15) रूह का रिश्ता: मौत की परछाई

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ

रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

रूह का रिश्ता: एक अघोरी

रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते


पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा तृषा एक बहुत बुरा भयानक सपना देख कर डर कर उठ जाती है। सपने में दिखे उस दृश्य को वह कैनवास पर उतार देती है। कॉलेज में पेंटिंग सबमिट कर  वापस आते हुए रास्ते में उसके साथ कुछ अजीबोगरीब घटनाएँ होती हैं। घर आने पर रक्षा अमर को लेकर कुछ बातें करती है और नाराज हो खाना छोड़ अपने कमरे में बैठ जाती है।
उसके पास अमर का फोन आता है और वह उन तीनों को अपने पास आने के लिए कहता है! अब आगे

अमर की बात सुन रक्षा बेड पर बैठ रोने लगती है उसके आंसू अब भी नहीं थम रहे। वह समझ नहीं पाती कि कैसे दादी और तृषा को यह सब बातें बताए?

कुछ देर बाद हिम्मत करके वह उठती है..।
"दादी, तृषा, हमे बेंगलुरु जाना है चलो मेरे साथ।"
"बैंगलोर क्यों जाना है?" दादी ने पूछा
मोनू चाचा ने बुलाया है दादी।
पर क्यों? अच्छा रुक जा मैं फोन लगा कर पूछती हूं।
दादी मेरी अभी बात हुई है वहां कोई रिश्ते वाले आ रहे हैं। इसलिए बुलाया उन्होंने।
कहते कहते रक्षा की आवाज भर आई और वह अंदर चली गई।

ऐसे अचानक? अजीब बात है! मोनू ने मुझे फोन नहीं किया? रक्षा के रिश्ते के लिए? दादी असमंजस में होती है इसलिए वह एक बार मूलचंद जी को फोन लगाती हैं उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा है।

"ठीक है दादी! कोई वजह होगी। हो सकता है रक्षा दीदी ने ही उन्हें फोन किया हो, और उन्होंने रक्षा दीदी को बता दिया।

कोई बात नहीं आप बैठिये मैं जाने की तैयारी करती हूँ। कहकर तृषा अपने कमरे में चली जाती है दादी के और अपने कपड़े और कुछ जरूरी सामान पैक कर लेती हैं।
रक्षा भी अपनी पैकिंग कर के बाहर आ जाती है और वह शाम की फ्लाइट के लिए टिकट्स बुक करा देती है। तृषा, दादी और रक्षा बेंगलुरु पहुंच गए हैं।

मूलचंद जी के घर के बाहर तक जोर जोर से के लोगों के रोने की आवाज आ रही है। दादी और तृषा यह सब सुनकर बहुत घबरा जाती है रक्षा जिसे सब कुछ मालूम है अब उसकी रुलाई रोके नहीं रुकती वह भी जोर जोर से रोने लगती है और घर के बाहर ही बैठ जाती है। दादी और तृषा, रक्षा की ऐसी हालत देखकर बेहद घबरा जाते हैं अंदर से आने वाली रोने की आवाजें उनके डर में और इजाफा कर देते हैं। दादी और तृषा उसे उठाते हैं। दादी रक्षा के सिर पर हाथ रखकर कहते हैं क्या हुआ मेरे बच्चे रो तो ना रक्षा। अब तो मेरा मन घबरा रहा है तुम्हे देखकर। आखिर क्या हुआ?  रक्षा तृषा और दादी का हाथ पकड़ अंदर लेकर जाती है एक-एक कदम भी उठाना इस वक्त उन्हें बेहद भारी पड़ रहा था हर कदम के साथ तृषा और दादी के मन में एक अनजाना सा बस भय घर किये जा रहा था। दादी, तृषा और रक्षा जैसे तैसे घर के अंदर जाते हैं। अंदर का दृश्य देखकर दादी के पैरों के नीचे से जमीन खिसक जाती है।

बाहर बने बड़े से हॉल में ढेर सारे लोग बैठे हैं निशा का रो रो कर बुरा हाल है। अमर उसके पास बैठा, तृषा पर अमर की नजर पड़ते ही वह उसे इशारे से निशा के पास बैठने के लिए कहता है और खुद दादी के पास आकर खड़ा हो जाता है।
क्या हुआ बेटा निशा क्यों ऐसे रो रही है कहते कहते दादी भी रोती जाती हैं। मोनू कहां है बहू कहां है यह सुनकर रक्षा दादी के गले लग जोर जोर से रोने लगती है। हॉल के कोने में रखी गई तस्वीरों पर अब दादी  का ध्यान जाता है, जब रक्षा के गले लगाने पर उनके चेहरे की दिशा बदलती है। ये दृश्य और अपने बच्चों के रोने की आवाज़े उनके दिल में तीर की तरह चुभने लगती है। वे अपने मन, भावनाओं, मस्तिष्क पर नियंत्रण नहीं रख पाती
उनकी आंखों के आगे अंधेरा-सा छाता उन्हें महसूस होता है। धीरे-धीरे उनका शरीर अशक्तता का महसूस करने लगता है, और शिथिल सा पड़ जाता है।  उनकी आंखें अब बन्द होने लगती हैं और वह निश्चेत हो जाती हैं। अमर और रक्षा उन्हें गिरने से बचा लेते हैं।दादी की हालत देख सब घबरा जाते हैं। अमर जल्दी से डॉक्टर को बुला कर ले आता है।

डॉक्टर उनका चेकअप करता है और बताता है कि बी पी बहुत लो हुआ है। दवाइयां देकर वह चला जाता है। तीन दिन बीत जाते हैं। निशा का हाल बहुत बुरा है दादी को जैसे ही होश आता वे रो-रो कर फिर बेहोश हो जातीं। अमर रक्षा और  तृषा मिलकर उन दोनों का ख्याल रख रहे हैं, साथ-साथ अंतिम रस्मों से जुड़ी जिम्मेदारियां भी पूरी कर रहे हैं।

बड़ी मुश्किल से डॉक्टर के ट्रीटमेंट के बाद पांचवे दिन दादी की हालत में सुधार होता है। कुछे एक दो लोगों को छोड़ सारे मेहमान जा चुके होते हैं। अमर रक्षा और तृषा उन्हें मानसिक रूप से मजबूत रहने के लिए समझाते हैं।
वे भी खुद को मजबूत रखने की काफी कोशिश करती हैं। फिर भी उनसे रहा नहीं जाता हिम्मत टूट जाने पर वह जोर-जोर से रो कर कहने लगती है,

मैंने ऐसे कौन से पाप किए हैं? मेरे दोनों बेटे मेरे सामने गुजर गए। ईश्वर एक ऐसी कठिन परीक्षा आखिर क्यों ले रहे हो?
बच्चों से उसके माता-पिता, चाचा- चाची सबको छीन लिया! किसी को तो उनके सहारे के लिए छोड़ देते मैं बूढ़ी मिट्टी कब तक साथ दूँगी इनका?
दादी की बातें सुन उन सब को भी रोना आ जाता है बमुश्किल वे एक दूसरे को संभालते हैं।
दादी थोड़ा संयत हो अमर से पूछती है,
आखिर यह सब कैसे हुआ क्या हुआ? ना तो पहले मेरे बेटे बहू तुम्हारे माता-पिता के शरीर हमें अंतिम संस्कार के लिए  मिल पाए और अब मोनू और बहू का भी वही हाल!! आखिर उन्हें हुआ क्या अचानक? और तुम यहां कैसे आए? तुम्हें कैसे पता चला अमर!!
अमर उदास होकर बताता है दादी उस दिन मेरे पास निशा का ही फोन आया था, जब मैं घर से निकला यह बहुत जोर जोर से फोन पर रो रही थी और कह रही थी कि तुम्हारी बहुत जरूरत है अभी चले आओ ।

यहां आया तो निशा ने बताया कि मां पापा के साथ पिछले दो-तीन दिन से काफी हादसे हुए एक दो बार मां बालकनी से अंदर आते हुए मुंह के बल गिर पड़ी और दूसरी बार मे उन्हें जबड़े पर काफी अंदरूनी चोट आ गई थी   उनके अगले ही दिन पापा बाथरूम में फिसल गए। तीस दिन का प्लास्टर था उन्हें हाथ में।

ये सब मुझे क्यों नही बताया न मोनू ने न तुमने  दो तीन दिन पहले ही तो बात हुई थी हमारी। दादी ने रोते हुए  निशा से पूछा।

दादी मम्मी पापा ने ही कहा कि दादी को कुछ मत कहना वे, रक्षा, और  तृषा नाहक चिंता में पड़ जाएँगे।
निशा ने जवाब दिया और फिर आगे बोली

इस घटना के अगले दिन उन दोनों को एकाउंट मैनेजर ने किसी जरूरी जानकारी देने के लिए फैक्टरी बुलवाया।
उनके जाने के एक घण्टे बाद खबर आई कि वहाँ आग लग गई है। रोते, घबराते हुए मैं वहाँ गई। पुलिस भी आ चुकी थी। आग बहुत भीषण रूप ले चुकी थी। सब कुछ धूँ-धूँ कर जल रहा था। मेरा मन बस रोये जा रहा था और पुलिस वाले बस अपनी पूछताछ में लगे एक के बाद एक सवाल कर रहे थे। लोकल मीडिया भी था, जो बार बार एक ही सवाल को दोहरा कर अलग अलग तरीके से पूछ रहा था मैं किसी को जवाब नहीं देना चाहती थी लेकिन कोई इस दुख को समझने को तैयार नहीं था। मैं माँ पापा की चिंता में थी। न जाने वे किस हाल में हो? मेरे समझ मे कुछ नही आया, हारकर मैने अमर को फ़ोन लगा कर बुला लिया।
दादी अमर की और देखकर बोली तू तो कुछ बताता अमर काम है कहकर चला आया। दादी मुझे लगा नही था कि आग इतना वीभत्स रूप ले चुकी होगी निशा ने भी ज्यादा कुछ नहीं बताया बस कहा आ जाओ तो मैं आगया।
यहाँ आया तो पता चला आग बहुत भीषण थी। तेज़ हवाओ ने उनकी लपटों को और बढ़ा लिया था। फ़ेक्टरी शहर से दूर फार्म ग्राउंड में थी इसलिये जब तक दमकल विभाग (फायर ब्रिगेड) की टीम आई, तब तक फ़ेक्टरी मे सब कुछ जलकर राख हो चुका था। मेरे आने तक सब ख़ाक हो चुका था। हमने खूब मशक़्क़त की पुलिस की रेस्क्यू टीम ने एक एक कर सबको बाहर निकल, हर जगह खोजबीन की लेकिन उसके बाद भी मोनू अंकल और आंटी नहीं मिले।
यह सब सुनकर रक्षा, तृषा और दादी फिर जोर जोर से रोने लगते हैं उनके साथ ही निशा का कृन्दन भी फूट पड़ता है।

सब आपस में एक दूसरे के गले लग कर एक दूसरे को सांत्वना दे रहे हैं उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।
इसी तरह रोते-रोते एक दूसरे का साथ निभाते एक दूसरे को संबल देते हुए पंद्रह दिन यूं ही निकल जाते हैं।

निशा आना नहीं चाहती थी मगर दादी अमर रक्षा तृषा जबरदस्ती उसे अपने साथ गुना ले आते हैं।

घर आकर सभी थोड़ी देर के लिए सो जाते हैं। काफी दिनों से उनका मन अशांत था आज जाकर सबको थोड़ी नींद लगी थी।
अमर जाग रहा था वह किचन में पानी लेने गया और उसी वक़्त तृषा भी उठकर रसोई में आती है।

क्या चाहिये पानी? कहकर,  अमर बिना तृषा के जवाब की प्रतीक्षा किये पानी का गिलास उसकी ओर बढ़ा देता है। तृषा पानी पीने लगती है और अमर अपने लिए दूसरे गिलास में पानी डालते हुए उसे कहता है-
"हो सके तो उसे बिल्कुल भी अकेला मत छोड़ना उसके साथ रहना।"
"डोंट वरी! आई विल डेफिनेटली टेक केअर ऑफ हर।"

तृषा और निशा की बॉन्डिंग बचपन से ही काफी अच्छी थी। हम उम्र होने से भी वे एक दूसरे को अच्छी तरह समझ भी पाते थे।

रात को तृषा दादी से कहती है कि वह अपने बैडरूम में निशा के साथ सोएगी।
दादी भी कहती है- हाँ बिलकुल मेरा बच्चा अभी उसे हर पल किसी के साथ कि जरूरत है। तृषा निशा को अपने रूम में ही सोने के लिए कहती हैं।
मेरे रूम शेयर करने से तुम्हें कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी ना!! बेड पर बैठते हुए निशा पूछती है।

कैसी बातें कर रही हो!!  पागल हो निशा तुम!? तुम बहन हो मेरी, बहनों को एक दूसरे से कैसी प्रॉब्लम? कहकर निशा तृषा को गले लगा लेती है। किसी अपने का स्पर्श पाकर उसके अंदर  सारी भावनाएं फिर से फूट पड़ती हैं और वह रोने लगती है।
तृषा उसे पानी पिलाकर चुप करती है।
निशा जिस दर्द से तुम गुजर रही हो ना उससे मैं, अमर और रक्षा दीदी भी गुजर चुके हैं। जानती हूं हमारे मां पापा की कमी जीवन में हमारे लिए कोई पूरी नहीं कर पाएगा। लेकिन सच्चाई का सामना तो हमे करना ही होता है। आगे तो बढ़ना ही होता है वो भी अकेले। कई बार सबका साथ होकर भी लगता है कोई साथ नही लेकिन हम लकी हैं हमारे जीवन मे इतनी अच्छी दादी हैं वे हमें बहुत प्यार करती हैं और तुम्हें कभी चाचा चाची की कमी महसूस नहीं होने देंगी और रही सही कसर पूरी करने को मैं अमर और रक्षा दी जैसे भाई बहन कम दोस्त हैं ना।
सुनकर निशा धीरे से मुस्का दी। बस ऐसे ही मुस्कुराती रहना।
वे दोनों बातें करती हुई सो जाती हैं।
अगले दिन सुबह उठकर निशा फ्रेश होकर सीधे किचन में चली जाती है।
दादी उसे बहुत मना करती हैं।
अरे! तुम आराम करो बेटा यह सब हम कर लेंगे।
नहीं दादी मुझे करने दो न तभी तो मन लगेगा। उसका बनाया कहना बहुत स्वादिष्ट था सब तारीफ करते नहीं थकते।
निशा धीरे-धीरे खुद को घर में और घर के लोगों के साथ जोड़ने और वही मन लगाने की कोशिश करने लगती है।

एक शाम सब छत  पर बैठकर अंताक्षरी खेल रहे होते हैं। तृषा उठकर सबके लिए चाय बनाने का कहकर नीचे आती है। सबके गाने की अस्पष्ट और हल्की आवाज़ें किचन में उसे आ रही होती है। वह गानों को समझ कर खुद जोर जोर से गाते और झूमते हुए चाय बना रही होती है। अचानक उसे महसूस होता हैं कि सबकी आवाज़े आनी बन्द हो गई है।
अरे! अंताक्षरी खत्म हो गई क्या? निशा गाओ न... किचन से बाहर आकर सीढ़ियों के पास खड़ी होकर वह नीचे से ही जोर से चिल्लाती है।
जैसे ही वापस रसोई में जाने को मुड़ती है तो उसे एक भयानक परछाई दिखकर तुरंत ओझल हो जाती है। जिसे याद कर वह काँप जाती है। ये उसी अघोरी की परछाई सी लगी उसे। वह डर के मारे ऊपर जाने लगती है तो उसके कान में फुसफुसाती हुई तेज़ आवाज़ आती है।
तुम कब तक भागोगे? मृत्यु के साथ तो रह रहे हो अब कैसे बच पाओगे?  कहकर उसे जोर से हँसने की आवाज़ आती है।
क्या खुलेंगे राज़? कौन है सबके साथ राह रही मौत की परछाई? अमर!? निशा!? दादी!? रक्षा!? या कोई अनजान अदृश्य शक्ति!!? जानने के लिए पढ़ते रहें। रूह का रिश्ता।

वैसे आप सबको क्या लगता है? कौन कर रहा है ये सब? अगर आप अनुमान लगा सकें तो कमेंट में लिखकर जरूर बताएँ आपको किस पर शक है?


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