17 किस्मत का खेल

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ

रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

रूह का रिश्ता: एक अघोरी

रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते

पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा तृषा घबराकर सबको किचन में हुई घटना के बारे में बताती है। दादी के अलावा कोई उस पर भरोसा नहीं करता अमर सबको बताता है उसे ग्रेजुएशन के बाद परमानेंट जॉब का ऑफर मिला है। इसी खुशी में वह सबको ट्रीट देता है रक्षा तृषा जाने के लिए ना कह  देती है। तृषा के कहने पर निशा और अमर ट्रीट के लिए चले जाते हैं जहां एक साधु उन्हें घूरते हुए कहता है टोने अगर गलत हो जाए न तो पलटवार भी होता है बच्चे!
उल्टी न पड़ जाए चाल!!
देख ले रख लेना ख्याल!!
अचानक ऐसी आवाज़ आने पर वे दोनों हैरत से पीछे मुड़कर देखते हैं तो उन्हें काले कपड़ों में कोई साधु उनकी और देखकर यह कहता हुआ नज़र आता है। 

क्या बोल रहा है ये!! निशा बोली।
इग्नोर करो ऐसे लोग मगन खुद से बातें किया करते हैं। अमर ने कहा।
हम्म शायद। निशा ने समर्थन किया।
वे दोनों आगे बढ़ गए मगर एक बार फिर पीछे देखा तो वह उन दोनों को ही देख मुस्कुरा रहा था। वे रोड के इस पार आगये । उत्सुकता ने उन्हें एक बार फिर सामने देखने को मजबूर किया पर इस बार वह वहाँ नहीं था।

दोनों कॉफ़ी शॉप में चले जाते हैं।
हमारी कितनी चॉइसेस मिलती है ना? निशा कॉफी पीते हुए बोली।
हाँ सिवाय इस कॉफी  के। अमर ने हाथ का कप थोड़ा तिरछा कर उस कप की और इशारे में गर्दन हिलाते हुए कहा।

तुम्हे पसन्द नही है तो कहते न! हम आइसक्रीम ही खा लेते।
अरे नही ट्रीट मैं दे रहा हूँ पसन्द तो तुम लोगों की होनी चाहिए न।
तृषा और दीदी आतीं तो उन दोनों को भी उनके पसन्द की ट्रीट देता। अमर ने मुस्कुरा कर कहा।

सच तुम लोग हो तो मुझे माँ पापा की कमी सिर्फ अकेले में महसूस होती है।
हम सब एक दूसरे का सहारा हैं निशा। मेरे साथ भी यही है। बस जल्द अब पापा का सपना पूरा करना है। वे हमेशा से बिज़नेस मैन बनना चाहते थे रायचंद अंकल की तरह। कभी कभी उनसे कहते थे में मोनू भैया से भी बड़ा बिज़नेस खड़ा करूंगा एक दिन। मुझे उनका वो सपना तीन साल में पूरा करना ही है। और इसी लिए मैने ये जॉब आफर एक्सेप्ट किया।
तुम जरूर कर लोगे अमर कहकर निशा मुस्कुरा दी।
तुम्हारा क्या फ्यूचर प्लान है निशा? फिलहाल तो मुझे एग्जाम्स की टेंशन है। बैंगलोर जाना पड़ेगा उसके लिए। उसमे क्या है? अगर हमारे एग्जाम्स की डेट्स क्लैश न हुई तो मैं आ जाऊँगा साथ।
ओह वाओ रियली!?
यस डेफिनेटली।
सो स्वीट ऑफ यू अमर थैंक यू।
अब घर चलें? काफी देर हो गई है। कुछ देर बाद अमर ने कहा।
दोनों घर पहुंच जाते हैं।

कुछ दिनों में अमर की परीक्षाएँ हैं और उसकी परीक्षा खत्म होते ही एक दिन के अंतराल के बाद निशा की परीक्षाएं शुरू हो रही है। तृषा की उसके 1 महीने 15 दिन बाद।

दादी अगले हफ्ते से मेरी परीक्षाएँ हैं।
पापा कॉलेज के ट्रस्टी थे और एज़ अ स्टूडेंट मेरे पिछले कॉलेज रिकार्ड्स भी एक्सीलेंट थे इसलिए मम्मी पापा के बारे में पता लगने पर उन्होंने मुझे घर से पढ़ाई की परमिशन तो दे दी थी मगर पेपर देने तो बैंगलोर जाना ही होगा। डायनिंग टेबल पर निशा ने कहा।
हाँ ठीक है बेटा करते हैं कुछ प्लान।
वैसे त सबको एक बात और बतानी थी।
रक्षा से मिलने एक परिवार आ रहा है कल। दादी कहती है।
सुनकर रक्षा को छोड़ सबके चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है।

कोई भी आये उसे मेरे समय के हिसाब से बुलाइयेगा आप। मैं छुट्टी लेकर समय नही खराब करूँगी अब इन बेमतलब की मीटिंग्स के लिए। रक्षा बिना किसी की और देखे खाना खाते हुए बेरुखी से कहती है।

अगले दिन शाम को वह परिवार आकर रक्षा को शगुन के रुपये देकर चला जाता है।
दादी रक्षा की भी सहमति जानकर खुश हो जाती है। पांच महीने बाद की शादी की तारीख निकलती है। आपसी सहमति से वे तय करते हैं कि शादी के पहले ही सगाई का फंक्शन भी रख लेंगे। शादी वे पांच महीने बाद  तय करने का करते हैं।
रक्षा में कुछ बदलाव फिर नज़र आने लगे हैं। अब वह पहले से ज्यादा फ्रेश और खुश नजर आती है। अब बातें भी वह सबसे करती चिढ़ती भी कम।
नितेश यानी उसके होने वाले पति से उसकी फ़ोन पर बातें भी शुरू हो गईं थी। एक दिन दादी उसके कमरे में आती है।

सुनो रक्षा कुछ बात करनी थी बेटा।
हाँ दादी बोलिये
निशा की परीक्षाएँ पास हैं। उसके साथ बैंगलोर किसे भेज जाए   समझ नही पा रही।   अमर जाने वाला है दादी निशा कह रही थी। हाँ फिर भी हम दोनों में से किसी का साथ जाना भी जरूरी है। 

अमर के साथ निशा का अकेले यू इतने दिन रहना... मतलब हमे तो उन दोनों पर भरोसा है पूरा... मगर लोग बातें बनाते हैं। इसलिए मैं चाह रही थी उसके साथ तुम भी चले जाओ।

मेरा छुट्टी ले पाना मुश्किल है दादी। इतने दिन की एकसाथ कैसे मिलेगी?
फिर क्या करें?
आप क्यों नही चली जातीं?
फिर तृषा और तुम?
मैं अपना ध्यान रख लूँगी दादी।  और साथ ही तृषा का भी। हमारा जाना पहचाना ही शहर है कोई परेशानी नही होगी। और बस 15 दिन की ही तो बात है।
रक्षा दादी को बेंगलुरु जाने के लिए मना लेती है।

दादी...!
उसके कमरे से बाहर निकलने को दरवाजे तक पहुंच चुकी दादी को रक्षा आवाज़ देती है।
दादी पीछे मुड़कर देखती हैं।
अपने बेड पर बैठी ही वह कहती है।
आपके साथ जैसा रुख व्यवहार में इतने समय से कर रही थी,  मुझे नहीं करना चाहिए था।

कोई बात नही बेटा शादी ब्याह जिस चीज है अपने समय के अनुसार ही होते हैं और मैं अपने नादान बच्चों से नाराज़ थोड़ी हो सकती हूँ। अपनी गलती तुम्हे समझ में आ गई वह बहुत है अब बस अपना मन साफ रखो।

अमर के सभी पेपर हो जाते हैं दादी अमर और निशा बेंगलुरु के लिए निकलते हैं।
दादी को तृषा को छोड़कर जाते हुए बहुत चिंता होती है। एक अनजान सा डर उनके और तृषा दोनों के मन मे बना होता है।  जाते हुए तृषा भी उनके गले लगा रोने लगती है।
अमर उसे चिढ़ाता है। दादी बस 15 दिन में वापस आ रही है तुम्हारे पास।
दादी के बिना मेरे लिए 1 दिन भी रहना मुश्किल है।
अच्छा जब तुम्हारी शादी होगी तब क्या करोगी? निशा ने भी उसे चिढ़ाया।
मुझे नही करनी है कहीं कोई शादी वादी। दादी को छोड़ के तो कहीं नही जाऊँगी।
भरी आंखों से वह दादी और अमर को जाते देखती रही। दोनों के बिना रहने का ये उसका पहला मौका था।

उधर उनके पहुंचने के दूसरे दिन से निशा की एग्जाम्स शुरू हो जाती हैं।
अमर ही निशा को एग्जाम सेंटर लेकर जाता वही उसे घर वापस भी लेने आता। दोनों की सोच और पसन्द मिलने से उनके बीच बातें और घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी।

इधर रक्षा और तृषा एक दूसरे का ख्याल रख रही थी। तृषा रोज दादी से सोने के पहले 1 घण्टे बात करती। अमर से भी उसकी लगभग रोज़ ही बात होती।
आज तृषा  बेहद खुश थी उसे उस पेंटिंग कॉन्पिटिशन में विनिंग पोजीशन मिली थी जिसमे सबने 10 पेंटिंग्स फ्री सब्जेक्ट पर सबमिट की थी। उसे 1st  प्राइज मिला था जिसमें उसे मोबाइल गिफ्ट दिया गया था।
जिसमे सिम दाल कर सबसे पहले उसने अमर के नंबर पर फोन कर दादी से बात की और दादी को यह खुशखबरी उसने सुनाई।  निशा और अमर को जब दादी ने यह बात बताई वे भी सुनकर बहुत खुश हुए और उसका नंबर अपने मोबाइल में सेव कर लिया।
शाम को जब उसकी नजर मोबाइल पर पड़ी  अमर का मैसेज आया हुआ था। उसका नाम अपनी मोबाइल स्क्रीन पर देख कर वह खुशी से फूली नही समाई।

हाय तृषा कैसी हो ?
अच्छी हूँ। वह तुरन्त जवाब देती है।
हाँ अच्छी ही होंगी तुम तो, अब बार बार तुम्हें परेशान करने वाला जो नही है। वहाँ पता है तुम्हें कोई चिढ़ा रहा होगा ना कोई तुमसे चाय बनवा रहा होगा बार-बार।
तुम्हें सच बहुत मिस कर रहा हूँ लगता है कब निशा के पेपर्स हों और कब वापस आऊँ ।

अच्छा पूरा 1 हफ्ता हो गया तब तक तो तुम्हें मेरी याद नहीं आई?

यह सब बातें दादी के सामने फोन पर करना अच्छा नहीं लगता इसलिए नहीं कह पाता पर वाकई तुम्हारी कमी बहुत खल रही है मुझे।

मुझे भी।
सच?
बिल्कुल सच।😊

चलो अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।
हाँ बाद में बात करेंगे।
आल द बेस्ट गुड नाइट।
थैंक्यू अमर गुड नाइट।

एक शाम अमर लैपटॉप पर अपना मेल चेक करता है और स्क्रीन देखते ही बड़ी सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पर तैर जाती है। निशा वहीं से गुज़र रही होती है। वह रुक कर अमर को देखकर मुस्कुराने लगती है। फिर बाहर से ही पूछती है क्या बात है मिस्टर अमर बड़ी खुशी झलक रही है।
चलो बाहर दादी के पास बैठो वहीं आकर बताता हूँ। मुस्कुराते हुए अमर कहता है।

कुछ देर बाद मुस्कुराता हुआ अमर वहाँ आता है।
दादी, मुझे आज जॉइनिंग की जानकारी मिल गई है। दो तीन दिन बाद जॉइनिंग लेटर भी आजाएगा मेल पर।  ऐसा कहकर वह दादी के पैर छू लेता है।
निशा के पेपर्स खत्म होने के चार दिन पहले अमर को जॉइनिंग रिलेटेड इनफार्मेशन मेल पर मिल जाती है।

अरे वाह सदा खुश रहो बेटा हमेशा उन्नति हो तुम्हारी। बस आपके बचपन से मिलते आये इन आशीषों का ही परिणाम है ये सब।
वाह! ये तो बहुत खुशी की बात है। फिर कहाँ होगी तुम्हारी जॉब? निशा चहक कर पूछती है।
अभी 2 महीने तो मुझे यहीं जॉब करनी है बैंगलोर में।
फिर यहाँ से दूसरी जगह पोस्ट करेंगे या फिर यहीं परमानेंट पोस्ट देंगे यह दो महीने बाद वे बताएंगे। 
वाओ गज़ब अमर! ये तो बहुत अच्छी बात है खुश होते हुए निशा बोली। 
हाँ अब मेरा सोचा सब कुछ जल्द ही पूरा होगा कहते हुए उसकी आँखों मे एक अलग सी चमक आ जाती है। अगर परमानेंट यहीं जॉब हो गई तो तृषा की एग्जाम्स के कुछ दिन बाद सभी यहाँ शिफ्ट हो जाएंगे।
बेस्ट प्लान है। निशा कहती है।
दादी इस पर खामोश ही रहती है।

दादी को यहाँ कुछ अच्छा अच्छा नहीं लग रहा उन्हें तृषा और रक्षा की चिंता भी काफी हो रही होती है।
वे दो तीन दिन से निशा और अमर से कुछ बात करना चाह रही है। उन्हें कुछ बताना चाहती हैं मगर हिम्मत नहीं कर पा रहीं।
कैसे और क्या बताऊँ अमर और निशा को? दोनों एक से खयालात के हैं और इन बातों पर वे एक प्रतिशत भी भरोसा नहीं करेंगे।
सोच विचार में गुम दादी खाना भी ठीक से नहीं खा पाती। थोड़ी देर बैठकर गपशप लड़ाने और तृषा से फ़ोन पर बात करने के बाद  अमर सोने चले जाता है।
निशा मैं सोचती हूँ तुम्हारे पेपर्स खत्म होने के बाद हम दोनों वापस चलते हैं। यहां अकेले मन भी नहीं लगेगा हमारा। अमर यहाँ रह लेगा उसकी जॉब है तो। और तृषा की परीक्षाएँ होते ही फिर हम भी आजाएँगे।
दादी कुछ दिनों की ही बात है। और फिर में सोच रही हूँ कि जब रहना यहीं है तो मैं भी कुछ अपने लिए यहीं प्लान कर लेती हूं वैसे भी गुना से ज्यादा बैंगलोर में ही अच्छा लगता है मुझे अमर यहाँ नहीं भी रहा तो हैम सब तो राह ही सकते हैं।
पांच दिन के बाद एक लास्ट कैंपस प्लेसमेंट आ रहा है हमारे कॉलेज में। उसके बाद देखते हैं क्या करें।
दादी अनमने मन से उसे ठीक है कह कर अपने कमरे में सोने चली जाती है।
रात गहराते ही दादी को आज फिर किसी के रोने चीखने की आवाज़ तेज़ी से सुनाई देने लगती है। जिसे सुनकर उनकी घबराहट बढ़ जाती है। आज हिम्मत करके वे उठकर लाइट ऑन करती हैं पर उन्हें कमरे में कोई दिखाई नहीं देता।
और वे आवाज़ें बन्द हो जाती हैं।
तेज़ गति से भागती सांसों के साथ उनका शरीर पसीने से भीग चुका होता है। कोई दिखाई नही देता।
वे फिर  से लाइट बंद कर सो जाती है लेकिन अबकी बार वे आवाज़ें और तेज़ आने लगती हैं। परेशान होकर वे लाइट को जलता छोड़ ही सोने की कोशिश करने लगती हैं। कुछ देर तक सब कुछ बेहद शांत होता है मगर अचानक...

क्या होगा आगे क्या निशा और अमर वापस लौटने के लिए तैयार होंगे क्या तृषा और रक्षा यहाँ शिफ्ट हो पाएगी? कहाँ तक पहुंचेगी अमर और तृषा की प्रेम कहानी
जानने के लिए पढ़ते रहिए  रूह का रिश्ता।



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