14) रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते

 

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ

रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

रूह का रिश्ता: एक अघोरी




पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा अमर ट्रिप से वापस आ कर बताता है कि उनकी बस का एक्सीडेंट हो गया था जिसमें उसका मोबाइल भी कहीं गुम हो गया। घर आने के बाद उसके लिए कोई फोन आता है जिस पर एक लड़की उसे कहीं बुला रही है। ऑफिस में जरूरी काम है कहकर वह निकल जाता है । शमशान में एक अघोरी अमर के साथ है और उसके साथ कुछ अजीब सी क्रियाएं कर रहा है। अमर को बंद आंखों में रोती हुई एक लड़की की छवि दिखाई देती है अब आगे

रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते

"मुझे बचा लो अमर" 

अचानक उसे एक लड़की के रोने की तेज तेज़ आवाज़ आने लगी। थोड़ी ही देर में बंद आंखों में ही उसे उसकी रोती शक्ल दिखाई देने लगी और उसकी आवाज़ और भी करुण हो गई। मुझे बचा लो अमर प्लीज़… उसकी छवि दिखते ही अमर की आंखें अचानक खुल गईं। और धागा उसके हाथ से छूट गया। तृषा जोर से चीखी। जिसके बाद 

जोर का धमाका हुआ और घनघोर अंधेरा छा गया।अब वहाँ न तांत्रिक था न अमर।

पसीने में तरबतर तृषा झटके से उठकर बैठ जाती है उसकी घिग्घी बांध जाती है वह दादी को उठाना चाहती है मगर आवाज़ चाहकर भी गले से बाहर नहीं आ रही है। तृषा को समझ ही नही आता कि ऐसा भयानक सपना उसे क्यूँ आया। वह अमर को लेकर चिंता में पड़ जाती है और तुरन्त अमर को फ़ोन करती है। 

"आपने जिस नम्बर पर कॉल किया है वह अभी स्विच ऑफ है कृपया थोड़ी देर बाद प्रयास करें।" की आवाज़ के साथ फ़ोन काट जाता है। 


बहुत देर अंदर ही अंदर रोने के बाद उसे जाने क्या सूझता है और वह आने कमरे में चली जाती है। अपनी चित्रकारी के रंग और ब्रश लेकर वह अभी सपने में दिखे दृश्य को हूबहू कागज़ पर उतारने की कोशिश करती है। इसे पूरा करने में उसे सुबह हो जाती है। पेंटिंग पूरी होने पर वह उसे देख और भी डर जाती है वह दृश्य बेहद भयावह था। सवालों में उलझी तृषा ज़मीन पर बेड के सहारे बैठ  कैनवास पर लगी अपनी पेंटिंग देखते देखते न जाने क्या क्या सोच रही होती है और सोचते सोचते वहीं बैठे बैठे उसे नींद लग जाती है।


एक-दो घंटे बाद दादी की नींद खुलती है। तृषा को कमरे में ना देख वे समझ जाती हैं  कि तृषा पेंटिंग करने के लिए जल्दी उठ गई होगी। वह उसके कमरे की ओर जाती हैं तो देखती हैं तृषा अपने बेड के सहारे बैठी बैठी ही सो गई है। दादी की नजर सामने लगे कैनवास पर पड़ती है। काले घने अंधेरे में से कुछ-कुछ झांकता चांद, काले कपड़ों में ढेर सारी मालाएँ पहन कला तिलक लगाएं सुर्ख लाल आंखों वाला तांत्रिक, हाथ में काला ही जल का पात्र , आसपास गड़ी हुई  कीले,  उन पर लगा धागा, पास रखे लाल नीबू, बर्फी, उडद के दाने, बीच में बैठा अमर, पसीने से तरबतर उसका चेहरा, घबराए हुए भाव, यह सब देख कर दादी भी दहल जाती हैं । एकबारगी सोचती हैं तृषा को उठाकर उससे पूछें कि  यह उसने क्या और क्यों बनाया? लेकिन सोई हुई तृषा की ना जाने कितनी नींद हो पाई है और कितनी नहीं यह सोच कर वे उसे नहीं उठाती। इस पेंटिंग पर वह एक कपड़ा डाल देती हैं और बाहर आ जाती है। मगर दादी का मन भी किसी चीज में नहीं लगता।

आज उन्हें भी ना जाने क्यों अजीब सी घबराहट और बेचैनी महसूस हो रही है।

कुछ देर बाद रक्षा भी उठकर आती है और नाश्ता बना, 

नाश्ता कर, तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल जाती है । 


तृषा के उठने तक दादी नाश्ते के लिए उसका इंतजार करती है। अचानक थोड़ी देर बाद तृषा की भी नींद खुलती है और वह  पेंटिंग को कपड़े से ढका हुआ पाती है। इस कवर्ड पेंटिंग को देख कर भी उसके मन में घबराहट और बेचैनी  फिर शुरू हो जाती है। वह दौड़कर दादी के पास जाती है।

दादी को देखते ही उनके गले लग जोर जोर से रोने लग जाती है। 

तृषा क्या हुआ बेटा मेरा बच्चा क्यों रो रही हो, इस तरह चुप हो जाओ मेरी बेटी,  रोते नहीं हैं। 

क्या हुआ बताओ मुझे?

तृषा डरते, रोते, घबराते हुए रात का पूरा सपना दादी को सविस्तार बता देती है।

दादी भी यह सब सुनकर बहुत आश्चर्य में पड़ जाती हैं।

दादी है इस तरीके के सपने मुझे ही क्यों आते हैं? मैं बहुत परेशान हो गई हूं। कोई नहीं समझता मुझे। 


अमर और रक्षा दीदी से भी कहो तो वह कहते हैं कि तुम अपने मन में यह सब कुछ भर कर  बैठ गई हो। इसलिए तुम्हें ऐसा सब कुछ दिखाई देता है। 

कहते कहते तृषा रोने लगती है। 

दादी सब कहते हैं सपने हमारे अंतर्मन और दिमाग की सोच का परिणाम होते हैं। मगर 

आप ही बताइए दादी। हमारे परिवार में तो कभी ऐसी बातें कभी हुई नहीं। और फिर मैं क्यों कभी, किसी तांत्रिक के बारे में सोचूंगी? हमने तो इस बारे में न कभी सोचा न ही कभी  बात की। फिर भी  मुझे उसका साफ साफ चेहरा दिखाई दिया और वह सब क्रियाएँ कर रहा था मुझे तो इन सब चीजों के बारे में कुछ पता ही नहीं है और तो और उसने जो उसने मंत्र पढ़े वे भी मुझे साफ सुनाए दिए।  

दादी मैं तो इस बारे में कुछ भी जानती नहीं। फिर वह सब क्रियाएं मुझे क्यों लग रहा है बिल्कुल वैसी थी जैसे शायद सच मे तांत्रिक क्रियाएँ  होती होंगी।

कहते कहते वह और तेज़ी से रोने लगी। 


तुम पहले शांत हो जाओ मेरे बच्चे।दादी उसके लिए पानी लेकर आती हैं उसे चुप करा कर पानी देती है। उसका सिर अपनी गोद मे रख प्यार से सहला कर  समझाती हैं।

जो कुछ भी हुआ अब भूल जाओ कभी-कभी बुरे सपने आ जाते हैं बेटा! मेरी बात सुनो मुझे तुम्हें कुछ और भी..।

कहते कहते दादी रुक गई वह चाहती थी कि पिछली घटनाओं के बारे में तृषा को बताएं लेकिन दादी ने सोचा जब सपना देख कर यह इतनी ज्यादा घबरा गई है तो असलियत में  उन घटनाओं के बारे में सोच कर ना जाने कितना परेशान होगी? 


यह सोचकर दादी उसे कहती है देखो बेटा मेरे ख्याल से तुम्हें रोज सुबह उठकर योगा मेडिटेशन करना चाहिए ये  नेगेटिव चीजें जो तुम्हें दिखाई देती है ध्यान  के जरिए मन को शांत इन्हें तुम उसे दूर कर सकती हो। आंतरिक शक्ति मिलेगी तुम्हे इनसे लड़ने की। और मेरे साथ रोज सुबह उठकर पूजा किया करो शायद तुम्हें कुछ सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी।

चलो जाओ अब जल्दी से नहा लो मैंने भी नाश्ता नहीं किया। हम दोनों मिलकर नाश्ता करते हैं।

दादी अमर का फोन भी नहीं लग रहा है। अब भी वह कभी कवरेज के बाहर कभी स्विच ऑफ दिखा रहा है। रात के सपने के बाद तुम मुझे और भी चिंता हो रही है। तुम पहले कुछ खा लो बेटा फिर हम उसे फोन करते हैं। तृषा के नहाकर आने के बाद  दोनों साथ मिल कर नाश्ता करते हैं। फिर अमर को फोन करते हैं इस बार घंटी जा रही होती है। पहली बार में फोन रिसीव नहीं होता। तो दादी दोबारा कोशिश करती  हैं। 


हेलो 

जी दादी प्रणाम!

तुम हो कहां मत आज कल तुम्हारा फोन क्यों नहीं लगता कभी एक बार में? तुम्हें समझ नहीं आती कि हम यहां तुम्हारी चिंता कर रहे हैं?

अमर के पीछे कुछ हल्का शोर आ रहा है जैसे दूर कहीं कुछ लोगों की रोने चीखने और चिल्लाने की आवाजें जैसे सुनाई दे रही हों।

तुम कहां हो? किस जगह हो? डरके दादी पूछती हैं।

दादी मैं कुछ देर बाद आपको फोन करता हूं। कह कर अमर तुरन्त फोन काट देता है। 

तृषा के कॉलेज में पेंटिंग का कॉम्पिटिशन था आज अजर रात के सपने के डर से वह ये बात भूल ही गई कि उसे एक और पेंटिंग पूरी करनी थी। 

कुछ सोचकर वह रात को बनाई तांत्रिक वाली पेंटिंग कॉन्पिटिशन में सबमिट कर देती है। अपनी स्कूटी से वह  कॉलेज से घर वापस जा रही है।  आते हुए रास्ते में उसे लगता है जैसे कोई परछाई उसका पीछा कर रही है।

कुछ देर बाद उसे महसूस होता है जैसे कोई उसके पीछे बैठा है। पीछे पलट कर देखने ओर कोई दिखाई नहीं देता। मगर उसके थोड़ी देर से उसे अपने कान में किसी के कुछ फुसफुसाने की आवाज दो तीन बार सुनाई देती है। गाड़ी की गति वह काम कर लेती है। ध्यान से सुनने की कोशिश करती है तो आखरी में उसे एक आवाज़ सुनाई देती है सुनाई देती है-  हो सके तो माफ कर देना।

तृषा बहुत घबरा जाती है। पीछे मुड़कर देखती है तो उसे कोई दिखाई नहीं देता। न ही उसके आसपास कोई होता है। घबराहट में उसका बैलेंस बिगड़ता है और वह स्कूटी सहित नीचे गिर जाती है। स्कूटी की गति पहले ही काम कर लेने से उसे कुछ खरोचों के अलावा ज्यादा कोई चोट नहीं आती।

घबराती हुई वह अपने घर पर आ चुकी है। दादी की सुबह की बात याद कर वह हाथ मुंह धो कर सबसे पहले घर के मंदिर में ईश्वर के समक्ष बैठकर उनका ध्यान करती है। कुछ देर में उसे अपना मन शांत लगने लगता है।

शाम होते ही रक्षा भी आ जाती है । दादी, रक्षा और  तृषा साथ बैठकर खाना खाते हैं । 

तृषा को चुप देखकर रक्षा पूछती है

आज इस तूफान मेल के घर में होते हुए इतनी शांति क्यों है? दादी और तृषा बिना कुछ बोले चुपचाप  खाना खाती रहती है !

रक्षा को यह बात अच्छी नहीं लगती। 


कमाल है जब बात ना करो तो सब कहते हैं किसी से घुलती मिलती  नहीं। और जब बात करूं तो अपने घर में ही कोई जवाब ही नहीं देता। अजीब है। रक्षा बड़बड़ाती है। 


कुछ नहीं दीदी बस अमर का फोन नहीं आया इसलिए हम लोग थोड़ा परेशान हैं ।तृषा का जवाब सुनकर रक्षा का मूड और भी खराब हो गया ।

अमर के अलावा भी चीजें हैं दुनिया में सोचने के लिए। आप दोनों की दुनिया उसके इर्द-गिर्द ही क्यों घूमती रहती है? थोड़ा बाहर भी निकल कर सोचो। कह कर आधा खाना छोड़ उठकर वह अपने कमरे में चली आती है।

तृषा को बेहद अफसोस होता है। थाली लेकर वह रक्षा के कमरे में जाती है।

दीदी कहना तो खा लो।

मेरा मन नही है वह खाने से मना कर देती हैं।

तृषा वापस आ जाती हैं। दादी कहती है तुम चिंता मत करो जब उसे भूख लगेगी, वह खुद खा लेगी। 

उधर  रक्षा का फोन बजता है। नया नंबर देखकर वह फोन नहीं उठाती। 

लेकिन दोबारा उसी नंबर से फोन आने पर वह रिसीव कर लेती है।

हेलो

हेलो रक्षा के दीदी दूसरी ओर से आवाज़ आती है। 

कौन?

दीदी मैं अमर बात कर रहा हूं।

हां- हां रुको देती हूं दादी को या तृषा को।

घर के लैंडलाइन पर फोन क्यों नहीं करते तुम?

दीदी मुझे आपसे ही बात करनी है। मुझसे क्या बात करनी है?अमर के पीछे से अब भी रोने, चीखने की आवाज़े  सुनाई दे रही है। वह थोड़ा दूर आकर बात करने की कोशिश करता है। 


कहाँ हो तुम क्या कर रहे हो? हो और ये आवाजे कैसी हैं? क्या हो रहा है वहां?

दीदी ! ज्यादा कुछ अभी नही बता सकता आप तृषा और दादी को लेकर यहाँ आ जाइए।

पहले मुझे पूरी बात बताओ। जब तक तुम बताओगे नहीं मैं किसी को लेकर कहीं नहीं आ रही। 

उसके बाद अमर ने जो कहा सुनकर रक्षा को अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। उसकी आंखों से आंसुओं की धार बहना शुरू हो गई। फोन कट कर वह अपने बिस्तर पर जैसे निश्चेत हो बैठ गई। 


कहाँ है अमर? ऐसा क्या कहा उसने रक्षा से? आखिर वह तीनों को कहाँ बुला रहा है जानने के लिए पढ़ें कहानी रूह का रिश्ता का अगला एपिसोड 

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रूह का रिश्ता: मौत की परछाई

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