20 नए रिश्तों का आगाज़

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ

रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

रूह का रिश्ता: एक अघोरी

रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते

रूह का रिश्ता: नए रिश्तों का आगाज़

पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा अमर और निशा को रास्ते में कोई तांत्रिक मिलता है। उनसे लाशों की मांग कर रहा होता है।दादी को फिर से अजीबोगरीब सपने आते हैं निशा अमर की ओर आकर्षित हो रही है जिसे दादी देख लेती हैं और एक फैसला करती हैं। अमर निशा और दादी गुना पहुंचते हैं तृषा ने अमर के लिए एक सरप्राइज पार्टी प्लान की है।  अमर निशा से कहता है कि उसे प्यार हो गया है। अब आगे

अमर की बातें सुन तृषा के अंदर एक अजीब सी बेचैनी छा जाती है। उसके चेहरे से मुस्कुराहट हट नही रही होती।अमर के शब्द जस के तस उसके दिल पर दस्तक दे वहाँ गूंज रहे होते हैं निशा मुझे प्यार हो गया है।
चलते चलते चलते वे दोनों कमरे से बाहर बालकनी की और आ जाते हैं। दादी इशारे से उन्हें नीचे बुला लेती है, नीचे डाइनिंग टेबल पर तृषा ने अमर की पसंद की लगभग हर डिश बना कर रखी है।  अपनी पसंद का सारा खाना देखकर अमर बहुत खुश हो जाता है।

वाह! ये तो सारी ही मेरी फेवरेट डिश है। कहां से शुरू करूं मुझे समझ नहीं आ रहा।
तुम्हें पता है यह सब तृषा ने बनाई है, दादी ने उसकी और देखते हुए कहा।
ओ माय गॉड! हो ही नहीं सकता! तृषा तुमने सच में इतनी सारी  डिशेस…वह भी अकेले…
नहीं! रक्षा दीदी ने थोड़ी मदद की। वह खींसे निपोरती हुई बोली।
हाँ पर तुमने बनाई यह बड़ी बात है।
खाकर बताओ तो पता चले अच्छी है भी या नहीं?
इतनी मेहनत से तुमने बनाई अच्छी क्यों नहीं होगी?
मेहनत से भी और बहुत प्यार से भी दादी कहती हैं। अमर दादी को ऐसा कहते देख एक शर्मीली से मुस्कान देता है और खाना खाने बैठ जाता है
वाह तृषा!!! लाजवाब!! तुमने बहुत ही अच्छा खाना बनाया मुझे तो यकीन नहीं हो रहा इतनी अच्छी कुक तुम कैसे बन गई हां चाय की बात अलग है वह तुम काफी समय से मुझे बनाकर पिलाती आ रही हो और बहुत अच्छी बनाती हो। लेकिन इतना टेस्टी खाना कहां से बनाना सीखा?
यह तो निशा ने सिखाया था उसकी और इशारा करते हुए तृषा बोली। मैं तो बस प्रैक्टिस करती रही जब तुम लोग नहीं थे।
क्या बात है फिर तो निशा को भी क्रेडिट मिलना चाहिए नहीं?
बिल्कुल तृषा खुशी से बोली।
निशा अलग ही दुनिया मे अपने ही सपने में ही गुम है। यहाँ हो रही किसी बात का उस पर कोई असर नही था उसके कानों में तो बस अमर की कही बात गूंज रही है निशा मुझे प्यार हो गया। सच कह रहा हूं निशा! मुझे प्यार हो गया है।

जल्दी से खा लो शाम को पार्टी है और उसके लिए तुम्हारा सूट तुम्हारे रूम में कबर्ड में रखा है तुम्हारे फेवरेट कलर का।
तुम्हें जरूर पसंद आएगा तृषा के मुँह से यह सुन कर अमर मुस्कुरा देता है।

शाम के लिए गेस्ट आना शुरू हो गए हैं। अमर के कुछ खास दोस्तों को तृषा ने जल्दी बुलाया था जो अमर के साथ बैठकर गपशप कर रहे हैं। उसकी सफलता की बधाइयां भी दे रहे हैं। अमर भी अपने पुराने दोस्तों से मिलकर बहुत खुश है। तृषा भी उनकी गपशप का हिस्सा है क्योंकि वह सब साथ ही खेल कर बड़े हुए हैं।
निशा सबको ठहाके लगते हुए देखती रह जाती है। खासकर अमर पर उसकी नजर बराबर टिकी हुई है। उसकी मुस्कान उसे अंदर तक प्रफुल्लित कर जाती है।
पार्टी की शुरुआत हो चुकी है केक कटिंग सेरेमनी के बाद दादी माइक अपने हाथ में ले लेती हैं।
अटेंशन प्लीज उनकी आवाज़ से वाकई सब चौंक कर अटेंशन वाली मुद्रा में आजाते हैं।  आज एक बहुत जरूरी अनाउंसमेंट करना चाहती हूँ।
आप सब तैयार हैं ना सुनने के लिए? सब जोर से हूटिंग करते हुए  उनकी बात का समर्थन करते हैं।
दादी अमर को स्टेज पर बुला लेती हैं। हम सब अमर को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। होनहार पिता का होनहार बेटा!!
सुरेश की अमानत के रूप में अमर बचपन से मेरे साथ है मेरे दिल मे इसका एक विशेष स्थान बचपन से रहा है अमर यह सुनकर दादी की और देखकर मुस्कुराता है उसके चेहरे पर कृतज्ञता के भाव हैं।
और आज उसके इस जन्मदिन पर मैं उसे खास तोहफा देना चाहती हूं ऐसा तोहफा जिसे अमर ज़िन्दगी भर नहीं भूल पाएगा।
अमर दादी की ओर देखता है मुस्कुराकर फिर उनकी ओर से नजर हटा लेता है अमर के चेहरे पर से मुस्कुराहट जाने का नाम ही नहीं ले रही।
तो तोहफा यह है कि आज मैं आप सबके सामने यह अनाउंस करने जा रही हूं कि जल्द ही आप लोगों को इस तरह एक साथ इकट्ठे होने का एक और मौका मिलने वाला है।
जल्द ही अमर और तृषा सगाई के बंधन में बंधने वाले हैं।

इस अनाउंसमेंट से जहां एक और तालियों की गड़गड़ाहट शुरू है तृषा के मन में तितलियां सी उड़ रही हैं। वो नज़रें झुकाए शरमाई सी एक ओर खड़ी है।
नजर उठा कर ना दादी को देख पा रही है न ही अमर को। दादी
तृषा को हाथ पकड़ कर  स्टेज पर ले आती है। अमर को भी स्टेज पर बुलाकर तृषा का हाथ अमर के हाथ पर रख देती हैं। इस छुअन से दोनों के मुख पर एक मुस्कान  तैर जाती है। कुछ ही सेकण्ड्स में वे हाथ छोड़ कर थोड़ा दूर खड़े हो जाते हैं।

वहीं दूसरी ओर निशा के दिल में जैसे कई  हज़ारों तीर आज एक साथ गढ़ गए हों। वह समझ नहीं पाती है कि क्या करें। उसकी वहां खड़े रह पाने की न अब एक पल भी इच्छा है ना ही हिम्मत। लेकिन अचानक से सब को छोड़कर वहाँ से जाना भी अच्छा नहीं है। बस वह अपने सजल नेत्रों से एकटक अमर को देख रही है। उसकी आँखों मे बेस ऑंसू अंगारों से जल रहे हैं।  अनाउंसमेंट के तुरंत बाद से दादी का पूरा ध्यान  निशा पर ही है।
  वे निशा के पास जाकर खड़ी हो जाती हैं। धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखती है। उनके इस स्पर्श से अंदर का लावा जैसे बाहर निकलने को और छटपटाने लगता है। निशा के बांध कर रखे आँसू जब आँखों का बांध तोड़ने को बेताब हो जाते हैं तो वह भाग कर ऊपर के रूम में चली जाती है। दादी भी उसे समझाने धीरे धीरे उसके पीछे जाती हैं।
निशा के सब्र का बांध बुरी तरह टूट जाता है। वह कमरे में पड़ा लैंप, अपना मोबाइल, पर्स, अमर के लिए लाए गए सारे बुके उठा उठाकर कमरे में ही फेकने लगती हैं। रोने के साथ साथ ही उसका शब्दों के जरिये गुस्सा निकलना भी जारी रहता है। वह रोती रोती कहती जा रही है।

ऐसा नही हो सकता। जो मैंने माँगा मुझे आज तक सब मिला है। तृषा ऐसे उसे मुझसे छीन नही सकती।
दादी दादी., ये आपने बहुत गलत किया। भगवान देख रहे हैं ना आप? देख रहे हैं दादी ने झट से अमर को तृषा के साथ खड़ा कर दिया। मैने उससे प्रेम किया है। उसने भी मुझसे प्रेम किया है। और तृषा कैसे बीच मे आ गई। इतने दिन उसने मेरे साथ कितनी खुशी से गुजरे हैं। उन सबका क्या?
दादी को किसने हक दिया है हमारी ज़िंदगी के फैसले करने का। एक बार अमर को तो पूछा होता। मैं नहीं होने दूँगी ये। अभी बस अनाउंस किया है न! सगाई थोड़ी हुई है।
अमर नहीं बोल पा रहा दादी के लिहाज से पर मैं...मैं बता दूँगी सबको की वो मुझसे प्रेम करता है। वो मेरा है बस। कहती हुई रोती हुई वह बाहर निकलने को होती है कि इतने में दादी आ जाती हैं।
कमरे की और निशा की पागलों सी हालात देख वह उसे गले से लगा लेती हैं। निशा बेटा क्या कर रही हो ये।
दादी बहुत गलत किया आपने। वह गुससे से रोते हुए ही कहती है।
क्या गलत किया बेटे मैंने? मैं ये अभी नहीं करना चाहती थी। मगर मैने देखा तुम्हे, अमर के लिए तुम्हारे मन मे जज्बात बहते हुए। शुरुआत थी ये तुम्हारी। अभी न रोकती तो तुम्हे बेहद दुख होता बाद में बेटा।
पर वो मेरा है दादी। कहकर वह रोने लगेती है।

क्या मतलब मेरा है बेटा? वो कोई चीज़ थोड़ी है।

एक्सएक्टली दादी आपने भी तो ऐसे ही किया जैसे वो कोई चीज़ हो तृषा को दे दिया जैसे उसे उठाकर। उससे पूछते आप की उसके दिल मे कौन है। मुझे बहुत अच्छे से पता है निशा उसके दिल मे क्या है। तुम खुद को सम्भालो। स्ट्रांग बनो मेरी बच्ची। बचपन से वे दोनों साथ रहना चाहते थे। अलग वो कभी थे नही एक दूसरे से। उनका आपसी तालमेल और अभी उनके चेहरे पर खिली खुशी बता रही है वे इस फैसले से कितने खुश हैं। तुम खुद देखो।
दादी की बात सुनकर निशा कुछ देर के लिये शांत होती है लेकिन फिर कहती है आप बस तृषा का ही सोचेंगी क्योंकि वह लाडली  है आपकी। मैं कौन हूं आपकी ऐसे अपना मैन खराब नही करते निशा। तुम भी मेरी पोती हो वो भी।
मुझे पता है तुम्हारे लिए क्या सही है अमर की ओर तेरी पसन्द एक सी हो सकती है पर जीवन साथी के रूप में उससे तुम्हारा निभा पाना बहुत कठिन होगा बेटा। वो नही बना तुम्हारे लिए।  जिसे तुम प्यार समझ रही हो ये बस एक आकर्षण है क्योंकि वो परवाह करता है तुम्हारी। लेकिन बस तुम्हारी नहीं वो तो सबकी उतनी ही परवाह करता है। ये तो उसका स्वाभाविक गुण है।
ऐसे परेशान नही होते मेरे बच्चे उनकी खुशी साथ रहने में है और सच मे अगर तुम अपनी बहन और अमर से प्रेम करती हो न तो उनकी खुशी में तुम्हे खुश होना चाहिए न कि तमाशा करना चाहिए चलो अब नीचे वह सब इंतज़ार कर रहे हैं।
इतने में रक्षा उन दोनों को ढूंढते हुए ऊपर आ जाती है निशा अपने आँसू पोंछ लेती है। मगर उसके चेहरे का उडा रंग देखकर रक्षा समझ जाती है कि कुछ समस्या है।
क्या हुआ दादी, निशा, यहाँ क्यों बैठे हैं आप दोनों?
कुछ नही बेटा निशा का सिरदर्द होने लगा। निशा के सिर पर हाथ रख दादी उसकी ओर देख कर कहती है जैसे समझ रही हो कि रक्षा के सामने कुछ न कहे।

क्या हुआ निशा दवाई ला हूँ? मैं दबा देती हूं सिर, आप जाइये दादी। सब नीचे पूछ रहे हैं आपका। ले आऊंगी इसे मैं। कहकर वह निशा के पास बैठ जाती है।

निशा उसके गले लग रोने लगती है।
अरे क्या हुआ है सच बताओ? यहां इतना समान बिखरा है आंखे लाल हैं तुम्हारी क्यों रो रही ही?
दीदी ये बहुत गलत किया दादी ने मेरे साथ। वे बस तृषा को प्यार करती हैं। अमर मुझसे प्यार करता है और दादी ने...कहते कहते वह जोर से रोने लगी।
अमर ने कहा तुमसे ये?
हाँ आज ही कहा। रक्षा आश्चर्च से उसे देखने लगी।
उन्होंने कैसे झट से उसे तृषा के साथ बांध दिया ताकि वह मुझसे कट जाए।
ऐसा नही है निशा। अमर के साथ तृषा की शादी तो मुझे खुद भी नहीं पसन्द। पर पापा यही चाहते थे। सुरेश अंकल भी। सब इनके इनके परिपक्व होने का इंतज़ार कर रहे थे।
और दादी की तो दिली ख्वाइश थी कि ये दोनों एकसाथ रहें हमेशा।
कुछ फैसले लाइव हमारे लिए लेती है  निशा और उन्हें हमे एक्सेप्ट करना होता है। है ना!?
मुझे ही देख लो। मेरे सपने तो कितनी ही बार टूटे…।
तुम्हे कुछ समय लगेगा मगर खुद को मजबूत बनाओ।
मेरी मानो तो अमर की जब तक छुट्टियाँ है वो यहां है तुम बैंगलोर चली जाओ। उससे फिलहाल जितना दूर रहोगी तुम्हारा मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।
रक्षा के भी उसे ही समझाने पर निशा को लगने लगता है कि अमर का साथ सच मे उसकी किस्मत में है ही नही। वह कमरे का  सारा सामान उठा कर रक्षा के साथ मिलकर वापस जमाती है। और दोनों कमरे से बाहर बालकनी तक आजाती हैं नीचे खड़े अमर की नज़र उन पर पड़ती है और वह इशारे से निशा को नीचे आने के लिए कहता है। निशा की आंखे फिर भीग जाती है। आप सही कह रहे हो दीदी मुझे यहाँ से चले ही जाना चाहिए। अपने आँसू पोंछ खुद को मजबूत बना वह नीचे आजाती है। अमर और तृषा को बधाई  देकर मिठाई खिलाती है। दादी भी वहीं खड़ी है उसे देखकर उन्हें तसल्ली मिलती है निशा कहती है कि मेरी बाकी छुट्टियाँ कैंसिल हो वे कोई अर्जेंट प्रोजेक्ट आ गया है सारी न्यू जॉइनिंग्स की लीव्स कैंसिल कर उनको वापस बुला लिया है। तो मुझे जाना है। 

क्या होगा आगे? क्या निशा को सब जाने देंगे या वो सबके मनाने पर यहीं रुक जाएगी?  क्या वह अमर को भुला पाएगी? अमर सच मे तृषा को ही चाहता है या दादी मान रखने को उसने ये किया? कहीं निशा कोई गलत कदम तो नहीं उठा लेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहें रूह का रिश्ता



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