16 रूह का रिश्ता: डर का साया

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ

रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

रूह का रिश्ता: एक अघोरी

रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते


पिछले एपिसोड में आपने सुना अमर के फोन करने पर  दादी रक्षा और तृषा बेंगलुरु जाते हैं, जहां उन्हें मूलचंद जी और उनकी पत्नी के फैक्ट्री में जलकर देहांत हो जाने की खबर मिलती है निशा को वे अपने साथ गुना ले आते हैं एक शाम में अंताक्षरी के खेल के बीच तृषा किचन में चाय बना रही है उसे किसी की परछाई दिखाई देती है और साथ ही उसके कानों में कुछ आवाजें सुनाई देती है जिससे वह बहुत घबरा जाती है अब आगे-
तुम कब तक भागोगे? मृत्यु के साथ तो रह रहे हो अब कैसे बच पाओगे? कहकर उसे जोर से हँसने की आवाज़ आती है।
यह सुनकर तृषा और भी ज्यादा घबरा जाती है उसका शरीर पसीने से तरबतर हो जाता है वह ऊपर की ओर भागती है

और सबके सामने जाकर खड़ी हो जाती है। उसे यूं घबराया हुआ देखकर दादी पूछती है
क्या हुआ तृषा तुम तो चाय बनाने गई थी, ऐसे भाग कर क्यों आ रही हो। दादी ये तो हांफ रही है बुरी तरह।
क्या हुआ तृषा दादी ने फिर पूछा
दादी वह नीचे.... वो... नीचएएए…… घबराहट के मारे तृषा की आवाज ही नहीं निकल पाती हैं।
हां क्या हुआ नीचे...?
आगे तो बोलो तृषा अमर कहता है।

दादी वह पेंटिंग वाला अघोरी...दादी उसके मुंह से पेंटिंग के बारे में सुनकर और घबरा जाती हैं। तुरंत उसके पास खड़े होकर पूछती हैं क्या हुआ तृषा?
दादी आप नीचे चलिए... वह दादी से कहती है। निशा, अमर, रक्षा  कुछ भी समझ नहीं पाते।
दादी को नीचे ले जाकर तृषा बताती हैं कि उसे सीढ़ियों के पास उसकी परछाई दिखाई दी थी। सब मिलकर पूरा घर छान मारते हैं लेकिन उन्हें कहीं कोई दिखाई नहीं देता।
निशा और अमर असमंजस में पूछते हैं किसकी बात कर रही हो तुम क्या हुआ है आखिर?

दादी और तृषा मिलकर उन्हें सपने के बारे में बताते हैं। निशा, रक्षा और अमर यह सब सुनकर सिर पीट लेते हैं।
तृषा तुम पागल हो, एक सपने को लेकर इतना घबरा रही हो? देखो मैं तो सही सलामत खड़ा हूँ न तुम्हारे सामने?
और तुमने अपने दिमाग में उसे भर कर रख लिया और तो और पेंटिंग ही बना दी ताकि वो बात दिमाग से कभी निकले ही न?

रक्षा भी उसका साथ देती हुए निशा से कहती है-
निशा मैं कईं बार से समझा चुकी हूं कि इतना ना सोचो लेकिन यह समझती ही नहीं है कभी।

हाँ! रक्षा दीदी सही बोल रही हैं तृषा सपने को सपनों को सपनों की तरह लो उन्हें हकीकत में क्यों सोचती रहती हो? निशा भी समर्थन में कहती है।

लेकिन मुझे ये सपने क्यों आते हैं मैं तो ऐसा कुछ सोचती नहीं हूँ।
सोचती हो तभी तो...  असल में कोई होता अगर यहां तो दिखाई देता। कोई भी उसकी बात पर यकीन करने को तैयार नहीं होता।
दादी तृषा का साथ देते हुए कहती हैं, बेटा! तुम कुछ मिनट शांत बैठ कर ईश्वर के समक्ष ध्यान करो। मुझे पता है इतना सबकुछ बेमतलब नहीं हो सकता। कुछ तो है तभी हमारा हंसता खेलता परिवार यूँ बिछड़ गया। दादी उसे आश्वासन देती हैं कि मैं कुछ पता करने की कोशिश करती हूं चिंता मत करो। दादी की बात से उसे सम्बल मिलता है और वह पूजाघर में जाकर बैठ जाती है।
रक्षा, अमर, निशा एकसाथ  दादी को एकसाथ घेर लेते हैं।
दादी आप की सोच कबसे ऐसी हो गई।? आपको तृषा को समझाना चाहिए। उसकी बातों को सपोर्ट करके आप अनजाने ही उसे बढ़ावा दे रही हैं।
लेकिन इतना कुछ बेवजह नहीं होता इसके पीछे कोई तो है। या तो कोई हमे डरा रहा है।
लेकिन किसी को क्या मिलना ये सब करके? आप समझ नही रही दादी तृषा के मस्तिष्क पर ये सब कुछ जम चुका है वो घटनाएं भूलना नहीं चाहती यही उसकी समस्या है। रक्षा कहकर चली जाती है।

दादी आप परेशान न हो सब ठीक कर दूंगा मैं। अमर उन्हें सांत्वना देता है।

मैं तृषा को देखकर आती हूँ कहकर निशा चली जाती है। कुछ देर पूजाघर में बैठने पर तृषा का डर थोड़ा कम होता है। उसका मन थोड़ा शांत होता है।

निशा उसे समझाती है तृषा कई बार ऐसा भी होता है कि प्रत्यक्ष रूप से तो हम कुछ नहीं सोचते लेकिन हमारे अवचेतन मस्तिष्क में कुछ बुरी यादें अपने आप अपना विस्तार करती रहती है। तुमने कई सारे हादसे देखे और शायद तुम्हारा मन मस्तिष्क इतना दृढ़ नहीं है कि पूरी तरह उन्हें भूल पाए। तुम चाहे नहीं सोच रही पर ये सपने तुम्हारे अवचेतन मन मे खुद से विस्तार करते जा रहे हैं। और इसीलिए शायद तुम्हें यह अजीबोगरीब नए नए सपने दिखाई दे रहे हैं। निशा अपनी समझाइश से आखिरकार उसके मन में यह बिठा पाने में कामयाब हो जाती है कि वह सिर्फ एक सपना है और उसे इतना ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है।
उसकी बात सुनकर तृषा सब कुछ भूलने की धीरे-धीरे कोशिश करती है। पर हर समय एक अनजान डर उसके मन मे फिर भी हमेशा बना रहता।
धीरे-धीरे उनके दिन सामान्य बीतने लगते हैं। निशा, तृषा की बॉन्डिंग पहले से और भी ज्यादा गहरी होने लगती हैं। तृषा जितनी बातें दादी के साथ किया करती थी अब रोज वह निशा से भी उतनी ही ढेर सारी बातें करती। रात को सोते वक़्त भी आज दिन भर में क्या हुआ क्या नहीं, उन्होंने कब, क्या महसूस किया? आगे फ्यूचर में क्या करना है? जैसी  हर तरह की बातें आपस में करती।
निशा तृषा सगी बहनों सी लगती। उनमे बस कुछ आदतों का फर्क था।
निशा पढ़ने में काफी होशियार है तेज है, उसे पढ़ाई के अलावा किताबें पढ़ने का भी बेहद शौक है।  सुंदरता में तो दोनों का ही कोई सानी नहीं।
तृषा गृह कार्य में दक्ष नहीं थी। जब कि निशा हर तरह का खाना बना लेती थी।
तृषा में अभी कहीं न कहीं बचपना और मासूमियत अब भी बची थी। निशा पहले से ही थोड़ी गंभीर प्रकृति की थी और अब मां पिता के जाने के बाद और संजीदा हो गई थी।
साथ रहते हुए सब ने पाया कि निशा और अमर की बहुत सी पसंद मिलती थी। पढ़ने में दोनों को बहुत रुचि थी। खाने के मामले में एक सा खाना उन्हें पसन्द और नापसन्द था।

आज तृषा और निशा हॉल में बैठकर बातें कर रहे हैं।  
निशा की पढ़ने में रुचि जानकर, अमर अपने कमरे से कुछ किताबें ले आया। और उसे दे दी।

तुम यह सब पढ़ते हो? निशा ने पूछा।
हां मुझे नॉवेल्स पढ़ना पसंद है।
तुम्हारी और मेरी पसन्द तो मिलती है तुम्हें पता है ये सारी किताबे मेरे कलेक्शन में हैं। निशा एक एक कर किताबों पर नज़र डालते हुए खुशी से बोली।
अच्छा!! क्या बात है। कल मार्केट से कोई नया ले आऊंगा।
वैसे तुम्हें क्या पढ़ना पसंद है?
मैं तो सबकुछ पढ़ लेती हूँ, फिक्शन, मोटिवेशनल, बिज़नेस मैगज़ीन्स से लेकर फैशन तक। कोई सीमा रेखा नहीं है कहकर निशा हंस दी।
वाह!! फिर तो आसान होगा मेरे लिए। कहकर अमर वहीं उनके सामने बैठ गया और दोनों किसी नॉवेल के केरेक्टर पर चर्चा करने लगे।
ओ!! हेलो!!! पुस्तक प्रेमियों! यहां कोई और भी है। इस टॉपिक पर डिस्कशन बिल्कुल नही होगा, जिसमें मेरा पार्टिसिपेशन न हो समझे!!
अजीब दादागिरी है,  देखो अब बातें भी हम राजकुमारी तृषा की आज्ञा से उनके पसंदीदा विषय पर ही कर पाएंगे। कुछ ज्यादा नही हो गया तृषा!!?
कुछ ज्यादा नहीं हुआ। किसी कॉमन टॉपिक पर बात करो जिस पर सब का इंटरेस्ट है यह तो डिस्कशन का नार्मल सा रूल है।

तो तुम एक काम क्यों नहीं करती जब तक हम दोनों पुस्तक प्रेमी पुस्तकों पर चर्चा करें तुम बढ़िया सी मजेदार कड़क चाय बना कर ले आओ फिर हम तुम्हारे पसंद के टॉपिक पर डिस्कस करेंगे।
सिर्फ निशा और मेरे लिए बनाऊँगी। तृषा मुँह बनाकर कहते हुए   किचन में चली जाती है।

निशा मुस्कुराते हुए कहती है
तुम सब मिलकर कितना ध्यान रखते हो मेरा।
तुम परिवार का हिस्सा हो निशा। इसमें कोई बड़ी बात नहीं है परिवार के लोग एक दूसरे का ध्यान रखने के लिए बने होता है ना। मैं तो कोई नही फिर भी दादी को देखो मुझे कभी एहसास नही होने दिया कि मैं दूसरे घर का बेटा हूँ।  कहकर अमर मुस्कुरा देता है।
बदले में निशा के मुख पर भी एक छोटी सी मुस्कान दिखाई देती है।
उदास मत बैठा करो बस। इसी तरह हंसते रहा करो अच्छी लगती हो। कहकर वह किचन की ओर चला जाता है निशा की नजर जाते हुए अमर पर टिक जाती है।

खाना बनाने का ज़िम्मा अब पूरी तरह निशा ने संभाल लिया था।
तृषा भी उससे कई बार कुछ न कुछ सीखती।
अमर ने आज उसे उसे चिढ़ाया चाय के अलावा भी कुछ अच्छा बनाना सीख लो।
पर तुम्हे तो चाय ही पसन्द है तपाक से कहकर तृषा मुस्कुरा दी। मगर निशा वहीं है ये  ख्याल आते ही वह किचन के बाहर आगई। अमर भी बगले झांकता रहा कुछ सेकंड और वह भी बाहर आ गया।
तृषा अपने कमरे में किसी पॉट पर पेंटिंग करने में व्यस्त हो गई। निशा  उसे खाने के लिए बुलाने आती है तो देखती है, अमर उसके कमरे के सामने दूर कुर्सी लगाकर बैठा बस उसे ही एकटक देख मंद मंद मुस्कुरा रहा है।
निशा के वहाँ पहुंचते ही वह इधर उधर हो जाता है। चलो खाना रेडी है। हां बस ये कुछ... कहते हुए तृषा पॉट से नज़रें हटा कर ऊपर देखती है पर निशा ये कहकर बिना जवाब की प्रतीक्षा किये तुरन्त निकल जाती है।

शाम को अमर तृषा और निशा को कॉफी पीने लेकर जाने के लिए कहता है।
आज आइसक्रीम की जगह आज कॉफी? टी लवर को कॉफी की बात करते पहली आज बार सुना। तृषा ने हैरानी से कहा।

हाँ वो निशा को पसन्द है न कॉफ़ी! मैंने सोचा आइसक्रीम तो हमेशा ही खाते हैं हम।
हां तो चलो आज कॉफ़ी सही। नही मेरा मन नही है तुम दोनों जाओ। कहकर निशा कमरे में चली जाती है।
इसे क्या हुआ? अमर पूछता है।
पता नही। देखती हूँ। कहकर तृषा उसके पीछे जाती है।

क्या हुआ निशा?
कुछ नही बस थकान सी है एग्जाम्स भी आने वाले हैं।  तैयारी करनी है। एग्जाम देने तो मुझे बंगलोर जाना ही होगा। कैसे, किसके साथ जाऊँगी, उसके बारे में भी सोच रही हूँ।
अरे बहुत टाइम है अभी कोई भी चल जाएगा साथ अभी से क्यों इतनी चिंता?
हाँ थोड़ी देर रेस्ट करूँगी तो अच्छा लगेगा। ठीक है तुम आराम करो कहकर तृषा चली जाती है।

निशा का रवैया अब धीरे धीरे बदल रहा है। अब वह ज्यादा बातें नही करती तृषा से। तृषा खुद बात करे भी तो पढ़ाई या कुछ और बहन बना कर टाल देती है।

निशा परेशान सी लग रही हो आजकल एक रात को अपने कमरे में तृषा ने निशा से पूछा।
जवाब में वह खामोश ही रही और अपनी पढ़ाई करती रही। क्या हुआ निशा तुम कुछ जवाब नही दे रही?
डिस्टर्ब कर रही हो तुम अब मुझे। उसका जवाब सुन तृषा  थोड़ा हैरान हो जाती है।
हिम्मत करके पूछती है गुस्सा हो क्या मुझसे?
मैं क्यों गुस्सा होंगी तुमने कुछ किया है क्या?  निशा और भी बेरुखी से अपने काम मे मगन बिना उसकी और देखे चेहरे पर सख्त भाव लिए कहती है।
तृषा उसे उस वक़्त ज्यादा कुछ पूछना ठीक नही समझती।

सुबह वह ये सब अमर और दादी को बताती है।
माता पिता के न होने से डिस्टर्ब है वो। अमर कहता है।
हाँ बेटा याद आगई होगी उसे, मोनू और बहू की। कहकर दादी की भी आंखों में पानी आजाता है।
उस पूरा दिन निशा किसी से कोई बात नही करती।
अगले दिन तृषा भी निशा से कोई बात नही करती ये सोचकर कि उसका मन सही होने पर उससे पूछेगी।

तृषा!! निशा धीरे से कहती है।
हाँ बोलो?
सॉरी यार कल के लिए। मुझे पता नही क्या हो जाता है कभी कभी। अजीब बर्ताव करने लगती हूँ। कहकर उसके नेत्र भीग जाते हैं।
कोई बात नही समझतीं हूँ मैं, कहकर तृषा उसे गले लगा लेती है।
अगले दिन अमर आकर खाता है कि फाइनल ईयर के पेपर खत्म होते ही प्रोफेसर के भाई ने मुझे परमानेंट जॉब का आफर दिया है।
यह तो बहुत ही खुशी की बात है ना। तृषा दादी निशा बेहद खुश हो जाते हैं।
मगर जॉब क्या है कहाँ है? जॉब तो अभी जो कर रहा हूँ फिलहाल वही रहेगी हां सैलेरी बढ़ेगी और पोस्टिंग शायद दूसरे शहर में। दूसरे शहर में सुनकर तृषा थोड़ी उदास होती है। दादी भी चिंतित हो जाती है। मगर सब खुशी से उसे बधाई देते हैं।

फिर ट्रीट तो बनती है। रक्षा दीदी अजाएँ तो शाम को चले सब? अमर पूछता है।
अमर मेरा आना नहीं होगा।
क्यों? तृषा के कहने पर अमर पूछता है।
इसको कल अपने फाइनल असाइनमेंट्स सबमिट करने हैं।निशा जवाब देती है।
अरे यार!
रक्षा भी आने से इनकार कर देती है स्कूल में कल से उसकी पर्यवेक्षक की ड्यूटी है सो है उसे जल्दी जाना होता है।
फिर कैंसिल कर दें? निशा कहती है।
क्यों तुम दोनों तो जाओ तृषा कहती है।
ठीक है चलो हम दोनों चलते हैं अमर के ऐसा कहने पर निशा तैयार हो जाती है।
जाते वक्त रास्ते मे निशा रोड क्रॉस कर रही होती है और अचानक सामने से तेज़ी से ट्रक आता है जहां तुरन्त अमर हाथ पकड़ कर उसे पीछे खींच लेता है। उस वक़्त उसने फुर्ती न दिखाई होती तो कोई हादसा होने तय था। जितनी तेजी से वह ट्रक आता है उतनी ही तेज़ी से स्पीड में वह कब आंखों से ओझल हो जाता है पता ही नही चलता।
इस अचानक हुई घटना से निशा बहुत घबरा जाती है।

टोने अगर गलत हो जाए न तो पलटवार भी होता है बच्चे!
उल्टी न पड़ जाए चाल!!
देख ले रख लेना ख्याल!!
अचानक ऐसी आवाज़ आने पर वे दोनों हैरत से पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें काले कपड़ों में कोई साधु उनकी और देखकर यह कहता है नज़र आता है। 

टोने अगर गलत हो जाए न तो पलटवार भी होता है बच्चे!
उल्टी न पड़ जाए चाल!!
देख ले रख लेना ख्याल!!
घटना के तुरन्त बाद अचानक ऐसी आवाज़ आने पर वे दोनों हैरत से पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें काले कपड़ों में कोई साधु उनकी और देखकर यह कहता है नज़र आता है। 

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