12)रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

 

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ


पिछले एपिसोड में आपने सुना अमर और तृषा अब कॉलेज में आ चुके हैं। रक्षा को देखने के लिए मूलचंद जी के साथ एक परिवार आने वाला है, तृषा अमर को रोककर स्केच बनाने के लिए अपने सामने बिठा लेती है।  उसका स्केच पूरा होने में कुछ सेकंड बाकी है और अचानक उसे अपने कानों के पास किसी के तेजी से हंसने की आवाज सुनाई देती है जिसे सुनकर वह घबरा जाती हैं अब आगे

रूह का रिश्ता: उलझती गुत्थियाँ


घबराकर जब वह पीछे देखती है तो उसे कोई दिखाई नहीं देता और आगे देखने पर अमर भी वहां से गायब हो चुका होता है। तृषा आखरी फिनिशिंग किये बिना घबराकर नीचे आ जाती है।   वह अमर पर चिढ़ती है कि वह बिना बताए नीचे क्यों आ गया?

"तो क्या करता!? कितना थका दिया था तुमने। ओर खुद ही तो कहा कि लास्ट फिनिशिंग कर रही हूँ। इसलिए आ गया।"

आज तो दादी को सब बताऊँगी ही तृषा मन में सोच रही होती है।

"कहाँ गुम हो मेडम स्केच में क्या गुल खिलाये दिखाओ तो।"
"और यह जो इतनी देर बिठाया है न  इसके बदले में एक कप चाय लगेगी।"
"हाँ लाती हूँ।" वह अमर को स्केच देकर किचन की और जाते हुए बोली।

 
"ओ! ओ!  रुको तृषा मेडम!" " इसके लिए मुझे 1 घण्टे बिठाया ये तो बिना बैठाए ही बना देतीं तुम।"
"क्या कह हो"
"खुद देखो क्या बनाया है।" उसकी बात सुन किचन में जाती तृषा लौट कर पेंटिंग देखने आती है।
वह पेंटिंग देख कर हैरान हो जाती है। स्केच में अमर के चहरे के पीछे एक और छोटा सा स्केच है, जिसमे हंसता हुआ डरावना सा चेहर नजर आ रहा है।

"ये मैने नहीं बनाया। वह घबराकर कहती है।"
"अच्छा तो अपने आप बना? बेवकूफ बनाने को मैं ही मिला सुबह से?" 
"नहीं सच मे।"
"क्यों मजाक कर रही हो? ऐसा कैसे पॉसिबल है जो तुम बनाओगी, वही तो स्केच में दिखेगा। सच कहो मुझे चिढ़ा रही हो न? इतना परेशान करना भी अच्छी बात नहीं तृषा।

"किस बात पर लड़ रहे हो अब दोनों? तुम दोनों का बचपना कभी जाएगा या नहीं?" उनकी आवाज़ सुन दादी  आकर पूछती हैं।"
"दादी देखो, मेरा स्केच बनाने का कहकर मेरे चेहरे के साथ क्या बनाया ये इसने।"
दादी सच में ये मैने नही बनाया।

"अब आप सम्भालो दादी इसको और इसकी बातों को मैं चला।" 

"अरे चाय!!"
तृषा ने आवाज़ लगाई।
"आकर पियूँगा।"
उसके जाते ही तृषा दादी को आज छत पर घटी पूरी घटना बताती है।

दादी चिंता में पड़ जाती हैं वो स्केच देखकर। उन्हें फ़ेक्टरी और रायचंद जी के साथ घटी घटनाएँ एक एक कर याद आने लगती हैं। जो उन्होंने कभी रक्षा, अमर, तृषा से साझा नहीं की।
दादी तृषा को वे बातें बताने का सोचती हैं और इतने में घर का फोन बजने लगता हैं।

फोन मूलचंद जी का था। वे अपने आने का समय और लड़के के परिवार के साथ कितने सदस्य आऍंगे, उसकी जानकारी दे रहे थे। फ़ोन रख दादी सोचती है कि रक्षा के रिश्ते के बीच ये सारी चिंताएँ और बढ़ाना सही नही। वे सोचती हैं एक बार लड़के वाले आकर चले जाएँ उसके बाद वह तीनों को एकसाथ ये सब बातें बतायेगी।

तय दिन वे सब आते हैं। मेहमानों में लड़का जो रक्षा से मिलने आया है, उसके साथ उसका छोटा भाई उसकी मां और पापा शामिल हैं। लड़के के पिताजी के मूलचंद जी से अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध हैं।

"मां यह ओबेरॉय जी हैं। हमारी तरह इनका कपड़ों का व्यापार है बेंगलुरु में।"
वे उनका परिचय माँ से करवाते हैं।  सब कुछ अच्छे से संपन्न होता है।
परिवार भी रेवती जिनको पसन्द आता है। उनकी हैसियत, रुतबा, संस्कार और लड़के की विनम्रता सभी को भा जाती है। उनकी बातों से भी लगता है कि उन्हें रक्षा पसंद है। वे उनका घर भी देखते हैं और तृषा की बनाई हुई  पेंटिंग्स भी। उसकी कला से वे काफी प्रभावित होते हैं। जाते हुए वे हाथ जोड़कर रेवती जी से कहते हैं,
माँ! हमें तो रक्षा बेहद पसंद है आगे की सभी बातें मूलचंद जी को मैं बता दूंगा।
पहले मैं एकबार रक्षा की भी इच्छा पूछकर आपको सूचित करवा दूँगी। दादी ने कहा।
जी बिल्कुल। आपके निर्णय के बाद सब मिलकर तय कर लेते हैं, कैसे क्या करना है। खाने के बाद मूलचंद जी उन्हें लेकर वापस लौट जाते हैं।

"अब तो सपने बुन सकते हैं न दीदी! जूते चुराई में कितना नेग मांगू बताओ?"
उनके जाते ही तृषा रक्षा को चिढ़ाने लगती है।
"आधा मुझसे शेयर करेगी तो 20000 दिलवा दूंगी। पहली बार रक्षा से किसी ने इस तरह का जवाब सुना वरना वो हर बात का उत्तर संजीदगी से देती थी। रक्षा की बात पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ती है और रक्षा मुस्कुरा कर अपने कमरे में चली जाती है। दादी उसे खुश देख बहुत प्रसन्न हो जाती है।

अगले दिन अमर को कॉलेज की और से तीन चार दिन के लिए किसी फील्ड ट्रिप पर जाना होता है। अमर अपनी पैकिंग कर रहा है। तृषा रुआँसी होकर उसे देख रही है।
अपना ख्याल रखना बेटा!
जी दादी!
तृषा उसे टिफ़िन देती है।
ये तो कहीं भी मिल जायेगा मगर चाय तो अब चार दिन बाद ही मिलेगी।
"तो मत जाओ" कहकर तृषा मुस्कुरा देती है।
अमर हंसते हुए दादी के पैर छू बाहर निकल जाता है।

दो दिन बाद मूलचंद जी  का फोन आता है। वे बताते है कि लड़के वालों का फोन आया था। और उन्हें रक्षा के साथ-साथ तृषा भी बेहद पसंद है। वह चाहते हैं कि अपने छोटे बेटे की शादी तृषा के साथ करें। वह दोनों की शादी साथ ही करना चाहते हैं।

दादी यह सुनकर थोड़ी चिंता में पड़ जाती हैं। और तुरन्त कोई जवाब नहीं दे पाती।
"मैं तुम्हें बाद में फोन करूंगी, कहकर दादी फोन रख दे देती है। 
मूलचंद जी को अचंभा होता है।
शाम को रक्षा, दादी को चिंता में देख पूछती है क्या हुआ आप इतनी टेंशन में क्यों दिखाई दे रही हैं?
कुछ नही। लड़के वालों का फोन आया था वे चाहते हैं कि तुम्हारे साथ साथ तृषा की शादी भी उन्हीं के घर में उनके छोटे बेटे से हो।
दादी की उम्मीद के विपरीत रक्षा बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली जाती है।
उसे यूँ चुपचाप देखकर उन्हें काफी आश्चर्य होता है।

कुछ देर बाद दादी मूलचंद जी को फोन कर रिश्ते के लिए ना कहने को बोल देती हैं।

कैसी बातें कर रहे हो मां आप? इतने अच्छे खानदानी लोग हैं ।इतने समय के बाद रक्षा के लिए अब जाकर रिश्ता तय हुआ है।

बेटा मैं तो चाहती हूं ये रिश्ता हो।
तो आप क्यों मना कर रही है?
तृषा को वह लड़का पसंद नहीं है…।
क्यों पसंद नहीं? क्या खराबी है उसमें आप मेरी बात कराइए तृषा से
तुम से क्या बात करेगी वो।
आपने पूछा उससे क्या कहा उसने
बेटा फिलहाल इतना समझो कि तृषा का रिश्ता नहीं हो पाएगा वहां।
अगर वे लोग सिर्फ रक्षा के लिए मानते हैं तो ठीक है वरना हम रक्षा के लिए कोई और परिवार ढूंढ लेंगे।
कभी-कभी तो मुझे आपकी बात समझ में नहीं आती माँ!!!
ठीक है। जैसा आपको उचित लगे, मूलचंद जी निराश से स्वर में कहकर फोन रख देते हैं।

रक्षा दादी की कही हुई सारी बातें सुन लेती है मगर बिना कुछ कहे ही वह अपने कमरे में चली जाती है।

उधर मूलचंद जी  पत्नी और बेटी को ये बात बताते हैं।
"मां को क्या हो गया अच्छा भला दोनों के लिए अच्छा घर परिवार मिल रहा है।  सुखी रहेंगी वह दोनों वहां पर दोनों। इसकी  गारंटी है मेरी। उन लोगों का स्टेटस देखा है, बड़े पदनाम वाले  लोगों में उठना बैठना है।  और कमी क्या है जो मां इस तरह बिना सोचे समझे मना कर रही हैं और क्या चाहिए हमें?

पता नहीं मां को आखिर क्या परेशानी है, उनकी पत्नी ने जोड़ा।

वही तो...  कहती हैं अभी त्रिशा की शादी नहीं करनी है। 

उसकी पढ़ाई चल रही है तो ठीक है ना पापा जल्दी भी क्या है न
तृषा की शादी की? निशा ने कहा

लेकिन रक्षा की है बेटा! उसकी उम्र निकल रही है धीरे-धीरे बाद में उससे अच्छे रिश्ते मिलने नहीं वाले और हर किसी पर वह समझौता नहीं करेगी, मुझे पता है।

क्या कर एखते है पापा ये डिसीजन तो उन्हव ही लें है।
हैं8! कह कर वे फिर निराश हो गए।

मूलचंद जी इस पर उस परिवार को फोन कर दादी की कही बात के बारे में सूचित करते हैं और कहते हैं कि तृषा अभी शादी नहीं करना चाहती। आप चाहे तो हम रक्षा के लिए बात कर सकते हैं।  मगर वे भी  दोनों लड़कों का विवाह एक साथ एक ही जगह करने के निर्णय लर अडिग रहते हैं। मूलचंद जी अपनी असमर्थता जता देते हैं और बातचीत वहीं बंद हो जाती है।

दूर कहीं किसी श्मशान में अमावस्या की घनी अँधेरी रात में बैठा एक तांत्रिक जिसका पूरा शरीर मुर्दे की भस्म से ढका हुआ है और उस पर उसने बाघ चर्म और काला दुपट्टा दोनों कंधों पर आगे की ओर लेते हुए डाल कर बैठा हुआ है।  गले में पच्चीस तीस अलग अलग किस्म के मोतियों की मालाएँ है। अलग-अलग प्रकार की मालाओं का एक एक समूह दोनों हाथों में भी पहना हुआ है। मस्तक पर बड़ा सा काला तिलक, खुली जटाएं, सुर्ख लाल आंखें, एक से डेढ़ फीट लंबी काली-सफेद बालों वाली दाढ़ी और घनी घनी मूछें उसके इस रूप को देख कर किसी की भी आत्मा भय से कांप जाए। उसके पास ही एक हवन कुंड से बना है जिसमे अग्नि जल रही है एक कंकाल की खोपड़ी उसके पास रखी है पीछे की ओर कुछ घण्टो पहले राख हो चुकी चिता के अंगारे अब भी जलते दिख रहे हैं उसने कुछ मंत्र पढ़े और वह खोपड़ी उस हवन कुंड में दाल दी। उसे डालते ही जोर के धमाके के साथ उसके चार टुकड़े हो गए। जिसके बाद उसने हवन कुंड में मंत्रोच्चर करते हुए भस्म,अबीर, गुलाल और भी न जाने क्या क्या डाल?  खूब बढ़िया इन सब क्रियाओं के बाद वह ज़ोर ज़ोर से  चिल्लाता जा रहा है।
"मैंने कहा था, समझाया था! लेकिन नहीं समझे तुम! यही होता है और यही होगा! कोई रोक नहीं पायेगा! अब कुछ  नही कर पाओगे बस देखो कहकर वह जोर-जोर से हंसने लगता है। उसके हँसने से उसके सामने रखी बोतल के अंदर का लिक्विड गोल गोल घूमत हुआ  साफ नजर आ रहा है। उसके हँसने की गति के साथ उस लिक्विड के घूमने की गति भी बढ़ रही है। अचानक जोर की आवाज़ के साथ वह बोतल टूट जाती है।
यह देखकर उसके चेहरे पर विस्मय और दुःख की रेखायें छागई।  अब तुझे कोई नही बचा सकता स्वयं अघोरानंद भी नहीं। वह चिल्लाया।

इधर दादी, तृषा से अमर को फोन करने को कहती है। उसका फोन नही लगता। अगले तीन चार घण्टो के बाद भी वे पुनः प्रयास करते हैं मगर बात नहीं हो पाती।

जब भी उसे कॉल करते तो फ़ोन आउट ऑफ कवरेज ही बताता।
तृषा के सब्र का बांध टूट गया रात को अचानक उसके आँसू छलक आये।
यह देखकर रक्षा ने कह ही दिया। "तृषा अमर से इतना लगाव भी अच्छा नहीं है।" "कल को तुम्हारी शादी होगी.... "

मैं कहीं शादी नहीं करूँगी दीदी!
रक्षा की बात पूरी होने के पहले ही वह आँखों मे गुस्सा भर कर उसे घूरते हुए वह ऐसा कह कर अपने कमरे में चली जाती है। दादी भी तृषा की ओर देखकर अफ़सोस मे गर्दन हिलाते हुए तृषा के कमरे की ओर बढ़ जाती हैं।

उसे गए तीन दिन बीत गए। फ़ोन अब भी बंद है।
तृषा सुबह देर तक सोई है उसी समय रक्षा दादी के पास आकर कहती है।

दादी! तीन दिन से अमर फील्ड ट्रिप पर गया है  आपने नोटिस नहीं किया तृषा के साथ इस बीच कुछ अजीब घटित नहीं हुआ ना उसे कोई सपना आया ना ही कोई परछाई दिखी।
मुझे लगता है मोनू चाचा का अनुमान सही था। पर आपको तो उनकी हर बात गलत ही लगती है। दादी रक्षा का तंज समझ गई थी। पर इस वक़्त उन्हें अमर की चिंता थी। चुप रहना ही उन्होंने उचित समझा।
तृषा परेशान सी कमरे में बैठी थी। दादी खुद भी चिंता में थी मगर उन्होंने उसे समझाया। बस आज की बात है कल अमर आ ही जाएगा।
आख़िर कहाँ है अमर उसका फ़ोन क्यूँ बन्द है? क्या फिर कोई अनहोनी हुई है? क्या खुलेंगे खच और राज? क्या होगा आगे इनकी कहानी में?
जानने के लिए पढ़ें 

Episode 13

रूह का रिश्ता: एक अघोरी



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