रुलाई फुट पड़ती है। बेहद कोशिश करके भी वे संयत नही रह पाते।
आखिर जिन बच्चों ने अपनी नज़रों के सामने अपने परिजनों को एकसाथ खोया हो वे इतनी जल्दी सामान्य कैसे हो पाते?सालों तक न भरने वाला एक घाव लिए वे वहाँ से निकल स्थानीय लोगों की सहायता से होटल पहुंचते हैं। होटल के अंदर उनके कदम बढ़ ही नहीं पा रहे।
दादी को क्या कहेंगे? कैसे कहेंगे? रह रह कर उनके दिमाग मे ये सब आता और वे रो पड़ते। निशा ने तब तक पिता को फ़ोन कर ये जानकारी दे दी थी।  मूलचंद जी की स्थिति ये सुनकर बुरी तरह बिगड़ गई वे शॉक में चले गए। उनकी आंखों के आंसू थम नही रहे थे। अपनी जान से प्यारे भाई को खो देने का दर्द उनके लिए जिंदगी खत्म हो जाने जैसा ही था। पत्नी ने उन्हें संभाला। जैसे तैसे उन्होंने स्वयं को संयत कर  पहली फ्लाइट की टिकट बुक की।
और बच्चों को फोन कर कहा कि वे दादी को फिलहाल कुछ न बताएँ। बस हिम्मत रखें  रात तक मैं पहुंच जाऊंगा। चारों के मन मे अब भी एक आस थी कि काश कोई चमत्कार हो और उन के परिजन सामने से सही सलामत हंसते हुए आकर उन्हें गले लगा लें। बमुश्किल खुद को संयत रख वे अंदर पहुंचे लेकिन भावों पर  इतने बड़े धक्के के बाद नियंत्रण रखना परिपक्व लोगों के लिए भी संभव नहीं होता ये तो किशोर थे। इतने बड़े दुख को अकेले झेलने की शक्ति इनमें नही थी। दादी ने जैसे ही तृषा को पूछा
"वे चारों कहाँ रह गए? वो फूट फूट कर दादी के गले लग रोने लगी। उसको रोता देख रक्षा और अमर, उनके बाद निशा की भी रुलाई फुट पड़ी। धीरे धीरे उनका रोना तीव्र क्रंदन में बदल गया। दादी सबको रोते देख घबरा रही थीं। उन्हें किसी अनहोनी की आशंका तेज़ी से खाये जा रही थी इन चारों का रोना उनके दिल की धड़कने बढ़ा रहा था। वे बस कल्पनाओं में विचरण कर नकारात्मक विचार आते ही दहल जातीं और ईश्वर को मनाती - हे प्रभु! सब ठीक हो।

उनके तेज़ी से रोने की आवाज़ से होटल का स्टाफ एक एक कर उनके कमरे के बाहर जमा हो गया। सबको एकसाथ खड़ा देख मैनेजर भी वहाँ आकर रुका और किसी अनहोनी की आशंका में दरवाज़ा बजाने लगा। निशा ने रोते हुए दरवाज़ा खोला।
"क्या हुआ आप सब रो क्यों रहे हैं?" होटल मैनेजर ने पूछा।
कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं था।
"पता नही ये बच्चे अचानक ही जोर जोर से रो रहे है, कुछ बता नहीं रहे।" दादी ने सजल नेत्रों से कहा।

"क्या हुआ भाई!" अमर से मैनेजर के पूछते ही उसके जवाब देने से पहले ही एक स्टाफ मेंबर बोल पड़ा अरे आप तो वही हो न गंडोला से जिनके... घर के ... चार .. लोग...वह आगे नही बोल पाया।
अमर उसकी बात पर फिर रो पड़ा।  सबके चेहरे आंसुओं से तर बतर थे। रो-रो कर हिचकियाँ बंधने लगी थीं। 
उसने मैनेजर से धीरे से कहा, अभी जो एक्सीडेंट हुआ सर, ये उन्ही के फैमिली मेंबर हैं।

स्टाफ मेंबर की बात सुन दादी ने तुरन्त उठकर रोते हुए उसके पास जा पूछा-
"क्या हुआ कैसा एक्सीडेंट वे सब ठीक है ना.? ज्यादा चोट आई उन्हें?"
"नही माजी! पहले बैठ जाइए। कुछ नही हुआ उन्हें।"
अब निशा ने हिम्मत जुटा कर दादी को संभाला। "दादी, पापा को फ़ोन किया है। रात तक वे आ जाएँगे। आप चिंता मत करिए, सब ठीक हैं।"
दादी का मन अब अस्थिर हो चुका था वे कुछ घण्टे उन्हें कईं रातों से भी लंबे लग रहे थे।
"पता नही किस हाल में होंगे मेरे बच्चे!! बस जल्दी ठीक हो जाएँ।" दादी बार बार प्रार्थनाओं में हाथ  जोड़ती रही। इधर दादी की बातें सुन उन सबकी रुलाई फूट पड़ती।

देर रात मूलचंद जी गुलमर्ग पहुँचे। उन्हें देख बच्चों के सब्र का बाँध टूट जाता है तृषा और रक्षा उनसे लिपट कर रो पड़ते हैं। इससे पहले उन्हें अमर फूटी आँख न सुहाता था। पर आज उन्हें उस पर भी एक पल के लिए  दया आ गई। उनकी पत्नि  और वे दादी के पास बैठ बच्चों को भी बुला कर पास बिठा कर पहले उन्हे कुछ खा लेने को कहते हैं। किसी के भी गले से निवाला उतरने को तैयार नहीं है। उनका मंगवाया खाना यूँ ही पड़ा रह जाता है।
"मोनू!! तू मुझे पहले बता सुधा, विनीता, रायचंद और सुरेश कहाँ है? अभी तक क्यों नही आए?"

"माँ वो…  गंडोला …की सवारी के दौरान …एक एक्सीडेंट हुआ… छोटा सा…।" "रेस्क्यू टीम ढूंढ रही हैं उन्हें।"

दादी के चेहरे के भाव मूलचंद जी  के हर एक वाक्य के साथ बदलते जा रहे थे। और कहते-कहते मूलचंद जी की आँखे भी नम हो रही थीं। दादी समझ रही रही बात कुछ बड़ी है और ये सब पूरी बात बता नही रहे। अचानक वे कहती हैं
"ये सब तो मुझे घण्टों पहले भी बताया था। अब तक नहीं मिले.? ऐसा कैसे हो सकता है.?"
"चल मुझे ले चल! दादी उठ खड़ी हुईं।" मैं खुद देखूंगी। उनके साथ चिंता में सब अपनी जगह से खड़े होकर पकड़ कर रोते हुए उन्हें रोकने लगे।

"माँ आप बैठो मैं देखकर आता हूँ।"
दादी रुकने को तैयार नहीं थी। सब ने बमुश्किल उन्हें अपना अपना वास्ता देकर रोका। मूलचंद जी होटल से बाहर निकले और उनका फ़ोन बजा। रायचंद जी के फ़ेक्टरी के मैनेजर नरेंद्र का फोन था।
"सर बड़े सर का फ़ोन नही लग रहा।""सुरेश जी का भी नही।" "पुलिस का फ़ोन आया था। उन्होंने बताया कॉल किया था सर को। फ़ोन रिसीव हुआ मगर उनसे बात नही हो पाई पूरी तरह, तबसे उनका फ़ोन ऑफ है और सुरेश सर का भी। उन्होंने परिवार के किसी और व्यक्ति का नंबर मंगा तो मैंने आपका नम्बर दे दिया।"

"ठीक है।" कहकर उन्होंने फ़ोन कट किया।

रेस्क्यू टीम अपने काम पर लगी थी। पुलिस से मूलचंद जी ने परिवार के बारे में तात्कालिक जानकारी मांगी।
उनसे बातचीत के बाद  मूलचंद जी शोक में डूबे होटल के बाहर साइट सीन के लिए लगी कुर्सी पर बैठ गए। उनका फ़ोन एक बार फिर बजा।

"हेलो"
"जी कहिये"
"मूलचंद जी बात कर रहे हैं?"
"जी, बोल रहा हूँ।"
"मैं गुना पुलिस से इंस्पेक्टर शैलेश।" "आपके भाई कहाँ हैं?"
"मूलचंद उन्हें निशा से सुनी पूरी घटना सुना देते हैं।"
"सो सैड!" "लेकिन ये सब हुआ कैसे?"
"सर, अभी मैंने उनसे बात की, जो हुआ उसका सटीक कोई कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन पुलिस टीम ने कहा कि
दूसरे फेज यानी कोंगडोरी से अफरवात चोटी के आखरी पड़ाव पर एक विशाल पेड़ के गिरने और केबल कार पर टकराने से उसका शीशा टूटा और उसमे बैठे सभी लोग एक एक कर नीचे गिरे और उसके बाद केबल टूट गया और केबल कार भी नीचे आ गई। अब तक न केबल कार मिली है ना भैया भाभी।"

"वाकई बुरा हुआ। लेकिन इतनी ऊँचाई पर पेड़ का टूटकर यूँ उड़कर आना हजम नहीं हो रहा। खैर..."
"वैसे मैने फोन इसलिए किया कि आपके लिए भी एक खबर थी। ये बात मैंने रायचंद जी से कुछ देर पहले कही मगर उसके बाद उनके तरफ से न कोई रिस्पांस आया न उनका फ़ोन लगा।" इन्स्पेक्टर ने बताया।

"जी कहिये।"

पुलिस ऑफिसर की बात सुनकर मूलचंद जी के चेहरे पर कई रंग आए और गए।  फ़ोन कट कर वे खामोश वहीं बैठ गए।  उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें अब और भी गहरी हो गई थीं।

आखिर पुलिस ने उन्हें क्या बताया? केबल कार का ऐसा अविश्वसनीय एक्सीडेंट कैसे हुआ? आखिर मूलचंद जी अब सबको अकेले कैसे संभालेंगे? जानने के लिए पढ़ें अगला एपिसोड।

Episode 9


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