10)रूह का रिश्ता: अनजानी परछाईयाँ

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली


पिछले एपिसोड में आपने सुना सब लोग अपने घर वापस आ जाते हैं जीवन पुराने ढर्रे पर फिर धीरे-धीरे शुरू होने लगता है तृषा और अमर का ग्यारहवीं का रिजल्ट आना है। यह दोनों कई घण्टों से गए हैं और अब तक वापस नहीं आए। दादी परेशान होकर रक्षा से उनके दोस्तों को फोन लगाने को कहती है। वे लोग बताते हैं कि तृषा और अमर स्कूल से कब के जा चुके हैं।  अब आगे

रूह का रिश्ता: अनजानी परछाईयाँ

"पहले ही यहां बहुत अजीबोगरीब घटनाएँ हमारे साथ हो रही है। अब यह दोनों चले कहां गए!" दादी मन मे सोचती है।
"आखिर कहां गए होंगे वे" दादी रक्षा से कहती है।
"मेरे समझ से बाहर होता जा रहा है क्या करें हम?" रक्षा भी परेशान हो जाती है।

"रक्षा तुम्हारे चाचा को फोन लगाओ जल्दी।"
"दादी इतनी जल्दी क्या है ,मुझे कुछ सोचने  दीजिये। पहले मैं कोशिश करती हूं। इतनी दूर चाचा को परेशान करके क्या होगा? हो सकता है कहीं घूमने निकल गए हों।"
"पहले हम ढूंढते हैं अगर वे लोग नहीं मिलते तो फिर हम चाचा को फोन करेंगे। रक्षा उनके स्कूल जाने के लिए निकलने वाली होती है कि कुछ ही देर में दौड़ता भागता हांफता  हुआ, अमर घर के अंदर आता है।

दादी... दादी.. तृषा... तृषा.. घर पर आई क्या...? वह इतना हांफ रहा होता है इतना छोटा सा वाक्य अटक अटक कर 3 बार मे पूरा कर पाता है। 

"नहीं आई अमर!"
"तृषा तो तुम्हारे साथ गई थी। कहाँ रह गई वो?"  रक्षा ने पूछा।
"कहां गई हैं बेटा वह तो तुम्हारे साथ थी तुम दोनों साथ ही तो रिजल्ट लेने गए थे ना!?
हाँ दादी मगर... वह अब भी हांफ रहा था और बेहद चिंता में दिख रहा था।
रक्षा पहले पानी लाओ बेटा। दादी उसे कहती है।
उसे पानी देने के बाद वह थोड़ा ठीक महसूस करता है।
अब बोलो अमर कहाँ है तृषा?

"दादी हम रिजल्ट लेने गए थे तृषा का रिजल्ट मिला। फेल हो गई थी वह।  रिजल्ट देख कर वहीं  फूट-फूट कर रोने लगी। मेरे किसी तरह समझाने पर भी नहीं समझ रही थी। बहुत मुश्किल से समझकर मैंने उसके मूड को ठीक किया और उसे कहा कि घर चलते हैं। मैं तुम्हें पढाऊँगा इस बार। तुम जरूर पास हो जाओगी। मेरी बात मान कर वह मेरे साथ घर आ रही थी रास्ते में आइसक्रीम शॉप दिखी मैं उसका मूड अच्छा करने के लिए  आइसक्रीम लेने गया। आइसक्रीम लेकर जब उसे देने के लिए पीछे मुड़ा वह वहां से गायब हो गई मैंने बहुत ढूंढा आसपास। पर वह नहीं मिली। मुझे लगा शायद घर आ गई।"

"गायब हो गई क्या मतलब गायब हो गई तुम पागल हो गए हो?"रक्षा भड़क गई।
"दीदी! मेरा मतलब वह वहां नहीं थी। मुझे लगा वह घर आ गई लेकिन वह यहां नहीं आई। वह कहां गई होगी?

"जब ऐसी बात थी तुम्हे उसके साथ रहना था ना!!?"
"नहीं जानता था दीदी ऐसा होगा। हमें उसे ढूंढना होगा।" अमर ने पछतावे के साथ कहा।

एक घंटा मशक्कत करने के बावजूद उन्हें तृषा कहीं नहीं मिलती। दादी घर पर  चिंता के साथ प्रार्थनाओं में लगी थीं।

एक बार फिर उस आइसक्रीम शॉप के आसपास वे दोनों ढूंढने जाते हैं। अमर उस दुकानदार से पूछता है,

"थोड़ी देर पहले मैं आपकी शॉप पर आइसक्रीम लेने आया था, एक लड़की वहां रोड के उस पार खड़ी थी। क्या आपने यहां से मेरे साथ आई उस लड़की को कहीं जाते हुए देखा?
हाँ वह रोड के उस पार खड़ी थी उसके बाद वह तुम्हें ढूंढते हुए यहाँ आई। मगर तुम यहां से चले गए थे। कुछ देर यहां बैठकर वह शायद तुम्हारे वापस आने का इंतज़ार कर रही थी। फिर उठकर चली गई। किस तरफ गई बता सकते हैं?

इधर सामने राइट की तरफ।
रक्षा और अमर उस दिशा में बढ़ जाते हैं।
" तुम तो कह रहे थे आइसक्रीम लेने के बाद तुम्हे तृषा नहीं दिखी।"
"हाँ! दीदी! वो वहाँ नहीं थी ।
"फिर वह शॉपकीपर कैसे कह रहा था कि उसने उसे रोड के उस पर खड़े देखा...और वह यहाँ बैठकर इंतज़ार कर रही थी तुम्हारा?"
अमर उसकी बात को अनसुना कर सामने खड़े एक शख्स को पूछता है।
"हां भैया एक लड़की को देखा तो था।" " वह यहाँ बेहोश पड़ी थी।" "अभी अस्पताल में भर्ती कराया है"
"कौन से अस्पताल में?" रक्षा ने चिंतित हो पूछा।
"पास ही सिटी हॉस्पिटल में"
अमर और रक्षा जल्दी से वहां पहुंचते हैं।  तृषा बेहोश है।
डॉक्टर से पूछने पर वे बताते हैं कि कुछ राहगीरों ने लाकर उन्हें यहां एडमिट किया।
"बीपी बहुत लो है इनका।" "शायद चक्कर आने की वजह से गिर गई।" अमर और रक्षा दादी को फोन कर बताते हैं कि तृषा बिल्कुल ठीक है। " आप चिंता ना करें हम उसे लेकर घर आ रहे है। 
होश आने अमर उससे पूछता है
तुम कहां चली गई थी तृषा!?
मैं तो वहीं खड़ी थी। लेकिन तुम आइसक्रीम लेकर वापस आए ही नहीं।
अमर ने कहा "मैने देखा तुम वहाँ थी ही नही। मैने तुम्हे ढूंढा भी आसपास, पर तुम नही दिखी।"
"मैं तो वहीं थी। मैं बहुत देर उस शॉप की सीढ़ियों पर बैठकर इंतजार भी करती रही।"
रक्षा बात करते हुए उन दोनों के चेहरे देख रही थी। तृषा ने कहना जारी रखा।
"मगर जब बहुत देर तुम नहीं आए मैंने सोचा मैं चली जाती हूँ। उठकर बस थोड़ी दूर चली गई थी। अचानक से ऐसा लगा जैसे कोई परछाई मेरे पीछे है। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो एक दम से अंधेरा छा गया। उसके बाद मुझे कुछ नहीं पता क्या हुआ?

अब रक्षा और अमर एक दूसरे का चेहरा देखने लगते हैं। उसे आराम करने का कहकर दोनों वार्ड से बाहर आ जाते हैं।

"ये क्या बातें कर रही हैं अमर?"

दीदी मुझे लगता है तृषा मां पापा के साथ हुए हादसे को भुला नहीं पा रही। ऊपर से आज फेल होने को लेकर भी वह काफी देर सोच विचार कर परेशान रही।  
"हम्म शायद उसी स्ट्रेस की वजह से बीपी लो हुआ। और उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा रहा होगा जिसे शायद डर के कारण परछाई मान बैठी।"
"दादी को ये सब मत बताना अमर। एक दो दिन में वह ठीक हो जायेगी।"
" हाँ दीदी ! मगर उसे आने वाले ये डरावने और अजीब से सपने, उसके मानसिक संतुलन को बिगाड़ रहे हैं।  शायद तृषा पढ़ाई में भी मन इसीलिए नहीं लगा पा रही है। हमें उसे एक बार किसी अच्छे काउंसलर को दिखाना चाहिए।"
"मुझे नही लगता अभी इसकी जरूरत है अमर। कुछ दिन में सब भूल जाएगी जैसे हम भूल गए।"

तृषा को दो तीन घण्टे में डॉक्टर डिस्चार्ज कर देते हैं।

अमर तृषा और रक्षा घर आ गये हैं।

तृषा के आते ही दादी उसे गले से लगा लेती हैं।
"मेरी बच्ची मेरी जान परेशान हो गई थी मैं।"
उन्हें ऐसे देख अमर की आंखों में भी ऑंसू आजाते हैं जो रक्षा देख लेती है।
"वह तृषा को सोफे पर बिठाकर उसके लिए पानी लेकर आता है।
"ये लो पियो। फिर कुछ हल्का नाश्ता करके दवाई भी लेना है तुम्हें।" रक्षा की नजरें अब भी अमर पर हैं।

"दवाई कैसी दवाई?" दादी परेशान होकर पूछती हैं।

"कुछ नहीं दादी फेल होने का इतना स्ट्रेस ले लिया आप की लाडली ने कि बीपी लो कर लिया और बेहोश हो गई थी।" रक्षा ने  तथास्थता से कहा।

"यह क्या क्या कर रही हो तृषा!! ये कोई इतनी बड़ी बात भी नहीं कि तुम इतना परेशान हो जाओ।" दादी ने समझाइश दी।

"हाँ! एग्जैक्टली! मैं भी तो यही कह रहा हूं दादी!"

और जरूरत क्या है कॉमर्स से पढ़ने की? तुम्हें पेंटिंग ड्राइंग में इंटरेस्ट है ना!! तुम अब फाइन आर्ट्स लेकर पढ़ना जरूर पास हो जाओगी!  अमर उसकी और देख कर बोला।
तृषा उन तीनों को देखकर मुस्कुरा दी।
"और अब आज के बाद कभी ऐसी हरकत मत करना  जानती हो सांसे अटैक गई थी मेरी। तुम्हें कुछ हो जाता तो कहते हुए अमर की आँखे फिर भीग गई।" जिसे रक्षा ने देख लिया।

"मैं थक गई हूं थोड़ी देर सोने जा रही हूँ। कहकर रक्षा उठकर चली गई।"
"बताओ क्या बनाऊँ तुम्हारे किये क्या खाओगी." अमर ने पूछा।
" जो दादी खाएंगी।" तृषा बोली
" उपमा।" दादी ने कहा।
"ठीक है अभी बनाता हूँ।"
"रक्षा दीदी आप उपमा खाएँगी?" रक्षा के कमरे के बाहर खड़े हो उसने पूछा।
"नहीं!"  रक्षा ने अपने कमरे से ही जवाब दे दिया।
"अमर ने उन्हें गर्मागर्म उपमा दिया।
"अब मैं तो खाना नही खाने वाली रात का। तुम लोग ही तय कर लेना क्या बनाना है।" दादी बोली।
इतने से क्या होता है दादी!? थोड़ा तो खाएंगे। तीनो की बातचीत हँसी ठहाकों में रात हो जाती है। सब आराम करने चले जाते हैं। तृषा को दादी आने पास सोने को कहती है।

अगले दिन सुबह अमर, तृषा को चेकअप के लिए ले जाता है।
गुड मॉर्निंग दादी।
सोकर उठकर आई रक्षा अपने बालों को ऊपर बांधते हुए बोली।
गुड मॉर्निंग
तृषा कहाँ है! ठीक है वो?
हाँ हॉस्पिटल गई है।
अमर के साथ?
हां बेटा। दादी सोफे का कवर ठीक करते हुए बोली।
सुनकर रक्षा के मस्तक पर  सलवटें उभर आईं।

दादी आपको नही लगता ये अमर और तृषा का एक दूसरे से थोड़ा दूर रहना जरूरी है। कल को तृषा की शादी होगी तब क्या ये दोनों यूँ एक साथ घूमना, मिलना-जुलना कर पाएंगे?

दोस्त साथ घूमते नही क्या?
दोस्त पूरा दिन साथ एक घर मे नहीं रहते दादी। और रहते हैं तो उनमें फिर सिर्फ दोस्ती नही रह जाती।

ये तो मुझे कहना चाहिए तुम कह रही हो!!
रक्षा को अपनी सोच और कहे शब्दों को लेकर थोड़ी शर्मिन्दगी महसूस होती है।
खैर मैने तो उन दोनों की कल्पना कभी एक दुसरे से अलग की ही नही।

"क्या मतलब है आपका! आप इनकी शादी का सोच रहीं हैं!!" वह आश्चर्य से कहती हैं।
"आप जानती हैं न मोनू चाचा कभी नहीं मानेंगे इसके लिए।"

"मैं बस तेरी बात पक्की होने होने का इंतजार कर रही हूं। उन दोनों का सुखी जीवन साथ रहने में है। मैने बचपन से देखा है उन्हें। वे एक दूसरे को बेहतर जानते समझते हैं।  उन्हें अलग किया तो चार जिंदगियां खराब होंगी। मोनू को मैं समझा लूँगी।"

"आपने उन दोनों से पूछा कभी? जैसा आप सोचती हैं वैसा वे सोचते भी हैं या नहीं?"
"जब समय आया तब पूछ लूँगी।" दादी ने तटस्थ हो उत्तर दिया।

"कम से कम तब तक इन दोनों को एकदूसरे से दूर ही रखिये।" कह कर रक्षा ब्रश ले बाथरूम की तरफ चली गई।

अमर और तृषा घर आजाते हैं
"क्या कहा डॉक्टर ने।" दादी पूछती हैं।
"टेंशन नॉट दादी शी इस परफेक्टली फाइन नाओ।" अमर खुशी से कहता है। 
"चलो फिर अमर कुछ खाओ पहले। नाश्ता भी नही कर के गए तुम तो!

"नाश्ता क्यों नहीं किया तुमने"  तृषा ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"तुम्हारे हाथ की चाय पिये दो दिन हो गए। सोचा तुम ठीक हो जाओ पहले वही पियेंगे उसके बाद नाश्ता।"  मुस्कुराकर अमर ने कहा।
मैं अभी ले आती हूँ। कहकर तृषा चली गई।

उस पूरा दिन अमर, तृषा को फाइन आर्ट्स लेकर आगे पढ़ें के लिए मनाता रहता है। वह इसलिए सब्जेक्ट चेंज नही करना चाहती कि फिर अमर और उसका स्कूल चेंज हो जाएगा। क्योंकि जहाँ वे अभी हैं वहाँ फाइन आर्ट्स की फैकल्टीज नहीं है। लेकिन ये बात वह ज़ाहिर नहीं करना चाहती। अमर के बहुत मनाने पर  आखिरकार वह मान जाती है।

रात गहरा रही है और तृषा आने कमरे में करवटें बदल रही है। उसे बेहद बेचैनी सी हो रही है। बहुत कोशिश करने पर भी
उस रात उसे नींद नहीं आती। इसलिए वह कमरे से बाहर निकल आती है।

बाहर निकलते ही  उसे अपने पापा के कमरे से किसी के रोने की आवाज़ आती है। वह डरते हुए आवाज़ की दिशा में बढ़ जाती है।

कमरे का दरवाजा खुला है। उस कमरे में बेहद अंधेरा है। कोई ज़मीन पर बैठ घुटनों में अपना मुँह छुपाए रो रहा है। तृषा आगे बढ़कर लाइट ऑन करती है।
लाइट जलाने के बाद भी वह शख्श उसी तरह गर्दन झुकाए रो रहा होता है। तृषा के आगे बढ़ अंदर जाने पर वह गरदन उठा कर देखता है। उसकी आँखें पूरी तरह लाल हैं। तृषा उसे देख डर कर सहम जाती है। वह तृषा को एक टक देख रहा है।

कौन है ये शख्स इन सबके पीछे आखिर कौन है। क्या यह तृषा के दिमाग पर हादसे से हुए सदमे का असर है या इन घटनाओं के पीछे वाकई कोई बुरी शक्ति है? जानने के लिए पढें अगला एपिसोड।

Episode 11

रूह का रिश्ता: उलझती गुत्थियाँ

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