21रूह का रिश्ता: स्वयं को दोहराता इतिहास

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रूह का रिश्ता: एक अंधेरी रात

रूह का रिश्ता:अतीत की यादें

रूह का रिश्ता: अनहोनियों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: अनसुलझी पहेलियाँ

रूह का रिश्ता: लम्हे खुशियों के

रूह का रिश्ता: भूलभुलैया

रूह का रिश्ता:राह-ए- कश्मीर

रूह का रिश्ता: हादसों की शुरुआत

रूह का रिश्ता: रहस्यों की पोटली

रूह का रिश्ता:अनजानी परछाईयाँ

रूह का रिश्ता:उलझती गुत्थियाँ

रूह का रिश्ता: रहस्यों की दुनिया

रूह का रिश्ता: एक अघोरी

रूह का रिश्ता: बिगड़ते रिश्ते


पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा दादी,अमर और निशा बेंगलुरु से गुना पहुंचते हैं। निशा का अमर की ओर खिंचाव बढ़ता जा रहा है। गुना में जहां रक्षा और तृषा ने अमर के जन्मदिन की बहुत ही धूमधाम से तैयारियां की होती हैं। तृषा ने उसके लिए कई सरप्राइजेज रखे होते हैं। पूरा घर उसकी पसंद के हिसाब से सजाया होता है। वह उसके लिए पूरा खाना उसकी पसंद का बनाती है और उसके स्कूल कॉलेज के सभी दोस्तों को आमंत्रित करती है। अमर की जन्मदिन की पार्टी में दादी अमर और तृषा की सगाई का अनाउंसमेंट करती है। जिससे निशा बेहद परेशान हो जाती है। वह अमर से प्यार करती है और तृषा से उसकी सगाई की बात बर्दाश्त नहीं कर पाती। दादी और रक्षा उसे समझाती है लेकिन वहां रुकना उसे अब मुश्किल लगने लगता है और वह अपनी छुट्टियां कैंसिल होने का बहाना बनाकर बेंगलुर वापस जाने का फैसला कर लेती है।
अब आगे

अरे ऐसे कैसे मुझे कितना कुछ बताना था तुम्हे बहुत कुछ कहना था और तुम जाने का कह रही हो? अमर कहता है।

हाँ निशा हमारी तो इस बार ठीक से बात भी नहीं हुई। तुम भी तो मुझे यहाँ आकर बहुत कुछ बताने वाली थी? तृषा ने भी उदास होकर कहा।

जरूरी न होता तो रुक जाती तुम लोग एन्जॉय करो मुझे सुबह जल्दी निकलना है। टिकट बुक करके मैं सोने जा रही हूँ।
तृषा को निशा बहुत परेशान सी लगती है वह चाहती है उसके साथ जाकर बात करे।
मगर सब मेहमान एक एक कर उन्हें बधाई देकर केक और मिठाईयां खिला रहे हैं जिससे उसका वहां से निकलना मुमकिन नहीं होता। देर रात तक सेलिब्रेशन चलता है।
दादी निशा के साथ जाना चाहती है मगर वह मना कर देती है कि चार पांच दिन बाद तो अमर की छुट्टियां भी खत्म और तृषा की परीक्षाएँ भी। तो आप सबको ही वहां ले आइएगा।
अभी मुझे भी कुछ समय अकेले में चाहिए, खुद को समझाने के लिए।
दादी उसे अकेले भेजना चाहती नही मगर निशा की ज़िद के आगे उनकी चल नही पाती।
सुबह  निशा सजल नेत्रों से सबसे विदा लेती है। सब उसे जाते हुए देख रहे हैं हाथ हिलाकर बाए कर रहे हैं सबके मन मे उसे लेकर अपनी अपनी अलग अलग उधेड़बुनें मची हैं।

दादी निशा को लेकर बहुत चिंतित है। हर घंटे उसे फोन लगा रही है। निशा बार-बार उन्हें आश्वासन दे रही है कि मैं बिल्कुल ठीक हूं, दादी आप चिंता ना करें। मैं पहले भी अकेली रही हूँ। वह तो तब अमर था साथ में और आप आना चाहती थी ताकि कोई बातें ना बनाएं इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। मगर मुझे आदत है। पहले भी मम्मी पापा बाहर जाते थे और मैं अकेली रहा करती थी। मुझे किसी किस्म की कोई समस्या नहीं। परेशान ना हो आप।
और रही बात अमर की, हाँ! उसके लिए फिलिंग्स को दिल से निकालने में समय तो बहुत लगेगा। पर कोशिश करूंगी। बस आप मेरा साथ दे देना।
बिल्कुल मेरे बच्चे मैं हमेशा ही तुम्हारे लिए हूं। तुम्हें जब भी जरूरत लगे एक दोस्त की तरह मुझसे बात करना अपने मन की।  जैसे तृषा करती है।  मैं तुम्हें हमेशा सही रास्ता दिखाऊंगी बेटे।  और मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारा अच्छा ही सोचूंगी।

थैंक्यू दादी! कहकर वह फोन रख देती है।
फिर भी दादी की चिंता कम नहीं होती। वे रक्षा से कहती हैं बेटा निशा की बहुत चिंता हो रही है। पता नहीं वहाँ कैसे रहेगी?  दिन भर सोच सोच कर परेशान होती रहेगी। आप चिंता मत कीजिए दादी समझदार है वह मुझे कल शाम बताई उसने सारी बात। थोड़ा टाइम लगेगा पर वह समझ जाएगी धीरे-धीरे।

इधर तृषा भी बहुत देर से उधेड़बुन में है। उसे जाते हुए निशा बहुत परेशान सी लगी। उसे कॉल भी करती है वह। पर निशा  नहीं फोन रेसिवे नहीं करती।
तृषा दादी को अपने मन की बात बताती है।

दादी निशा को क्या हुआ? कितनी परेशान थी जाते हुए?
दादी उसे समझा देती है
कुछ नहीं हुआ बेटा! उसकी छुट्टियां कैंसिल हो गई है। बस इसलिए परेशान थी। हैम सबके साथ यहाँ रहने का बहुत मन था उसका।
हाँ दादी इस बार कोई बात ही नहीं हुई। और अपने तो इस सरप्रिज़े दिया कि उसके बात कुछ और सूझा ही नही। कहकर निशा दादी की गोद मे सिर छुपा लेती है।
दादी भी मुस्कुरा कर कहती है हैम सबका बरसों का सपना था ये तो।
बस तुम्हारी परीक्षाएं हो जाए तो हम सब चलते हैं, बैंगलोर। फिर उससे आराम से ढेर सारी बातें कर लेना।

हाँ दादी।
दादी! आपसे और कुछ भी कहना था मुझे।
हाँ बोलो !?
दादी वो... आपने... सगाई का अनाउंसमेंट कर दिया... लेकिन मुझे रक्षा दीदी का सोच कर थोड़ा...
मतलब पहले उनकी शादी हो जाती फिर...
कुछ परिस्थितियाँ ही ऐसी बन गई थी बेटे तो मुझे यह पहले करना पड़ा। वैसे भी उसके लिए तुम्हे रोककर फायदा नही है। रक्षा के लिए कोई मिलना होगा तो वो तुम्हारी सगाई के पहले मिले या बाद क्या फर्क पड़ेगा? वैसे भी मैंने उससे पूछा था उसने ही कहा अभी कुछ समय आप मुझे इन सब बातों से दूर रखिये। आप तृषा की सगाई की अनाउंसमेंट कर दीजिए मुझे कोई आपत्ति नहीं है

इधर निशा घर पहुंच जाती है। जिस अमर से दूर रहने जिसे भुलाने के लिए वह यहाँ आती है, कदम कदम पर उसकी मौजूदगी के निशान यहां देखकर वो और दुखी हो जाती है।

दवाज़ा खोलते ही हॉल के सेंटर टेबल पर अमर की डायरी और पेन उस पर रखा मिलता है। उस पर हाथ रख कुछ देर वह वहीं ज़मीन पर बैठ कर रोने लगे जाती है।

उर घर मे उसे उसके और अमर के हँसने खिलखिलाने की आवाज़ें पल पल सुनाई देने लगती है।
निशा देखो मै नया नॉवेल लाया हूँ।
अरे वाह! मुझे दो।
मैं तो पढ़ लूँ।
ओके ठीक है।
हैं!? ये क्या!?
क्या हुआ तुम्हारी जगह तृषा होती न कहीं और उसे अगर पढ़ने दिलचस्पी होती तो लेती अब तक मुझसे छीनकर कि पहले मैं ही पढूंगी।
उसकी तो आदत ही है छीन लेने की। वह बुदबुदाई और स्का मन फिर खराब हो गया। आने आँसू पोंछ वह किचन में गई।

किचन में भी उसे अमर ही अमर दिख रहा था।
वाओ निशा!  तुम्हारे हाथ की खीर न लाजवाब बनती है।
बाहर तक खुशबू आ रही है। उसकी आवाज़ में अलग ही उत्साह और अधीरता थी जैसे खीर के लिए बेताब कोई छोटा बच्चा हो। 
लो टेस्ट करो।
निशा ने चमच में लेकर खीर अमर को खिला दी।
उसने आंखे बंद कर अंगूठे और उंगली से सर्कल बनाकर स्वादिष्ट है का इशारा किया तो सहज ही निशा के मुँह पर वर्तमान में भी मुस्कुराहट आ गई और उसके तुरन्त बाद सब कुछ ओझल हो गया।
वह रोते हुए बाहर बालकनी में आई तो  पार्किंग में खड़ी अपनी कार पर उसकी नज़र पड़ गई।
कैसे वह अमर के साथ बैठकर पहले रोज कॉलेज फिर आफिस जाया करती थी।  वो लोग शाम को कभी आइसक्रीम तो कभी कॉफी पीने जाते। एक एक कार निशा की आंखों के आगे वो सब दृश्य घूमने लगे। कितने सुहाने दिन थे दादी के एक अनाउंसमेंट ने सब कुछ खराब कर दिया।

सोचते सोचते सब कुछ याद कर वह वही बालकनी में बैठ रोने लगती।
थोड़ी देर से खुद को समझाती अब बस बहुत हुआ। आंसू पोछने लगती।
फिर कुछ ही देर में दिल दिमाग पर हावी हो जाता फिर से वह भाव महलों में विचरने चला जाता। और बस उसकी आंखें फिर बरस पड़ती।
बार बार रोने और सोचने विचारने के इस क्रम से उसका सिर बहुत भारी हो गया। उठकर उसने खुद को संयत कर पानी पिया और अपने कमरे में जाकर लेट गई। शारीरिक और मानसिक थकान उसे जल्द ही नींद के आगोश में ले गई।

इधर शाम को सब लोग बैठकर गपशप में व्यस्त हैं तृषा सबके बीच बैठी सारे गिफ्ट्स खोल रही है।
एक एक कार गिफ्ट्स देखकर सब तारीफें कर रहे हैं।
इसी क्रम में
सेंटर टेबल पर रखे हुए ही जब वह एक बड़ा बॉक्स खोलती है तो उसके खुलते ही अंदर देख कर सब सहम जाते हैं
इसमें  एक कंकाल की खोपड़ी और काले कपड़े वाली एक गुड़िया मिलती है…!!! जिसमें कीलें लगी होती है……!!

ये सब कुछ देख कर तृषा और इस बार तो अमर और रक्षा भी अंदर तक कांप जाते हैं।
दादी ये सब देखकर बुरी तरह चौंक जाती है।
क्या इतिहास अपने को दोहरा रहा है!!?
वैसा ही एक दूसरा बॉक्स भी साथ पड़ा होता है पहले की तरह ही ये भी बेनामी होता है।
दादी उन्हें वह खोलने से मना करती है। मगर अमर कहता है देखने तो दीजिये दादी ऐसा किसने और क्यों किया ?
नही! इसमें भी कुछ अजीब ही होगा।
आपको कैसे पता? दादी जवाब नही दे पाती।
तुम खोलो तृषा खोल के देखे तो क्या पता इसमें वैसा कुछ न हो।

इस समय तृषा और दादी की घबराहट चरम सीमा पर थी। दादी के ना कहने पर वह पीछे हट गई।
मगर अमर नही माना वह उसे खोलने लगा।
दादी भगवान को मना रही थी कि इसमें वही सब न निकले जो रायचंद और सुधा के उस दिन गिफ्ट खोलने पर निकला था।

अमर  ने वह बॉक्स खोला…
देखकर दादी की धड़कने वही जैसे रुक गई।  इसमें भी वही किसी की हड्डी और एक मरा हुआ चूहा था, जिसके कारण पूरे घर मे असहनीय बदबू फैल गई। साथ ही इस बार इसमें एक चिट्ठी भी थी जो पिछले बार नहीं निकली थी।
अमर ने नाक बंद कर वह खोली।
अब भी क्रिया अधूरी है।
क्या है ये?
वह सब देख कर उन सबका दिमाग खराब हो जाता है। दादी तो बहुत ही परेशानन हो जाती हैं। बस यही सोचती रह जाती है कि पहले रायचंद और सुधा और अब उसी जगह अमर और तृषा!!!

आखिर क्या होगा क्या वो हादसा उनके ये बॉक्स खोलमे से.. नही-नही! वो अमर तृषा के साथ कुछ बुरा नही होने देंगी।
ये लाया कौन? दादी ये तो कोरियर से आया था। रक्षा ने कहा।
दादी को अब चक्कर आने लगते हैं वे वहीं बेहोश हो जाती हैं। तृषा अमर से वे सारी चीजें दूर कहीं फेक आने को कहती है।अमर एक मैदान में उन्हें फेंक देता है।

रक्षा डॉक्टर को बुलाती है कुछ देर बाद जब दादी होश में आती हैं तो वे अमर से पूछती हैं उस समान का क्या किया तो वह बताता है कि वह किसी मैदान में उसे फेंक आया।
दादी की घबराहट और बढ़ जाती है। वह तुरन्त उन्हें वापस लाने को कहती है। दादी के मन मे डर बैठ जाता है कि शायद उन्हें वहाँ मैदान में फेकना नही चाहिए था बल्कि समूल ही नष्ट कर देना था। अब दुबारा तृषा और अमर के साथ कोई अनहोनी न हो इसलिए वे उसे वापस मंगवा कर जलाने का सोचती है। अमर जाना नहीं चाहता परंतु दादी के कहने पर वापस जाता है लेकिन उस समय कुछ भी नहीं मिलता। घर आकर दादी को यह बताने पर से फिर से अपनी सुध बुध खो देती हैं।

तृषा भी उस पूरी रात को ठीक से सो ही नही पाती आंखें बंद करते ही बार बार उससे दोपहर में खोले गिफ्ट बॉक्स नजर आने लगते हैं। थोड़ी देर बाद जब उसे नींद लगती है। और कुछ जो देर में सपने में अमर उसे उन्ही गिफ्ट बॉक्सेस के साथ किसी खाली विरान पड़े मैदान में उन्हें फेंकता हुआ नजर आता है।  हुआ नजर आता है। वह जैसे ही वापस मुड़ता है, उसके पीछे एक तांत्रिक खड़ा होता है जिसे अचानक देखकर वह घबरा जाता है। उसकी परवाह ना कर अमर उसके एक तरफ से निकलने की कोशिश करता है थोड़ा आगे जाने पर उसके कानों में उस तांत्रिक की आवाज पड़ती है  फिर से वही दोहरा रहा हूं अबकी बार मुझे शव नहीं मिले ना तो कोई नहीं बचेगा कह कर वह अमर का गला दबा देता है।  छोड़ो!!! छोड़ दो!! अमर को छोड़ो!! अरे छोड़ो!!! उसे!!
नींद में ही बाह बड़बड़ाने लगी। रक्षा ने उसे हिलाया। तृषा तृषा उठो यार क्या कर रही हो?सोने क्यों नही देती? तृषा पूरी तरह पसीने में तरबतर हो चुकी है रक्षा उसे पानी देती है रक्षा को बताना चाहती है लेकिन उसे फिर लगता है कि अमर और रक्षा को इस बारे में बता कर कोई फायदा नहीं वह दादी से ही बात करेंगे सुबह
उधर निशा को भी नींद में अपने सर पर किसी के हाथ रखने का एहसास होता है बेहद थकी और उन्हें भी आंखों को वह खोलने की कोशिश करती है लेकिन पूरी तरह आंखें उसकी खुल नहीं पाती। अपनी अधखुली आंखों से वह देखने की कोशिश करती है तो उसे अपने पापा का चेहरा अपने सामने महसूस होता है।  वे उसे अपने सामने रोते हुए दिखाई देते हैं।

क्या होगा आगे? क्या दादी अमर तृषा रक्षा और निशा मिलकर इस गुत्थी को कभी सुलझा भी पाएंगे? या बस अनहोनियों और मौत के सफर में उलझ कर अपना पूरा परिवार खो देंगे? किस और ले जाएगी इन्हें किस्मत जानने के लिए पढ़े रूह का रिश्ता का अगला एपिसोड



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